




शुक्रवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार (Forex Market) में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 7 पैसे गिरकर 88.03 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। यह गिरावट विदेशी मुद्रा बाजार में जारी वैश्विक अस्थिरता, डॉलर की मजबूती और अमेरिका-चीन व्यापारिक तनाव जैसी कई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियों का नतीजा रही।
हालांकि विदेशी निवेश की वापसी और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी जैसे सकारात्मक संकेत भी बाजार में मौजूद रहे, लेकिन वे रुपये की गिरावट को थाम नहीं सके।
रुपया शुक्रवार को 87.92 पर खुला, जो पिछले सत्र की तुलना में हल्की मजबूती दर्शा रहा था। व्यापार सत्र के दौरान यह 87.87 के उच्चतम स्तर तक पहुंचा, लेकिन दिन की समाप्ति तक 88.12 के निचले स्तर को छूते हुए 88.03 पर बंद हुआ।
पिछले कारोबारी दिन (16 अक्टूबर 2025) रुपया 87.96 पर बंद हुआ था। इस लिहाज से शुक्रवार को इसमें कुल 7 पैसे की गिरावट दर्ज की गई।
विश्लेषकों का मानना है कि वैश्विक बाजारों में चल रही भूराजनैतिक अनिश्चितता, विशेषकर पश्चिम एशिया में तनाव, और अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को कमजोर किया है।
अमेरिकी डॉलर इंडेक्स, जो डॉलर को छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मापता है, 106.40 के करीब बना हुआ है। यह डॉलर को निवेशकों के लिए “सेफ हेवन” के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे रुपये जैसी अन्य मुद्राओं पर दबाव बढ़ता है।
ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें 91 डॉलर प्रति बैरल से नीचे बनी हुई हैं, जो भारत जैसे तेल आयातक देश के लिए अच्छी खबर है। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी से रुपये को कुछ सहारा मिला, क्योंकि इससे भारत का व्यापार घाटा और आयात बिल कम होता है।
बाजार जानकारों के अनुसार, इस सप्ताह के भीतर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों में पुनः निवेश शुरू किया है। भारतीय कंपनियों के मजबूत तिमाही नतीजों और नीतिगत स्थिरता के चलते निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
हालांकि इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर अस्थिरता के चलते निवेश की गति सतत बनी रहेगी या नहीं, यह कहना जल्दबाज़ी होगी।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए अक्सर हस्तक्षेप करता है। ट्रेडर्स का अनुमान है कि RBI ने गुरुवार और शुक्रवार को डॉलर की बिक्री कर बाजार में स्थिरता लाने की कोशिश की, जिससे रुपये में गिरावट कुछ हद तक सीमित रही।
शुक्रवार को बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी में भी कमजोरी दर्ज की गई। सेंसेक्स करीब 120 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ, जबकि निफ्टी भी 50 अंक नीचे रहा। यह भी रुपये की कमजोरी को दर्शाने वाला एक परोक्ष संकेत है।
IIFL सिक्योरिटीज के विश्लेषक का कहना है:
“डॉलर की वैश्विक मजबूती और भू-राजनीतिक जोखिमों के कारण रुपये में फिलहाल कमजोरी बनी रहेगी। अगले सप्ताह के लिए रुपये की ट्रेडिंग रेंज 87.70 से 88.40 के बीच हो सकती है।”
Kotak Securities की मुद्रा विशेषज्ञ शालिनी मेहरा कहती हैं:
“हालांकि तेल की कीमतें नियंत्रित हैं और एफपीआई निवेशक लौटे हैं, लेकिन अमेरिकी फेड की दर नीति और वैश्विक घटनाक्रमों का असर आगे भी जारी रह सकता है।”
रुपये की दिशा आने वाले सप्ताह में निम्नलिखित कारकों से तय होगी:
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अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों पर नीति
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वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें
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डॉलर इंडेक्स की स्थिति
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घरेलू औद्योगिक उत्पादन और मुद्रास्फीति के आंकड़े
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भारत-चीन और भारत-अमेरिका व्यापार घटनाक्रम
यदि अमेरिकी डॉलर की मजबूती जारी रहती है, तो रुपये में और गिरावट हो सकती है। हालांकि यदि कच्चे तेल की कीमतें और विदेशी निवेश स्थिर रहते हैं, तो रुपये को स्थायित्व मिल सकता है।
शुक्रवार को भारतीय रुपया वैश्विक दबावों के चलते 7 पैसे की गिरावट के साथ बंद हुआ। व्यापारियों और निवेशकों को आगे की रणनीति बनाते समय वैश्विक संकेतकों, डॉलर की चाल, और RBI की नीति संकेतों पर करीबी नजर रखने की सलाह दी जाती है। फिलहाल बाजार की स्थिति अस्थिर बनी हुई है।