




जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभावों को लेकर एक नया वैश्विक अध्ययन सामने आया है जिसमें कहा गया है कि अगर वर्तमान उत्सर्जन दर जारी रही, तो इस सदी के अंत तक दुनिया को हर साल औसतन 57 अतिरिक्त ‘सुपरहॉट’ (अत्यधिक गर्म) दिन झेलने पड़ सकते हैं। यह अध्ययन पर्यावरणीय वैज्ञानिकों और जलवायु विश्लेषकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा प्रकाशित किया गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर पेरिस जलवायु समझौता जैसा कोई वैश्विक कदम नहीं उठाया गया होता, तो यह संख्या और भी अधिक, लगभग 114 दिन प्रति वर्ष तक पहुंच सकती थी। इसका अर्थ है कि मानवता ने कुछ हद तक तबाही को टाल दिया है, लेकिन खतरा अब भी बना हुआ है।
अध्ययन में “सुपरहॉट” दिनों को उन दिनों के रूप में परिभाषित किया गया है जब किसी स्थान का तापमान उसके ऐतिहासिक औसत की तुलना में शीर्ष 10% से अधिक हो। ये दिन अत्यधिक गर्म होते हैं और इंसान, पशु और फसल पर नकारात्मक असर डालते हैं।
वर्तमान में, पेरिस समझौते के बाद से दुनिया में 11 अतिरिक्त सुपरहॉट दिन प्रति वर्ष पहले ही जुड़ चुके हैं। लेकिन अगले 75 वर्षों में यह वृद्धि और तेज़ हो सकती है।
इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि विकासशील और छोटे द्वीपीय देशों पर इसका असर बहुत अधिक होगा, जबकि बड़े प्रदूषक देशों पर अपेक्षाकृत कम।
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पनामा, बहरीन, कतर, और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश 2100 तक 100 से 150 अतिरिक्त सुपरहॉट दिन झेल सकते हैं।
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इसके विपरीत, भारत, चीन और अमेरिका जैसे देश 25-30 अतिरिक्त दिन अनुभव करेंगे — जबकि ये दुनिया के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक हैं।
इससे यह जाहिर होता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव समान रूप से वितरित नहीं होता — जो देश कम दोषी हैं, उन्हें सबसे अधिक भुगतना पड़ सकता है।
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यदि पेरिस समझौते के तहत 2.6°C तापमान वृद्धि को रोका जाए, तो दुनिया हर साल लगभग 57 अतिरिक्त सुपरहॉट दिन झेलेगी।
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लेकिन अगर कोई उपाय न हो और तापमान में 4°C तक की वृद्धि हो, तो यह संख्या 114 दिन प्रति वर्ष हो सकती थी।
अध्ययन के अनुसार, पेरिस समझौते ने इस प्रभाव को लगभग आधा कर दिया है। हालांकि यह समस्या का पूर्ण समाधान नहीं है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।
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मानव स्वास्थ्य पर असर: हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और अन्य ताप संबंधित बीमारियों में वृद्धि।
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कृषि पर प्रभाव: फसलें झुलस सकती हैं, उत्पादन घट सकता है और खाद्य संकट बढ़ सकता है।
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जल संकट: अधिक वाष्पीकरण और सूखा, जिससे पीने और सिंचाई के पानी की कमी।
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ऊर्जा दबाव: ठंडक के लिए बिजली की मांग बढ़ेगी, जिससे पावर ग्रिड पर दबाव पड़ेगा।
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आर्थिक असर: कमज़ोर देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर पर्यटन, खेती और स्वास्थ्य क्षेत्रों में।
अध्ययन करने वाली टीम के प्रमुख जलवायु वैज्ञानिक ने कहा:
“हमने बर्बादी से कुछ हद तक खुद को बचा लिया है, लेकिन खतरा अब भी सिर पर है। अगर हमने अभी भी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया, तो 57 सुपरहॉट दिन भी हमारी नई सामान्य स्थिति हो सकती है।”
उनका सुझाव है कि:
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नवीनीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए।
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शहरी क्षेत्रों में हरित क्षेत्र (ग्रीन ज़ोन) बनाए जाने चाहिए।
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सरकारों को जलवायु अनुकूलन नीतियाँ तेजी से लागू करनी होंगी।
यह अध्ययन एक गंभीर चेतावनी है, लेकिन साथ ही यह उम्मीद भी देता है कि यदि हम वैश्विक स्तर पर मजबूत जलवायु नीतियाँ अपनाएं, तो स्थिति को काबू में लाया जा सकता है।