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भाई-बहन के स्नेह और प्रेम का प्रतीक पर्व भाई दूज पूरे भारत में अत्यंत श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में भाई दूज का त्योहार विशेष रूप से शुभ योगों में आ रहा है, जिसके कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं और उनकी दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं समृद्धि की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और आजीवन उनकी रक्षा का वचन निभाने का संकल्प लेते हैं।
भाई दूज 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि 23 अक्टूबर, गुरुवार दिन पड़ रही है। इस दिन का तिलक मुहूर्त प्रातः 10 बजकर 47 तक अत्यंत शुभ रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस मुहूर्त में भाई को तिलक लगाने से शुभ फल प्राप्त होते हैं और बहन की पूजा से भाई के जीवन में दीर्घायु, सौभाग्य और सफलता बनी रहती है।
यदि किसी कारणवश इस मुहूर्त में पूजा करना संभव न हो, तो दिन के अन्य समय में द्वितीया तिथि रहते हुए भी विधिवत पूजा की जा सकती है। परंतु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि तिलक का कार्य अभिजीत मुहूर्त या राहुकाल के दौरान न किया जाए।
भाई दूज की कथा और महत्व
भाई दूज से जुड़ी एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, यमराज अपनी बहन यमुना के घर आए थे। यमुना ने उनका आदरपूर्वक स्वागत किया, उनके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया और विधिवत तिलक कर आरती उतारी। इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो बहन इस दिन अपने भाई को सच्चे मन से तिलक करेगी और उसकी मंगल कामना करेगी, उसके भाई की आयु लंबी होगी और उसे यमलोक का भय नहीं रहेगा। तभी से भाई दूज का यह पर्व मनाया जाने लगा।
भाई दूज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि पारिवारिक स्नेह का प्रतीक है। यह त्योहार बहन और भाई के रिश्ते को और गहरा करने का माध्यम बनता है। इस दिन परिवारों में मिलन-सम्मेलन होते हैं, मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है और एक स्नेहपूर्ण वातावरण निर्मित होता है।
भाई दूज की पूजा विधि
भाई दूज की पूजा में सबसे पहले बहनें स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं। फिर पूजा स्थान पर लकड़ी की चौकी पर एक सुंदर आसन बिछाकर भाई को बैठाया जाता है। चौकी पर हल्दी या रोली से स्वस्तिक चिन्ह बनाया जाता है। इसके बाद कलश, दीपक, पुष्प, मिठाई, अक्षत, नारियल और तिलक की सामग्री तैयार की जाती है।
बहनें पहले भगवान गणेश और यम-यमुना का स्मरण करती हैं, तत्पश्चात अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं। तिलक के बाद आरती उतारी जाती है और मिठाई खिलाई जाती है। अंत में बहनें अपने भाइयों को दीर्घायु और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देकर उनके प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त करता है।
भाई दूज की पूजा में तिल, गुड़ और नारियल का विशेष महत्व माना गया है। कई जगह बहनें अपने भाइयों को तिल का लेप लगाकर स्नान भी कराती हैं, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
भाई दूज का सामाजिक और भावनात्मक पहलू
भाई दूज केवल धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन मात्र नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक एकता और प्रेम का प्रतीक है। आधुनिक समय में जब रिश्ते व्यस्तताओं के बीच कमजोर होते जा रहे हैं, ऐसे में यह त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूती प्रदान करता है। यह दिन हमें अपने प्रियजनों के प्रति प्रेम, स्नेह और दायित्व का स्मरण कराता है।
आज के समय में भाई दूज का स्वरूप भले ही थोड़ा आधुनिक हो गया हो, पर इसका भाव वही है — स्नेह, आदर और रक्षा का बंधन। चाहे बहनें अपने भाइयों को राखी की तरह राखी बांधें या तिलक लगाएं, इस दिन की भावना प्रेम और आशीर्वाद से ओतप्रोत रहती है।
वर्ष 2025 में भाई दूज का पर्व पूरे भारत में उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। यह दिन भाई-बहन के रिश्ते को सुदृढ़ करने का अवसर होगा और परिवारों के बीच प्रेम का वातावरण पुनः स्थापित करेगा। इसलिए इस पावन अवसर पर सभी बहनों को चाहिए कि वे शुभ मुहूर्त में अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके मंगल की कामना करें, जिससे यह पावन पर्व उनके जीवन में खुशियों और समृद्धि का संदेश लेकर आए।”








