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भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय विदेशी निवेशकों की भारी निकासी से जूझ रही है। इस वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में ₹1.5 लाख करोड़ रुपये (₹1500000000000) से अधिक की पूंजी विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर और बॉन्ड बाजार से बाहर निकाल ली गई है। यह निकासी न केवल वित्तीय बाजारों को झटका दे रही है, बल्कि सरकार और रिजर्व बैंक दोनों को यह सोचने पर मजबूर कर चुकी है कि आखिर इस विदेशी पूंजी पलायन को कैसे रोका जाए।
विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) भारतीय इक्विटी बाजार में एक अहम भूमिका निभाते हैं। जब ये निवेशक पैसा लगाते हैं, तो बाजार में तेजी और तरलता दोनों बढ़ती है। लेकिन जब वे पैसे निकालते हैं, तो असर सीधे तौर पर बाजार सूचकांकों पर पड़ता है। हाल ही में सेंसेक्स और निफ्टी में आई गिरावट इसी विदेशी निकासी की वजह से देखी गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह निकासी अमेरिका और यूरोप के केंद्रीय बैंकों की सख्त मौद्रिक नीतियों और डॉलर की मजबूती के चलते हुई है। अमेरिका में ब्याज दरें लगातार ऊंची बनी हुई हैं, जिससे निवेशकों को वहां बेहतर रिटर्न मिल रहा है। यही वजह है कि वे उभरते बाजारों जैसे भारत से पैसा निकालकर अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं।
भारतीय बाजार में विदेशी निवेश की यह कमी केवल इक्विटी तक सीमित नहीं है। बॉन्ड मार्केट में भी विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी घटती नजर आ रही है। आंकड़ों के मुताबिक, सितंबर और अक्टूबर में एफपीआई ने करीब ₹42,000 करोड़ रुपये की निकासी सिर्फ इक्विटी से की, जबकि बॉन्ड मार्केट से लगभग ₹18,000 करोड़ रुपये निकाले गए।
इन घटनाक्रमों के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और वित्त मंत्रालय अब स्थिति को स्थिर करने के लिए ठोस कदम उठाने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार, सरकार विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नई टैक्स पॉलिसी, विनियामक सरलता और विदेशी निवेश प्रतिबंधों में ढील देने पर विचार कर रही है। साथ ही, RBI विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखने के लिए डॉलर की खरीद-बिक्री में सक्रिय भूमिका निभा रहा है ताकि रुपया पर दबाव नियंत्रित रहे।
पिछले कुछ महीनों में रुपया डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि, RBI के हस्तक्षेप के कारण बड़ी गिरावट टली है। वर्तमान में डॉलर के मुकाबले रुपया 84 के आसपास बना हुआ है। अगर विदेशी पूंजी का यह बहिर्गमन जारी रहा, तो रुपये पर और दबाव बढ़ सकता है, जिससे आयात महंगा होगा और महंगाई पर असर पड़ सकता है।
वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की आर्थिक बुनियाद अभी भी मजबूत है। देश की GDP ग्रोथ 7% के आसपास बनी हुई है, और घरेलू खपत में तेजी दिख रही है। इसके बावजूद, विदेशी निवेशकों का मूड वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित हो रहा है। अमेरिका में मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर और ब्याज दरों की अनिश्चितता के चलते निवेशकों की जोखिम लेने की क्षमता कम हो गई है।
ICRA और CRISIL जैसी रेटिंग एजेंसियों का मानना है कि आने वाले महीनों में स्थिति धीरे-धीरे सुधर सकती है। जैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में नरमी लाने का संकेत देगा, विदेशी निवेशक फिर से उभरते बाजारों की ओर लौट सकते हैं।
भारत सरकार ने भी विदेशी निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए कई कदम उठाने शुरू किए हैं। वित्त मंत्रालय जल्द ही वित्तीय क्षेत्र सुधार (Financial Sector Reforms) की एक नई श्रृंखला लाने की तैयारी में है, जिसमें कैपिटल मार्केट के विनियमन को आसान बनाया जाएगा, विदेशी निवेश की मंजूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाई जाएगी और कराधान नीतियों को स्थिर किया जाएगा।
इसके अलावा, सरकार विदेशी निवेशकों के लिए “इंवेस्टर कंफिडेंस प्रोग्राम” शुरू करने पर भी विचार कर रही है, जिसमें भारत के निवेश अवसरों, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और डिजिटल इकॉनमी की संभावनाओं को वैश्विक मंचों पर प्रदर्शित किया जाएगा।
केंद्रीय वित्त मंत्री ने हाल ही में कहा था कि “भारत को विदेशी निवेश की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें संतुलित पूंजी प्रवाह की आवश्यकता है ताकि हमारा बाजार स्थिर बना रहे।” उनका इशारा इस बात पर था कि भारत अब आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ रहा है, फिर भी विदेशी पूंजी का अपना महत्व है।
बाजार विश्लेषकों के मुताबिक, अगर अगले कुछ हफ्तों में विदेशी पूंजी की निकासी थमी, तो यह भारतीय इक्विटी और मुद्रा बाजार दोनों के लिए राहत का संकेत होगा। आने वाले तिमाही परिणामों और वैश्विक ब्याज दर नीति पर अब सबकी नजरें टिकी हैं।
कुल मिलाकर, ₹1.5 लाख करोड़ रुपये की यह विदेशी निकासी भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि उसे निवेश माहौल को और प्रतिस्पर्धी बनाना होगा। हालांकि सरकार और आरबीआई की सक्रियता से उम्मीद है कि विदेशी पूंजी का प्रवाह जल्द ही वापस पटरी पर आ सकता है। भारत के लिए यह समय आर्थिक संतुलन और निवेश विश्वास दोनों को बनाए रखने का है — और आने वाले महीनों में इसके लिए ठोस कदम देखने को मिल सकते हैं।







