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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर अपने स्पष्ट और संतुलित कूटनीतिक रुख से पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया आज एक गंभीर समस्या का सामना कर रही है, जहां वैश्विक ऊर्जा व्यापार सिमटता जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों को पश्चिमी देश अपने हितों के अनुसार चुनिंदा रूप से लागू कर रहे हैं।
जयशंकर के इस बयान ने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को और मजबूत किया है। उन्होंने यह भी कहा कि आज के अंतरराष्ट्रीय समीकरणों में दोहरे मानदंडों का बोलबाला है, जो न केवल वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि विकासशील देशों के लिए असमानता भी बढ़ा रहा है।
वैश्विक ऊर्जा संकट और पश्चिमी देशों का दृष्टिकोण
जयशंकर ने अपने संबोधन में कहा कि ऊर्जा सुरक्षा आज पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। उन्होंने इशारा किया कि पश्चिमी देश जब अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करते हैं, तो वे इसे ‘हरित परिवर्तन’ के रूप में पेश करते हैं। लेकिन जब विकासशील देश अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं, तो उन पर पर्यावरण के नाम पर दबाव बनाया जाता है।
उन्होंने कहा, “ऊर्जा व्यापार में असमानता बढ़ रही है। कुछ देश अपने हितों की रक्षा के लिए नियमों को मोड़ लेते हैं, जबकि बाकी देशों पर प्रतिबंध और शर्तें लगाई जाती हैं। यह एक गंभीर असंतुलन है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिए खतरनाक है।”
भारत का संतुलित रुख बना उदाहरण
जयशंकर ने इस दौरान भारत की विदेश नीति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा वैश्विक मंचों पर संतुलन की नीति अपनाई है। भारत किसी ब्लॉक पॉलिटिक्स का हिस्सा नहीं है, बल्कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ वैश्विक न्याय और समानता के लिए काम करता है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत विकासशील देशों की आवाज बनने की भूमिका निभा रहा है। “हम किसी के दबाव में नहीं, बल्कि अपने मूल्यों और हितों के आधार पर निर्णय लेते हैं,” जयशंकर ने कहा।
‘सिद्धांतों को चुनिंदा रूप से लागू करना गलत’
जयशंकर ने पश्चिमी देशों पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि आज के समय में अंतरराष्ट्रीय कानूनों और सिद्धांतों का पालन केवल तब किया जाता है जब वह किसी खास देश के हित में हो। उन्होंने कहा कि यदि वैश्विक संस्थाओं और कानूनों की विश्वसनीयता बनाए रखनी है, तो नियम सबके लिए समान होने चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि “जब किसी क्षेत्र में संकट होता है तो पश्चिमी दुनिया तुरंत प्रतिक्रिया देती है, लेकिन जब एशिया या अफ्रीका में मानवीय संकट होता है तो वही देश चुप रहते हैं। यह दोहरा रवैया दुनिया को बांट रहा है।”
भारत की वैश्विक भूमिका में निरंतर वृद्धि
पिछले कुछ वर्षों में भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। एस. जयशंकर जैसे कूटनीतिज्ञों की स्पष्ट नीति और बेबाक बयानबाजी ने भारत को वैश्विक मंचों पर मजबूत आवाज दी है। चाहे यूक्रेन युद्ध हो, गाजा संकट हो या ऊर्जा बाजारों की राजनीति — भारत ने हर बार निष्पक्ष और विवेकपूर्ण रुख अपनाया है।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान भी जयशंकर का संबोधन इसी नीति का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत “साझेदारी और पारदर्शिता” में विश्वास रखता है और किसी भी प्रकार की वैश्विक असमानता के खिलाफ है।
वैश्विक सहयोग की अपील
जयशंकर ने अंत में कहा कि दुनिया को अब “पूर्व बनाम पश्चिम” या “उत्तर बनाम दक्षिण” के नजरिए से बाहर निकलकर एक साझा वैश्विक सहयोग की दिशा में बढ़ना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा संकट जैसी समस्याओं का समाधान केवल सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्थिरता का केंद्र (Global Stabilizing Force) बन चुका है।
जयशंकर के इस बयान को कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक “कूटनीतिक यथार्थवाद” के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि यह भाषण भारत की विदेश नीति के नए आत्मविश्वास और स्वायत्तता का प्रतीक है। वहीं पश्चिमी देशों के कुछ थिंक टैंक इसे एक “सख्त चेतावनी” के रूप में ले रहे हैं, जो भारत की बढ़ती वैश्विक स्थिति को दर्शाता है।
एस. जयशंकर का यह बयान न केवल भारत की मजबूत विदेश नीति को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी बताता है कि अब भारत वैश्विक मंच पर सिर्फ एक सहभागी नहीं, बल्कि दिशा दिखाने वाला देश बन चुका है। उन्होंने पश्चिमी देशों को यह एहसास दिलाया कि दुनिया अब एकपक्षीय नहीं रही, बल्कि बहुध्रुवीय हो चुकी है — जहां हर देश की आवाज मायने रखती है।








