• Create News
  • Nominate Now

    राजस्थान में फिर टले स्थानीय निकाय चुनाव, अब फरवरी 2026 तक नहीं होंगे मतदान — जयपुर, जोधपुर और कोटा में बढ़ी राजनीतिक हलचल

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं।

    राजस्थान में स्थानीय निकाय और पंचायती राज चुनावों का इंतजार एक बार फिर लंबा हो गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि जयपुर, जोधपुर और कोटा सहित सभी प्रमुख नगर निगमों के चुनाव अब फरवरी 2026 तक स्थगित कर दिए गए हैं। यही नहीं, राज्य की करीब 11,000 ग्राम पंचायतों के चुनाव भी इसी अवधि तक नहीं होंगे।

    यह फैसला तब लिया गया है जब राज्य के कई स्थानीय निकायों और पंचायतों का कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है, जिससे अब वहां प्रशासनिक अधिकारी प्रभारी के रूप में जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

    जनगणना और परिसीमन बनी देरी की वजह

    राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव टलने की वजह नई जनगणना और परिसीमन (Delimitation) प्रक्रिया को बताया है। आयोग का कहना है कि जब तक जनसंख्या और क्षेत्रीय सीमा से संबंधित नए आंकड़े जारी नहीं हो जाते, तब तक निष्पक्ष और सटीक चुनाव कराना संभव नहीं है।

    आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “राज्य में कई नगर निगमों और पंचायत समितियों की सीमाएं पिछले वर्षों में बदली गई हैं। जब तक जनगणना के नए आंकड़े नहीं आते, तब तक मतदाता सूचियों और वार्डों का पुनर्निर्धारण करना मुश्किल है। इसलिए फरवरी 2026 तक चुनाव टालना आवश्यक कदम है।”

    राज्य सरकार ने भी इस निर्णय का समर्थन किया है और कहा कि यह प्रशासनिक दृष्टि से एक “व्यवस्थित और पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया” सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।

    जयपुर, जोधपुर और कोटा में बढ़ी राजनीतिक हलचल

    राज्य की तीनों बड़ी नगर निगम — जयपुर, जोधपुर और कोटा — में चुनाव टलने से राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। इन निगमों में कार्यकाल समाप्त होने के बाद फिलहाल आयुक्त स्तर के अधिकारी बतौर प्रशासक काम देख रहे हैं।

    स्थानीय नेताओं का कहना है कि इससे जनता के बीच विकास कार्यों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही दल इस मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।

    भाजपा प्रदेश प्रवक्ता ने कहा, “सरकार जानबूझकर चुनावों से बच रही है क्योंकि जनता में उनके खिलाफ नाराजगी है। वे प्रशासनिक देरी के नाम पर लोकतंत्र की मूल भावना को कमजोर कर रहे हैं।”

    वहीं कांग्रेस ने पलटवार करते हुए कहा कि “भाजपा केवल राजनीति कर रही है। परिसीमन और जनगणना के बिना चुनाव कराने से कानूनी विवाद खड़े हो सकते हैं। सरकार और आयोग दोनों पारदर्शिता बनाए रखना चाहते हैं।”

    11 हजार ग्राम पंचायतों में भी रुका लोकतंत्र

    राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी गंभीर है। लगभग 11,000 ग्राम पंचायतों के सरपंचों और पंचायत समितियों का कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है। अब वहां पर विकास अधिकारी (BDO) और प्रशासनिक अधिकारी अस्थायी रूप से जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

    ग्राम पंचायतों में स्थानीय प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति से कई विकास योजनाएं रुकी पड़ी हैं। मनरेगा और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं में भी मंजूरी और फंड वितरण पर असर पड़ा है। ग्रामीणों का कहना है कि चुने हुए प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति से कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही कम हो गई है।

    एक स्थानीय सरपंच ने कहा, “गांव के लोग चाहते हैं कि जल्द से जल्द चुनाव हों, ताकि विकास के काम रफ्तार पकड़ें। प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ कागजी काम कर रहे हैं, जनता की सीधी बात नहीं सुन रहे।”

    राज्य सरकार पर विपक्ष का दबाव

    राजस्थान में भाजपा लगातार राज्य सरकार पर स्थानीय चुनाव टालने का आरोप लगा रही है। विपक्ष का कहना है कि कांग्रेस सरकार को हार का डर है, इसलिए वह चुनाव से बच रही है।

    भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने कहा, “सरकार को जनता का सामना करने का साहस नहीं है। निकायों और पंचायतों के चुनाव इसलिए टाले जा रहे हैं क्योंकि कांग्रेस को पता है कि लोग उनसे नाराज हैं।”

    वहीं, कांग्रेस सरकार के प्रवक्ता ने जवाब दिया, “हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। चुनाव टलना हमारी इच्छा नहीं, बल्कि संवैधानिक और प्रशासनिक आवश्यकता है। जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद निष्पक्ष चुनाव कराए जाएंगे।”

    कानूनी अड़चनें भी बन रही रुकावट

    राजस्थान उच्च न्यायालय में भी कुछ याचिकाएँ लंबित हैं जो स्थानीय निकायों की सीमाओं और अधिकार क्षेत्रों से संबंधित हैं। इन मामलों का निपटारा होने तक निर्वाचन आयोग ने एहतियात के तौर पर चुनाव प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाने का निर्णय लिया है।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक यह कानूनी और प्रशासनिक स्थितियाँ साफ नहीं होतीं, तब तक किसी भी चुनाव की घोषणा करना मुश्किल होगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इतने लंबे समय तक लोकतांत्रिक संस्थाओं का ठप रहना जनता के हित में नहीं है।

    राज्य में राजनीतिक समीकरण पर असर

    स्थानीय चुनावों के टलने से राज्य में 2026 के विधानसभा चुनावों पर भी असर पड़ सकता है। स्थानीय निकायों के परिणाम अक्सर राज्य स्तर की राजनीतिक दिशा तय करते हैं। ऐसे में निकाय चुनावों का टलना कई राजनीतिक दलों की रणनीतियों को प्रभावित कर सकता है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला सरकार को अल्पावधि में राहत तो देगा, लेकिन लंबे समय में राजनीतिक असंतोष बढ़ा सकता है। क्योंकि जनता यह महसूस कर रही है कि उसके चुने हुए प्रतिनिधि नहीं, बल्कि प्रशासन ही शासन कर रहा है।

    राजस्थान में लोकतंत्र की जड़ें पंचायतों और नगर निगमों तक फैली हुई हैं। लेकिन चुनावों के लगातार टलने से अब यह प्रणाली प्रशासनिक नियंत्रण में सिमटती जा रही है।

    जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया लोकतांत्रिक सटीकता के लिए आवश्यक है, लेकिन लंबे समय तक निर्वाचित प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति से जनता और शासन के बीच की दूरी बढ़ रही है।

    अब सबकी निगाहें फरवरी 2026 पर टिकी हैं, जब उम्मीद की जा रही है कि राज्य में स्थानीय लोकतंत्र फिर से पटरी पर लौटेगा। तब तक राजस्थान के शहरों और गांवों में लोकतंत्र का पहिया अधिकारियों के हाथों में घूमता रहेगा।

    न्यूज़ शेयर करने के लिए क्लिक करें .
  • Advertisement Space

    Related Posts

    ‘मैं भारत के विकास की कहानी पर बहुत उत्साहित था, लेकिन अब नहीं’ — स्टार्टअप फाउंडर धवल जैन की ईमानदार पीड़ा

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। भारत में विकास की कहानी के साथ-साथ भ्रष्टाचार की कहानी भी गहराई से जुड़ी रही है। सरकारी सिस्टम में सुधार…

    Continue reading
    पढ़ाई में गोल्ड मेडल से करोड़ों के बिजनेस तक… जानिए पंकज मिश्रा की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरक कहानी

    इस खबर को सुनने के लिये प्ले बटन को दबाएं। सफलता की कहानियां हमेशा प्रेरणा देती हैं, लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जो यह साबित करती हैं कि सपनों…

    Continue reading

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *