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देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) एक बार फिर सुर्खियों में है। केंद्र सरकार ने संकेत दिए हैं कि आने वाले वर्षों में एलआईसी में उसकी हिस्सेदारी में कमी की जाएगी। सरकार ने मई 2022 में एलआईसी के ऐतिहासिक आईपीओ के जरिए 3.5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचकर करीब 21,000 करोड़ रुपये जुटाए थे। अब सरकार को 16 मई 2027 तक 6.5 प्रतिशत और हिस्सेदारी बेचनी है, ताकि नियामकीय शर्तों का पालन हो सके।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, यह बिक्री एक बार में नहीं बल्कि कई चरणों में की जाएगी। यानी निवेशकों के लिए दोबारा मौका खुल सकता है कि वे देश की इस सबसे भरोसेमंद बीमा कंपनी में निवेश करें। फिलहाल सरकार की एलआईसी में लगभग 96.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि शेष शेयर सार्वजनिक निवेशकों, म्यूचुअल फंड्स और विदेशी संस्थागत निवेशकों के पास हैं।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि “सरकार का इरादा जल्दबाजी में हिस्सेदारी बेचने का नहीं है। बाजार की स्थिति और निवेशकों की मांग को देखते हुए धीरे-धीरे हिस्सेदारी घटाई जाएगी।”
इस फैसले के पीछे सरकार का उद्देश्य राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करना और पूंजी जुटाना है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में हिस्सेदारी घटाने की नीति लंबे समय से सरकार के एजेंडे में रही है। एलआईसी में हिस्सेदारी घटाने से न केवल सरकारी खजाने में धन आएगा बल्कि यह कंपनी की कॉरपोरेट गवर्नेंस और प्रोफेशनल कामकाज को और पारदर्शी बनाएगा।
विश्लेषकों का मानना है कि एलआईसी के शेयरों में फिर से निवेश का मौका मिलने से बाजार में नई लिक्विडिटी (तरलता) आएगी। 2022 में जब एलआईसी का आईपीओ आया था, तब इसे लेकर भारी उत्साह देखने को मिला था। हालांकि शुरुआती दिनों में शेयरों का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा, लेकिन लंबे समय के निवेशकों के लिए यह एक मजबूत विकल्प साबित हो रहा है।
एलआईसी वर्तमान में भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, जिसके पास जीवन बीमा बाजार का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा है। कंपनी का पोर्टफोलियो विशाल है — पॉलिसियों, निवेशों और ग्राहक आधार के मामले में एलआईसी अपने प्रतिस्पर्धियों से बहुत आगे है। एलआईसी के पास देशभर में लगभग 29 करोड़ पॉलिसीधारक हैं, जो इसे भारत की सबसे भरोसेमंद वित्तीय संस्थाओं में से एक बनाता है।
एलआईसी के शेयरों में हाल के महीनों में स्थिरता और धीरे-धीरे रिकवरी देखी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की हिस्सेदारी घटाने की योजना से शेयरों में फिर से सकारात्मक माहौल बन सकता है। निवेशकों के बीच एलआईसी के ब्रांड और लंबे अनुभव को लेकर अभी भी मजबूत भरोसा है।
वहीं, डिसइन्वेस्टमेंट (Disinvestment) से सरकार को भी फायदा होगा। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष में लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है। इसमें एलआईसी जैसी बड़ी कंपनियों से मिलने वाली रकम अहम भूमिका निभा सकती है। वित्त मंत्रालय के अनुसार, एलआईसी की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटाकर 75 प्रतिशत से नीचे लाने का लक्ष्य है, जो कि सेबी (SEBI) के लिस्टिंग नियमों के अनुसार आवश्यक है।
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार यह प्रक्रिया धीरे-धीरे अपनाती है, तो इससे एलआईसी के शेयर मूल्य पर नकारात्मक दबाव नहीं पड़ेगा, बल्कि निवेशकों का विश्वास और बढ़ेगा। विदेशी निवेशकों की भी इस स्टॉक में दिलचस्पी देखी जा सकती है, क्योंकि भारतीय बीमा बाजार अभी भी तेजी से बढ़ रहा है और इसमें निवेश की संभावनाएं काफी अधिक हैं।
कंपनी के प्रबंधन की ओर से भी यह स्पष्ट किया गया है कि एलआईसी अपने बीमा और निवेश पोर्टफोलियो को विविधता देने पर ध्यान दे रही है। डिजिटल सेवाओं, इंश्योरटेक (InsurTech) निवेशों और युवा पॉलिसीधारकों को आकर्षित करने के लिए नए उत्पादों पर काम किया जा रहा है।
आम निवेशकों के लिए यह एक बड़ा अवसर हो सकता है। अगर सरकार चरणबद्ध तरीके से अपनी हिस्सेदारी घटाती है, तो भविष्य में एलआईसी के सेकेंडरी ऑफर या FPO (Follow-on Public Offer) के जरिए निवेश का नया मौका खुल सकता है। इससे न केवल आम नागरिकों को इस प्रतिष्ठित कंपनी का हिस्सा बनने का अवसर मिलेगा, बल्कि भारतीय पूंजी बाजार को भी मजबूती मिलेगी।
वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि एलआईसी का दीर्घकालिक दृष्टिकोण मजबूत है। यह न केवल बीमा क्षेत्र में बल्कि निवेश और बचत की आदतों को भी प्रभावित करने वाली संस्था है। ऐसे में अगर सरकार की हिस्सेदारी घटती है, तो यह कदम भारत की अर्थव्यवस्था में सुधार और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक और बड़ा कदम माना जाएगा।





