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उत्तराखंड के चमोली जिले में धौलीगंगा नदी पर बनी अस्थायी झील ने बीते कुछ दिनों से प्रशासन और स्थानीय निवासियों की चिंता बढ़ा दी थी। अब इस झील को नियंत्रित ढंग से खोलने का काम शुरू कर दिया गया है। राहत की बात यह है कि विशेषज्ञों की चेतावनी के बाद समय रहते कार्रवाई शुरू हो गई, जिससे एक बड़ी आपदा को टाल दिया गया है।
जानकारी के अनुसार, धौलीगंगा नदी में बनी यह झील लगभग 300 मीटर लंबी, 60 मीटर चौड़ी और करीब 3 मीटर गहरी थी। झील का निर्माण पिछले सप्ताह हुई भूस्खलन की वजह से हुआ था, जब भारी मलबा नदी के बहाव में आकर फंस गया और पानी रुक गया। यह झील धीरे-धीरे भरने लगी और स्थानीय प्रशासन के लिए खतरे की घंटी बन गई।
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक टीम ने हाल ही में नीती घाटी का दौरा कर इस झील की स्थिति का जायजा लिया था। टीम ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी थी कि यदि इस झील को जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो इसके टूटने से नीचे बसे गांवों और पुलों को भारी नुकसान हो सकता है। इसके बाद जिला प्रशासन, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) और सेना की इंजीनियरिंग विंग ने संयुक्त रूप से झील को सुरक्षित तरीके से खाली करने की प्रक्रिया शुरू की।
अधिकारियों के मुताबिक, टीम ने ड्रोन सर्वे और सैटेलाइट इमेज की मदद से झील के जलस्तर, चौड़ाई और बहाव के रुख की बारीकी से निगरानी की। इसके बाद झील के किनारे छोटे चैनल बनाकर पानी के दबाव को धीरे-धीरे कम करने की रणनीति अपनाई गई है ताकि अचानक बहाव आने का खतरा न हो।
चमोली के जिलाधिकारी ने बताया कि सेना और आपदा प्रबंधन की टीमें लगातार इलाके में तैनात हैं। फिलहाल झील से नियंत्रित तरीके से पानी छोड़ा जा रहा है। प्रशासन का कहना है कि इस प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। झील के आसपास रहने वाले गांवों जैसे कि नीती, गमशाली और रिंकी में अलर्ट जारी कर दिया गया है। स्थानीय लोगों को उच्च स्थानों पर जाने की सलाह दी गई है।
स्थानीय पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसे उत्तराखंड की नाजुक भौगोलिक स्थिति से जुड़ी गंभीर चेतावनी बताया है। उनका कहना है कि राज्य के पहाड़ी इलाकों में लगातार बढ़ रही भूस्खलन की घटनाएं और जलवायु परिवर्तन के असर के कारण नदियों में इस तरह की अस्थायी झीलें बार-बार बनने लगी हैं। यदि इनका समय रहते समाधान न किया जाए तो यह कभी भी आपदा का रूप ले सकती हैं।
वरिष्ठ भूवैज्ञानिक डॉ. एस.के. सिंह ने कहा, “धौलीगंगा क्षेत्र पहले से ही संवेदनशील माना जाता है। यहां की मिट्टी ढीली है और ऊंचाई वाले इलाकों में बारिश या हिमपात के कारण मलबा नीचे खिसकता है। झील बनने की घटनाएं यहां असामान्य नहीं हैं, लेकिन इस बार का मामला गंभीर था क्योंकि झील का आकार बड़ा और गहराई अधिक थी।”
धौलीगंगा नदी वही क्षेत्र है, जहां 2021 में रैणी क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से भीषण तबाही हुई थी, जिसमें हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और सैकड़ों लोगों की जानें गई थीं। उस हादसे की याद आज भी लोगों के मन में ताजा है। इसलिए जैसे ही इस नई झील की जानकारी मिली, प्रशासन तुरंत सक्रिय हो गया।
इस बीच, राज्य सरकार ने भी इस घटना को गंभीरता से लेते हुए विशेषज्ञ टीमों को भेजा है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर आपदा प्रबंधन विभाग ने सभी जिलों को सतर्क रहने और किसी भी तरह की भू-स्खलन या झील बनने की स्थिति में तुरंत रिपोर्ट भेजने को कहा है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से वे झील के बढ़ते जलस्तर को लेकर डरे हुए थे। अब जब झील को खोलने का काम शुरू हो गया है, तो लोगों ने राहत की सांस ली है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि हिमालयी क्षेत्रों में सतत विकास और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। यदि पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना के साथ छेड़छाड़ जारी रही तो इस तरह की आपदाएं बार-बार सामने आती रहेंगी।
फिलहाल धौलीगंगा की यह झील नियंत्रित तरीके से खाली की जा रही है और नदी का प्रवाह सामान्य बनाए रखने के लिए चौबीसों घंटे निगरानी जारी है। प्रशासन के इस त्वरित कदम से एक संभावित बड़ी आपदा को टाल दिया गया है, लेकिन यह घटना यह भी याद दिलाती है कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्यों में सतर्कता और वैज्ञानिक निगरानी ही भविष्य की सुरक्षा की कुंजी है।

		
		
		
		
		
		
		
		
		






