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भारत के शतरंज इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है। 16 साल की उम्र में इलमपार्थी एआर ने अकेले यात्रा कर, चुनौतियों और कठिनाइयों को पार करते हुए भारत के 90वें ग्रैंडमास्टर का खिताब अपने नाम किया। उनकी यह उपलब्धि न केवल शतरंज जगत के लिए गौरव की बात है, बल्कि युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गई है।
इलमपार्थी एआर का शतरंज के प्रति जुनून बचपन से ही स्पष्ट था। उनके लिए शतरंज केवल खेल नहीं बल्कि एक लक्ष्य और जीवन का मार्ग बन गया। उनके माता-पिता ने हमेशा उनका समर्थन किया, लेकिन कठिनाइयाँ भी कम नहीं थीं। 16 साल की उम्र में अकेले यात्रा करना, टूर्नामेंट में भाग लेना और लगातार उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा में बने रहना उनके साहस और आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
उनकी यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती थी परिवार और घर की जिम्मेदारियाँ। एआर का छोटा भाई बीमार था, और उन्हें अपने भाई की देखभाल की चिंता हमेशा बनी रहती थी। इसके बावजूद उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका शतरंज प्रशिक्षण और प्रतियोगिता का कार्यक्रम बाधित न हो। यह स्थिति उनके व्यक्तित्व में अनुशासन और समर्पण की झलक देती है।
विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि इलमपार्थी की खेल शैली में एमएस धोनी जैसी शांत और सोच-समझकर निर्णय लेने की क्षमता दिखाई देती है। मैदान पर उनका संयम, रणनीति और त्वरित निर्णय उन्हें प्रतियोगियों के बीच अलग बनाता है। यह केवल उनकी तकनीकी क्षमता का प्रमाण नहीं बल्कि मानसिक मजबूती और आत्मविश्वास का भी संकेत है।
शतरंज विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रैंडमास्टर बनने के लिए केवल प्रतिभा ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए निरंतर अभ्यास, मानसिक मजबूती और कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता जरूरी है। इलमपार्थी एआर ने यह साबित कर दिया कि यदि लक्ष्य स्पष्ट हो और मेहनत लगातार की जाए तो कठिन परिस्थितियों में भी सफलता हासिल की जा सकती है।
उनकी यह उपलब्धि भारत के शतरंज प्रेमियों के लिए गर्व का क्षण है। युवा खिलाड़ी अब एआर की कहानी से सीख सकते हैं कि अकेले यात्रा करना, चुनौतियों का सामना करना और परिवार की जिम्मेदारियों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करना संभव है। उनकी कहानी केवल शतरंज के खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह युवा पीढ़ी के लिए जीवन में अनुशासन, समर्पण और धैर्य का आदर्श है।
इस ग्रैंडमास्टर बनने की यात्रा ने यह भी दिखाया कि सही मार्गदर्शन और प्रेरणा से युवा खिलाड़ी किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। उनके प्रशिक्षकों और परिवार ने उनके हर कदम पर समर्थन किया, लेकिन मुख्य श्रेय उनके खुद के समर्पण और मेहनत को जाता है। इलमपार्थी एआर ने यह साबित किया कि कठिनाइयाँ केवल चुनौती होती हैं, और अगर उनका सामना धैर्य और आत्मविश्वास से किया जाए तो लक्ष्य अवश्य हासिल होता है।
अंततः कहा जा सकता है कि इलमपार्थी एआर की कहानी न केवल शतरंज के क्षेत्र में बल्कि पूरे खेल जगत और युवा पीढ़ी के लिए प्रेरक उदाहरण है। 16 साल की उम्र में अकेले यात्रा, एमएस धोनी जैसी मानसिक शक्ति, और बीमार भाई की चिंता के बावजूद लगातार मेहनत करना यह साबित करता है कि सफलता के लिए साहस, समर्पण और अनुशासन कितना महत्वपूर्ण है। भारत ने अब अपना 90वां ग्रैंडमास्टर पाया है और युवा खिलाड़ियों के लिए यह उपलब्धि एक नई प्रेरणा का स्रोत बन गई है।








