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    टैरिफ पर राष्ट्रपति ट्रंप की नरमी से क्या अब खत्म हो गया वैश्विक संकट?

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    ट्रंप के टैरिफ का असर पहले से दिख रहा है और बाजार जिस तरह से टूटा उसका दर्द भी गहरे से महसूस किया गया है. ऐसे में ब्रिटेन का निर्यात करीब पांच साल में सबसे तेजी से गिरा है.

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ एलान के बाद से वैश्विक इकॉनोमी पर बहुत ही बुरा असर पड़ा. हालांकि, ट्रंप की तरफ से इस पर लगाए गए अस्थाई ब्रेक और टैरिफ पर उनकी नरमी ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था को रिकवरी करने में मदद की है. इन सबके बीच सवाल उठ रहा है कि जब ट्रंप ने टैरिफ पर अपने रुख को नरम कर लिया है और बाकी अमेरिका के व्यापारिक साझीदार देशों के साथ बातचीत भी कर रहे हैं तो फिर क्या अब संकट टल गया?

    हालांकि ये जरूर है कि बीजिंग और वाशिंगटन ने एक दूसरे साथ बातचीत के संकेत देकर तनाव कम करते हुए बीच का रास्ता ढूंढ़ने के संकेत दिया. लेकिन वैश्विक कारोबार के ऊपर से टैरिफ का असर नहीं गया है और ये लंबे समय तक रहने वाला है.

    अभी खत्म नहीं वैश्विक संकट
    ई-कॉमर्स कंपनियों से लेकर दुनिया की दिग्गज कंपनियों तक के अपने दर्द हैं. समाचार एजेंसी रायटर्स के मुताबिक, टैरिफ की वजह से पिछले हफ्ते वोल्वो कार्स और डिएगे समेत कई कंपनियों ने अपने सेल्स टारगेट को घटा दिया है. उन छोट व्यवसायियों के हालत बेहद खराब है जो पूरी तरह सीमा पार कारोबार पर निर्भर थे.

    न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए एक कंसल्टेंसी ट्रेड फोर्स मल्टीप्लायर के सीईओ सिंडी एलेन ने कहा कि ज्यादातर फर्म के लिए जीरो से 145 प्रतिशत टैरिफ लगाना को वहन करना आसान नहीं है. उन्होंने कहा कि वे देख रहे हैं कि ज्यादातर छोटे और मझोले स्तर की कंपनियां बाजार से पूरी तरह निकल गई हैं.

    ऐसी हालत में भले ही राष्ट्रपति ट्रंप अमेरिका के व्यापारिक साझीदार देश जैसे भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन के साथ नए प्रस्ताव पर व्यापारित बातचीत कर रहे हैं, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए इस वक्त आसानी से सांस लेना भर भी मुश्किल हो रहा है.

    टैरिफ का गहरा असर
    ट्रंप के टैरिफ का असर पहले से दिख रहा है और बाजार जिस तरह से टूटा उसका दर्द भी गहरे से महसूस किया गया है. ऐसे में ब्रिटेन का निर्यात करीब पांच साल में सबसे तेजी से गिरा है. जर्मनी की कई ऐसे फैक्ट्री जिसने मजबूती के साथ फरफॉर्म किया था, उसकी भी हालत खराब है.

    अगर बात भारत की करें तो चीन के मुकाबले यहां पर भले ही टैरिफ की दरें कम हो लेकिन इस संकट की स्थिति में नई दिल्ली में अपने को मजबूती से मुकाबला किया है. एपल जैसी कंपनियां भारत में प्रोडक्शन शिफ्ट करने जा रही है. भले ही ये चीन के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला हो, लेकिन भारत के लिए जरूर ये एक बड़ा अवसर है.

    इन सबके बीच सवाल यही है कि हायर टैरिफ का मतलब होगा वैश्विक रूप के मांग का कमजोर होना. सेंट्रल बैंक की तरफ से ब्याज दरों में कटौती कर इकॉनोमी को मदद का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन वैश्विक बाजार में सामने इस वक्त कई सवाल बने हुए हैं.

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