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    पाकिस्तान-बांग्लादेश के साथ चीन का नया त्रिपक्षीय गठबंधन! भारत की बढ़ी रणनीतिक चिंता।

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    कुनमिंग में हुई ऐतिहासिक त्रिपक्षीय बैठक में व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य और संपर्क बढ़ाने पर बनी सहमति — भारत के लिए यह कूटनीतिक संकट का संकेत?

    नई दिल्ली: भारत के लिए सामरिक और कूटनीतिक दृष्टि से एक नई चुनौती उभरती दिख रही है। चीन ने पहली बार पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय बैठक का आयोजन किया, जिससे दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को लेकर सवाल उठने लगे हैं। यह बैठक चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में 19 जून 2025 को आयोजित हुई।

    क्या हुआ त्रिपक्षीय बैठक में?
    बैठक में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के वरिष्ठ विदेश अधिकारी शामिल हुए और उन्होंने व्यापार, निवेश, स्वास्थ्य, शिक्षा, समुद्री सहयोग और क्षेत्रीय संपर्क को मजबूत करने पर सहमति जताई।
    चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग, बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रूहुल आलम सिद्दीकी और पाकिस्तान के एशिया-प्रशांत विभाग के अतिरिक्त सचिव इमरान अहमद सिद्दीकी के साथ-साथ विदेश सचिव अमना बलोच इस वार्ता में मौजूद रहे।

    बैठक में निर्णय लिया गया कि इन सहमतियों को लागू करने के लिए एक विशेष कार्यसमूह (वर्किंग ग्रुप) बनाया जाएगा

    भारत क्यों हुआ सतर्क?
    भारत के लिए यह बैठक इसलिए चिंताजनक मानी जा रही है क्योंकि:
    १. बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्तों में तेजी से सुधार हो रहा है।
    २. चटगांव बंदरगाह से पाकिस्तान के जहाज भेजे जाने की खबरें सामने आई हैं।
    ३. भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बांग्लादेश एक रणनीतिक जीवनरेखा है।
    ४. चीन की आर्थिक घुसपैठ और रणनीतिक घेराबंदी की आशंका को बल मिला है।

    विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की यह पहल भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति‘ को चुनौती देने का संकेत है।

    क्या है गुप्त कनेक्शन?
    यह भी माना जा रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और सैन्य नेतृत्व ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता से विदाई में भूमिका निभाई थी। उसके बाद चीन ने अंतरिम सरकार के साथ संपर्क तेज कर दिया है, खासकर आर्थिक और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स के माध्यम से।

    क्षेत्रीय समीकरणों में बड़ा बदलाव?
    इस त्रिपक्षीय बैठक को सिर्फ एक कूटनीतिक मुलाकात नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में नए रणनीतिक समीकरणों की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। यह भारत के लिए:
    सुरक्षा नीति, विदेश नीति, समुद्री रणनीति,
    इन तीनों मोर्चों पर नई चुनौती पैदा कर सकती है।

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