




दलाई लामा ने स्पष्ट किया कि उनका उत्तराधिकारी पारंपरिक तिब्बती बौद्ध पद्धति से चुना जाएगा, न कि चीन के राजनीतिक हस्तक्षेप से।
विवाद की जड़: उत्तराधिकारी कौन तय करेगा?
तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और चीन सरकार के बीच उत्तराधिकारी चुनने को लेकर एक बार फिर टकराव उभर आया है। दलाई लामा ने रविवार को एक रिकॉर्डेड मैसेज में साफ कर दिया कि 15वें दलाई लामा का चयन तिब्बती बौद्ध परंपरा और धार्मिक विधियों के अनुसार होगा।
उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी गदेन फोडरंग ट्रस्ट को दी गई है, जो उत्तराधिकारी चयन प्रक्रिया की निगरानी करेगा। दलाई लामा ने यह भी बताया कि पिछले 14 वर्षों में उन्हें तिब्बत और कई बौद्ध देशों (चीन, मंगोलिया, रूस) से उत्तराधिकारी चुनने की अपीलें मिली हैं।
चीन की प्रतिक्रिया: “हमारी मंजूरी के बिना मान्यता नहीं”
दलाई लामा के बयान के कुछ घंटे बाद ही चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने AFP से कहा, “दलाई लामा और पंचेन लामा जैसे धार्मिक नेताओं का पुनर्जन्म केवल ‘गोल्डन अर्न’ प्रणाली और केंद्रीय चीनी सरकार की स्वीकृति से ही मान्य होगा।”
चीन इस प्रक्रिया को पूरी तरह से राजनीतिक नियंत्रण में रखना चाहता है, ताकि तिब्बत पर उसका प्रभाव बना रहे।
गोल्डन अर्न प्रणाली क्या है?
‘गोल्डन अर्न’ (Golden Urn) प्रणाली 18वीं सदी में किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें लॉटरी सिस्टम के ज़रिए पुनर्जन्म के दावेदारों का चयन होता है। चीन इस प्रणाली को अधिकृत मानता है, जबकि तिब्बती बौद्ध समुदाय इसे राजनीतिक दखल के तौर पर देखता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या मायने हैं?
दलाई लामा का यह बयान वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। चीन लंबे समय से तिब्बत पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए दलाई लामा संस्था को कमजोर करना चाहता है। लेकिन दलाई लामा की इस घोषणा से तिब्बती समुदाय को एक बार फिर धार्मिक आत्मनिर्भरता का भरोसा मिला है।
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