




भारत ने शुरू से ही पाकिस्तान की आर्थिक मदद पाने की कोशिशों का विरोध किया था। लेकिन भारत ने ‘नहीं’ वोट क्यों नहीं दिया? समझिए…
वाशिंगटन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की बैठक में पाकिस्तान को 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का लोन देने की मंजूरी दी गई। भारतीय मुद्रा के हिसाब से यह लोन 8542 करोड़ 48 लाख 90 हजार रुपए के बराबर था। भारत ने पाकिस्तान को यह लोन मिलने से रोकने की कोशिश की थी। हालांकि, भारत ने वास्तविक वोटिंग में वोटिंग से दूर रहने का फैसला किया।
जब पाकिस्तान की मदद करने का यह प्रस्ताव पेश किया गया, तो सवाल उठ रहा है कि भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ‘नहीं’ वोट क्यों नहीं दिया। इसके लिए IMF की बैठक के कुछ नियमों को समझना जरूरी है। आइए समझते हैं कि भारत IMF की बैठक से क्यों अनुपस्थित रहा और क्यों अब पाकिस्तान भारत की भूमिका के कारण भारतीय सीमावर्ती इलाकों में और अधिक जोश के साथ आक्रामक हमला कर रहा है…
IMF में लोन देने का फैसला कैसे होता है?
1. आईएमएफ के कार्यकारी बोर्ड में 25 निदेशक होते हैं। ये निदेशक सदस्य देशों या देशों के समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
2. यह बोर्ड दिन-प्रतिदिन के निर्णयों जैसे कि ऋण स्वीकृत करने पर काम करता है।
3. संयुक्त राष्ट्र के विपरीत, प्रत्येक देश के पास एक वोट नहीं होता है।
4. आईएमएफ में मतदान शक्ति सदस्य देशों के आर्थिक आकार पर आधारित होती है।
5. बड़े आर्थिक हिस्से वाले देशों को अधिक मतदान शक्ति मिलती है (जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका)।
6. आईएमएफ आमतौर पर सर्वसम्मति से निर्णय लेता है। लेकिन जहां वोट की आवश्यकता होती है, वहां “नहीं” वोट करने का विकल्प नहीं होता है।
7. निदेशक केवल दो विकल्प चुन सकते हैं, ‘समर्थन’ या ‘मतदान से दूर रहना’।
भारत ने क्यों किया किनारा?
1. भारत ने पाकिस्तान को ऋण स्वीकृत करने के लिए आईएमएफ के वोट से किनारा करने का फैसला किया।
2. इसका कारण विरोध नहीं था, बल्कि यह था कि आईएमएफ के नियमों के अनुसार ‘नहीं’ वोट करना संभव नहीं था।
3. भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया और अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया तथा आपत्तियां उठाईं।
भारत द्वारा उठाई गई आपत्तियां क्या थीं?
1) आईएमएफ सहायता की प्रभावशीलता:
पिछले 35 वर्षों में पाकिस्तान ने 28 बार आईएमएफ सहायता मांगी है। जिसमें से पिछले 5 वर्षों में ही 4 कार्यक्रम थे। इसके बाद भी कोई ठोस और स्थायी सुधार नहीं किया गया है।
2) सैन्य प्रभुत्व:
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सेना का मजबूत प्रभुत्व है। इससे पारदर्शिता, नागरिक नियंत्रण और स्थायी सुधार कमजोर होते हैं।
3) आतंकवाद को समर्थन:
भारत ने ऐसे देश को धन मुहैया कराने का विरोध किया जो सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देता है। भारत ने कहा कि इस तरह की सहायता वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता को खतरे में डाल सकती है।