




गुवाहाटी। असम विश्वविद्यालय, सिलचर की पूर्व पीएच.डी. छात्रा अबिदा चौधुरी का नाम अब भारत के उन चुनिंदा युवाओं में शामिल हो गया है जो अपनी मेहनत और लगन से विज्ञान और शोध की दुनिया में नई ऊँचाइयाँ छू रहे हैं। अबिदा को हाल ही में अंटार्कटिका अभियान (Antarctica Expedition) के लिए चुना गया है। यह उपलब्धि न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में एक ऐतिहासिक पड़ाव है, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर भारत के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत भी है।
अबिदा चौधुरी का बचपन एक साधारण परिवार में बीता, लेकिन विज्ञान के प्रति उनकी जिज्ञासा और शोध की लगन उन्हें हमेशा आगे ले जाती रही। उन्होंने असम यूनिवर्सिटी, सिलचर से पीएच.डी. की पढ़ाई पूरी की और धीरे-धीरे वैज्ञानिक अनुसंधान की दिशा में खुद को मजबूत किया। पढ़ाई के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उनकी यह सफलता इस बात का प्रमाण है कि सपनों को पाने के लिए संघर्ष और आत्मविश्वास सबसे बड़ी कुंजी है।
अंटार्कटिका की बर्फीली भूमि और वहां की कठोर परिस्थितियाँ किसी भी इंसान की सहनशक्ति की कड़ी परीक्षा लेती हैं। यही वजह है कि इस अभियान के लिए चुने गए वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है।
अबिदा चौधुरी ने हाल ही में इंडो-तिब्बती बॉर्डर पुलिस (ITBP) के पर्यटन और स्की संस्थान, औली में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस प्रशिक्षण के दौरान उन्हें ऊँचाई वाले इलाकों में रहने, बर्फीले वातावरण में काम करने, ग्लेशियरों पर शोध करने और आपातकालीन परिस्थितियों में खुद को सुरक्षित रखने की शिक्षा दी गई।
भारत लंबे समय से अंटार्कटिका अभियानों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने वहां जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय अध्ययन, ग्लेशियरों पर शोध और जैव विविधता जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में योगदान दिया है।
अबिदा चौधुरी का इस अभियान में चयन भारत की वैज्ञानिक क्षमता और महिला सशक्तिकरण दोनों को दर्शाता है। उनकी मौजूदगी से यह साबित होता है कि भारतीय महिलाएँ अब हर क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान दर्ज करा रही हैं।
आज जब देश ‘नारी शक्ति’ के सम्मान और योगदान की बात कर रहा है, ऐसे समय में अबिदा चौधुरी का यह चयन विशेष महत्व रखता है। उन्होंने साबित किया है कि महिलाएँ चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ क्यों न हों, यदि वे दृढ़ निश्चय और मेहनत करें तो हर लक्ष्य को हासिल कर सकती हैं।
उनकी उपलब्धि विशेषकर पूर्वोत्तर भारत की लड़कियों और युवाओं के लिए प्रेरणा बनेगी, जो अकसर संसाधनों और अवसरों की कमी का सामना करती हैं।
अंटार्कटिका को वैश्विक ‘क्लाइमेट लैब’ कहा जाता है। वहां किए गए शोध न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि पूरे विश्व के पर्यावरण और जलवायु पर असर डालते हैं। अबिदा इस अभियान में जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों की पिघलती स्थिति और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित शोध का हिस्सा होंगी।
यह शोध भविष्य की नीतियों और जलवायु रणनीतियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
अबिदा चौधुरी के इस चयन से उनके परिवार और असम यूनिवर्सिटी का नाम रोशन हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन और उनके सहपाठी इस उपलब्धि पर गर्व महसूस कर रहे हैं। वहीं असम और पूरे पूर्वोत्तर भारत के लोग इसे अपनी बेटी की सफलता मानकर उत्साहित हैं।
अबिदा चौधुरी का यह सफर हम सभी के लिए सीख है कि दृढ़ निश्चय, मेहनत और सपनों पर विश्वास करने वाला इंसान किसी भी मुकाम तक पहुँच सकता है। उन्होंने पूर्वोत्तर भारत की उस छवि को मजबूत किया है जिसमें युवा प्रतिभाएँ न केवल देश बल्कि पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ रही हैं।