




1. ‘इक़बाल’ की कहानी और फिल्म का महत्त्व
“इक़बाल” (2005) एक प्रेरक खेल-नाटक फिल्म थी, जिसे नागेश कुकुनूर ने निर्देशित किया। इसमें श्रेयस तलपदे ने एक गूंगे-बहरे युवा क्रिकेट प्रेमी की भूमिका निभाई, जिसका सपना भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने का था। यह फिल्म सिर्फ बॉक्स ऑफिस हिट नहीं हुई, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर आधारित श्रेष्ठ फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीती ।
2. श्रेयस तलपदे की व्यक्तिगत यात्रा और फिल्म का प्रभाव
श्रेयस के अनुसार, “इक़बाल ने मेरी ज़िंदगी बदल दी। इससे पहले मैं कोई भी नहीं था”—यह भूमिका उन्हें पहचान दिलाने वाली बनी । 13वीं वर्षगांठ पर उन्होंने अपने परिवार के गर्व को विशेष रूप से याद किया, यह कहते हुए:
“यह फिल्म मेरे लिए सबसे कीमती यादों में से एक है… जब भी मुझे उदासी होती है, मैं इस फिल्म का गाना सुनता हूँ”।
16वीं वर्षगांठ पर उन्होंने भावुकता के साथ कहा:
“मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर का हीरो बन जाऊँगा… ‘इक़बाल’ ने मुझे जहाँ पहुँचाया, उसके लिए मैं आभारी हूँ” ।
3. अभिनय चुनौतियाँ और किशोर की भूमिका निभाना
श्रेयस ने उस समय केवल 30 वर्ष के थे, जबकि उन्होंने 18 वर्षीय इक़बाल की भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि अगली सुबह अपनी शादी के तुरंत बाद शूटिंग शुरू करनी पड़ी थी । गली गली से मिलने वाले साधारण अभिनय को उन्होंने आत्मीयता से निभाया।
4. ‘इक़बाल’ का सामाजिक प्रभाव
फिल्म ने आलोचकों और दर्शकों दोनों का दिल जीत लिया। HT ने इसे नागेश की श्रेष्ठ कृति कहा और श्रेयस को एक “अद्भुत खोज” बताया। हिन्दू ने लिखा, “हर दृश्य प्रेरणा से भरा है”, और इक़बाल को “उस वर्ष की खोज” कहा ।
5. ‘इक़बाल’ का जादू और कोई सीक्वल नहीं
श्रेयस ने यह स्पष्ट किया कि वे ‘इक़बाल 2’ नहीं बनाना चाहते, क्योंकि यदि वह असफल हुआ तो यह मूल का जादू कम कर सकता है। उन्होंने यह मानते हुए याद किया कि उन्हें “मैं इक़बाल हूँ” तक कहा जाता है । यह बात इस फिल्म की विशिष्टता दर्शाती है।
6. हास्य भूमिकाओं द्वारा छाया
‘इक़बाल’ की सफलता के बाद, श्रेयस को हास्य भूमिकाएं कई फिल्मों में मिलीं। लेकिन यह उन्हें एक निश्चित छवि में बाँधता गया, और वे ‘इक़बाल जैसी फिल्म’ करने की चाह अब भी रखते हैं । इक़बाल’ की सफलता के बाद श्रेयस तलपदे को बॉलीवुड में पहचान तो मिली, लेकिन इसके साथ ही उन्हें ज़्यादातर हास्य भूमिकाओं के ऑफ़र आने लगे। कई हिट कॉमेडी फिल्मों में उन्होंने काम किया और दर्शकों ने भी उन्हें पसंद किया, लेकिन धीरे-धीरे वे एक “कॉमेडी हीरो” की छवि में बंध गए। श्रेयस का मानना है कि यह उनके करियर के लिए एक सीमा बन गई, क्योंकि उनके भीतर हमेशा से ‘इक़बाल’ जैसी गंभीर और भावनात्मक फिल्मों का हिस्सा बनने की चाह बनी रही। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि वे आज भी ऐसी भूमिकाओं की तलाश करते हैं, जो उन्हें फिर से उसी स्तर पर दर्शकों से जोड़ सकें, जैसा “इक़बाल” ने किया था।
7. भावनात्मक हमला और कुकुनूर का रोल
नागेश कुकुनूर ने सिर्फ निर्देशन नहीं किया, बल्कि श्रेयस को उनकी शैली और अभिनय रूपरेखा सिखाई। उन्होंने खुद कहा था कि उन्होंने बहुत कुछ “अनलर्न और फिर सीखना” सीखा, विशेष तौर पर अभिनय की सरलता और स्वाभाविकता। निर्देशक नागेश कुकुनूर ने न सिर्फ ‘इक़बाल’ को पर्दे पर उतारा, बल्कि श्रेयस तलपदे को अभिनय का नया दृष्टिकोण भी दिया। श्रेयस ने कई बार कहा कि कुकुनूर के साथ काम करते हुए उन्होंने अभिनय की “अनलर्न और री-लर्न” प्रक्रिया अपनाई। यानी उन्हें अपने पुराने ढंग को छोड़कर अभिनय की सरलता, सहजता और सच्चाई को अपनाना पड़ा। यह अनुभव इतना गहरा था कि श्रेयस के करियर और व्यक्तित्व, दोनों पर स्थायी असर पड़ा। उन्होंने कहा कि नागेश कुकुनूर के मार्गदर्शन ने उन्हें बतौर अभिनेता और इंसान, दोनों रूपों में परिपक्व बनाया।
8. निष्कर्ष — एक फिल्म, जो जीवन बदली
“इक़बाल” सिर्फ एक फिल्म नहीं—यह श्रेयस तलपदे की पहचान बन गई। इस फिल्म ने उन्हें मात्र अभिनेता नहीं, बल्कि अभिनेता के रूप में स्थापित किया। यह फिल्म उनकी यात्रा का पहला मील का पत्थर रही, जिसकी छाया अभी भी उनके करियर और दिल पर है।
सारांश तालिका
विषय | विवरण |
---|---|
फिल्म | इक़बाल (2005), निर्देशन: नागेश कुकुनूर |
मुख्य भूमिका | श्रेयस तलपदे, गूंगा-बहरा क्रिकेट खिलाड़ी |
प्रभाव | राष्ट्रीय पुरस्कार, अभिनेत्री की पहचान |
व्यक्तिगत प्रभाव | “मैं इक़बाल हूँ”, परिवार का गर्व |
श्रद्धा | कोई सीक्वल नहीं — जादू बना रहे |
निर्देशन का नियंत्रण | अद्वितीय अभिनय शैली सिखाई |
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