




महाराष्ट्र की महायुति सरकार अब कर्ज के बोझ तले धीरे-धीरे दबती जा रही है। वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार, इस साल के अंत तक राज्य पर कुल 9 लाख करोड़ रुपये का कर्ज पहुंच सकता है। यह स्थिति राज्य की आर्थिक स्थिरता और विकास योजनाओं के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है।
राज्य सरकार की मौजूदा खामोशी और विपक्ष के तीखे आरोपों ने इस मुद्दे को राजनीतिक गलियारों में गर्म कर दिया है। विपक्ष ने वित्तीय प्रबंधन और कर्ज नियंत्रण को लेकर महायुति सरकार पर सवाल उठाए हैं।
कर्ज की मौजूदा स्थिति
महाराष्ट्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षित लक्ष्य से कम रही है। पिछले साल के दौरान राजस्व संग्रह में कमी और व्यय में बढ़ोतरी के कारण सरकार को कर्ज लेने की मजबूरी रही।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य का कुल कर्ज 8.2 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच चुका है।
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वित्तीय वर्ष 2025 के अंत तक यह बढ़कर 9 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचने का अनुमान है।
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कर्ज का बड़ा हिस्सा राज्य बांड, बैंक उधारी और सेंट्रल सहायता पैकेज से लिया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कर्ज का यह स्तर जारी रहा, तो राज्य की वित्तीय क्षमता प्रभावित होगी और विकास परियोजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विधायक नाना पटोले ने राज्य सरकार की वित्तीय नीतियों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा:
“महायुति सरकार ने लगातार कर्ज बढ़ाने की नीति अपनाई है। विकास कार्यों के लिए पैसा लेने के बजाय केवल कर्ज में वृद्धि की जा रही है। इसका भार आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा।”
पटोले ने कहा कि सरकार को राज्य की वित्तीय पारदर्शिता बढ़ानी होगी और कर्ज नियंत्रण के लिए ठोस रणनीति अपनानी होगी।
इसके अलावा, विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार वित्तीय संतुलन बनाए रखने में विफल रही है। कई पूर्व योजनाएँ अधूरी रह गई हैं और नई परियोजनाओं में भी नियंत्रण और निगरानी का अभाव दिखाई देता है।
सरकार की स्थिति
वर्तमान में महायुति सरकार ने कर्ज के मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि, वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि राज्य की आर्थिक स्थिति स्थिर है और कर्ज बढ़ने के बावजूद विकास योजनाएँ प्रभावित नहीं होंगी।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार ने वित्तीय सुधार और व्यय नियंत्रण के लिए कई पहलें शुरू की हैं। इनमें कर्ज प्रबंधन, सरकारी खर्च पर निगरानी और राज्य बांड की पुनर्वित्तीय योजना शामिल हैं।
कर्ज बढ़ने के कारण
महाराष्ट्र के कर्ज बढ़ने के पीछे कई कारण हैं:
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राजस्व संग्रह में कमी: कोविड-19 महामारी और आर्थिक मंदी के बाद राजस्व संग्रह प्रभावित हुआ।
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विकास योजनाओं में बढ़ता खर्च: आधारभूत ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में व्यय बढ़ा।
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केंद्र से मिलने वाली सहायता में कमी: केंद्र सरकार से मिलने वाली वित्तीय सहायता अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंची।
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बेरोजगारी और सामाजिक योजनाओं पर खर्च: सरकार ने सामाजिक योजनाओं में निवेश बढ़ाया, जिससे व्यय में वृद्धि हुई।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कर्ज नियंत्रण नहीं हुआ, तो आने वाले वर्षों में राज्य को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।
भविष्य की रणनीति
आर्थिक विशेषज्ञों का सुझाव है कि महाराष्ट्र सरकार को तुरंत वित्तीय सुधार और कर्ज प्रबंधन रणनीति लागू करनी चाहिए।
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कर्ज लेने के बजाए राजस्व संग्रह बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।
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सरकारी व्यय में कटौती और प्राथमिकता निर्धारण जरूरी है।
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निवेशकों और केंद्र सरकार के साथ सहयोग बढ़ाकर वित्तीय संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी।
सरकार की सक्रियता और पारदर्शिता से ही राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार और जनता का विश्वास कायम रहेगा।
महाराष्ट्र में कर्ज का बढ़ता बोझ सरकार और विपक्ष दोनों के लिए चिंता का विषय बन गया है। साल के अंत तक 9 लाख करोड़ रुपये का अनुमानित कर्ज राज्य के वित्तीय स्वास्थ्य पर दबाव डाल रहा है।