




महाराष्ट्र की राजनीति में लगातार बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस बीच शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत (Sanjay Raut) ने एक बड़ा दावा किया है। राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में आज जो सरकार बनी हुई है, वह असली जनादेश की नहीं बल्कि “वोट चोरी” का नतीजा है।
मीडिया से बातचीत करते हुए राउत ने कहा—
“महाराष्ट्र की जनता ने 2019 में जो जनादेश दिया था, उसका अपमान किया गया। कई विधायक वोट चोरी की वजह से सत्ता में बैठे हैं। लोकतंत्र का इस तरह अपमान पहले कभी नहीं हुआ।”
राउत का इशारा सीधे-सीधे 2022 में हुए शिवसेना के विभाजन और उसके बाद बनी शिंदे-फडणवीस सरकार की ओर था।
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2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना (उद्धव गुट) गठबंधन ने चुनाव लड़ा था।
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चुनाव नतीजों के बाद दोनों दलों में मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद हुआ।
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उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई।
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जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के बड़े हिस्से के विधायकों के साथ बगावत की और बीजेपी के समर्थन से सरकार बना ली।
इस राजनीतिक उथल-पुथल के बाद से ही उद्धव गुट लगातार शिंदे सरकार को जनादेश की चोरी करार देता रहा है।
संजय राउत का बयान महज़ शब्दों का खेल नहीं बल्कि गंभीर आरोप है।
उनका कहना है कि:
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जनता ने 2019 में महाविकास अघाड़ी (MVA) के तौर पर सरकार को समर्थन दिया था।
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लेकिन बाद में खरीद-फरोख्त और दबाव की राजनीति के ज़रिए विधायक तोड़े गए।
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यह प्रक्रिया सीधे-सीधे वोट चोरी है क्योंकि जनता ने जिन प्रतिनिधियों को एक दल और गठबंधन के लिए चुना, वे बीच रास्ते में दूसरी पार्टी के साथ चले गए।
राउत ने कहा कि यह सिर्फ उद्धव ठाकरे गुट या शिवसेना का मामला नहीं है, बल्कि पूरे लोकतंत्र पर हमला है। अगर चुने हुए विधायक पैसे और पद के लालच में दल बदलते रहेंगे तो जनता का भरोसा चुनावी प्रक्रिया से उठ जाएगा।
उन्होंने दावा किया कि आने वाले चुनावों में जनता इस “धोखे” का बदला ज़रूर लेगी।
शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) लगातार यह मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि शिंदे सरकार न सिर्फ जनादेश की चोरी का नतीजा है बल्कि वह अस्थिर और अल्पकालिक भी है।
प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार भी पहले कह चुके हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति का असली चेहरा जनता को अब साफ दिख रहा है।
वहीं, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस लगातार यह कहते आए हैं कि उनकी सरकार पूरी तरह संवैधानिक है और बहुमत सिद्ध कर चुकी है।
उनका कहना है कि:
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विधायक किसी दबाव में नहीं बल्कि उद्धव ठाकरे के कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से असहमति के कारण साथ छोड़कर आए।
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जनता ने 2019 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को वोट दिया था, इसलिए मौजूदा सरकार ही असली जनादेश की प्रतिनिधि है।
महाराष्ट्र की जनता इस मुद्दे पर बंटी हुई दिखाई देती है।
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कुछ लोग मानते हैं कि विधायक दल बदलकर जनता का विश्वास तोड़ रहे हैं।
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वहीं कई लोग कहते हैं कि राजनीति में समीकरण बदलते रहते हैं और इसमें कुछ भी “चोरी” जैसा नहीं है।
लेकिन इतना ज़रूर है कि पिछले तीन सालों से महाराष्ट्र लगातार राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है और इसका सीधा असर राज्य के विकास कार्यों और प्रशासनिक फैसलों पर पड़ा है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि संजय राउत का बयान चुनावी रणनीति का हिस्सा है।
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विपक्ष चाहता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता के बीच यह संदेश जाए कि मौजूदा सरकार ने धोखे और खरीद-फरोख्त से सत्ता पाई है।
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इससे विपक्ष को वोटरों को एकजुट करने में मदद मिल सकती है।
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वहीं सत्ता पक्ष इस मुद्दे को “जनादेश का असली सम्मान” बताकर विपक्ष को कमजोर करने की कोशिश करेगा।
2024 लोकसभा चुनाव और 2025 विधानसभा चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बेहद अहम होंगे।
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उद्धव ठाकरे गुट की कोशिश होगी कि जनता के बीच “वोट चोरी” और “धोखा” जैसे मुद्दों को बड़ा बनाकर समर्थन जुटाया जाए।
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वहीं शिंदे-बीजेपी गठबंधन अपनी विकास योजनाओं और मोदी सरकार के समर्थन के बूते जनता को साधने की कोशिश करेगा।
संजय राउत का यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर वोट चोरी और जनादेश के अपमान की बहस को हवा दे गया है। शिवसेना (उद्धव गुट) इसे जनता की भावनाओं से जोड़ रहा है, जबकि शिंदे-बीजेपी गुट इसे पूरी तरह वैध और संवैधानिक ठहरा रहा है।
अब देखना होगा कि आने वाले चुनावों में जनता किस पक्ष की बात को ज्यादा महत्व देती है और क्या सचमुच “वोट चोरी” का मुद्दा सरकार बदलने की वजह बन पाएगा या नहीं।