




1972 में उगांडा के तानाशाह इदी आमिन (Idi Amin) ने एक ऐतिहासिक और विवादास्पद आदेश जारी किया: देश में रहने वाले भारतीयों और एशियाई समुदाय को 90 दिनों के भीतर उगांडा छोड़ने का आदेश। यह घटना आज भी वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारतीय प्रवासी समुदाय के इतिहास में अहम मानी जाती है।
इदी आमिन का मानना था कि उगांडा की अर्थव्यवस्था पर भारतीय व्यापारियों और व्यवसायियों का अत्यधिक प्रभाव है। उन्होंने घोषणा की कि सभी भारतीय नागरिकों को उनके संपत्ति और व्यवसाय छोड़कर उगांडा छोड़ना होगा।
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लगभग 60,000 भारतीय और एशियाई परिवार प्रभावित हुए।
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इनमें व्यापारी, पेशेवर और छोटे व्यवसायी शामिल थे।
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लोग तत्काल पैसों और संपत्ति के बिना अपने देश से निकाले गए।
अमरीका और भारत दोनों ने इस घटनाक्रम पर नज़दीकी नजर रखी, क्योंकि यह आर्थिक और राजनीतिक संकट में बदल सकता था।
भारतीय समुदाय उगांडा की अर्थव्यवस्था में केंद्रीय भूमिका निभा रहा था। उनके निष्कासन से:
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व्यापार, बैंकिंग और उद्योग प्रभावित हुए।
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छोटे और बड़े व्यवसाय बंद हुए, जिससे बेरोजगारी बढ़ी।
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देश में आर्थिक अस्थिरता और निवेश में गिरावट आई।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय व्यवसायियों की अनुपस्थिति ने उगांडा की वित्तीय प्रणाली को झटका दिया।
अमेरिका समेत अन्य देशों ने इस पलायन को आर्थिक जोखिम और मानवीय संकट दोनों के रूप में देखा।
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अमेरिकी अधिकारियों ने भारतीयों के पलायन से पैदा होने वाले व्यापार और निवेश असंतुलन का आकलन किया।
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अमेरिका ने अमेरिकी कंपनियों और निवेशकों को सलाह दी कि उगांडा की परिस्थिति में सतर्क रहें।
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भारतीय प्रवासी अमेरिका और ब्रिटेन समेत अन्य देशों में शरण लेने लगे, जिससे ये देशों की अर्थव्यवस्था और समाज पर भी प्रभाव पड़ा।
भारतीय नागरिकों के लिए पलायन कठिन था।
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सीमित समय में संपत्ति बेचनी पड़ी, अक्सर संपत्ति का मूल्य असंतुलित था।
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कई लोग ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और भारत लौटने के लिए मजबूर हुए।
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प्रवासियों ने नए देशों में रोजगार और व्यवसाय स्थापित करने में लंबा संघर्ष किया।
इस पलायन ने भारतीय समुदाय के लचीलापन और उद्यमिता को प्रदर्शित किया।
भारतीय सरकार ने अपने नागरिकों की मदद के लिए तत्काल कदम उठाए।
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कई भारतीय परिवारों को राहत और पुनर्वास की सुविधा दी गई।
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उगांडा सरकार से मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अपील की।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक और कूटनीतिक संबंधों को भी प्रभावित कर सकती थी। अमेरिका ने भारत के साथ सहयोग बनाए रखा, ताकि शरणार्थियों और वैश्विक निवेशों को समर्थन मिल सके।
उगांडा का भारतीय पलायन आज भी अर्थव्यवस्था और प्रवासन नीति के अध्ययन में उदाहरण के तौर पर लिया जाता है।
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छोटे और मध्यम व्यवसायी किस हद तक अर्थव्यवस्था को स्थिर रख सकते हैं, यह साफ हुआ।
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विदेशों में भारतीय समुदाय के योगदान ने वैश्विक व्यापार में उनकी महत्वता को रेखांकित किया।
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सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के लिए यह सुरक्षा और आर्थिक विविधता का सबक है।
इस पलायन ने भारतीय समुदाय की सांस्कृतिक पहचान और एकजुटता को भी उजागर किया।
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प्रवासी भारतीयों ने नई भूमि में शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक योगदान दिया।
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अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में भारतीय समुदाय ने शिक्षा और उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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यह पलायन आज भी भारतीय डायस्पोरा के इतिहास में गौरव और संघर्ष का प्रतीक है।
उगांडा के इदी आमिन के आदेश पर भारतीयों का पलायन केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी, बल्कि इसका आर्थिक, सामाजिक और वैश्विक असर भी महत्वपूर्ण था।
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भारतीय व्यवसायियों की अनुपस्थिति ने उगांडा की अर्थव्यवस्था को झटका दिया।
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अमेरिका और अन्य देशों ने इसे आर्थिक जोखिम के रूप में देखा।
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प्रवासी भारतीयों ने नई जमीन पर अपने कौशल और उद्यमिता से समाज और अर्थव्यवस्था को नया आयाम दिया।
यह ऐतिहासिक घटना आज भी आर्थिक नीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध और प्रवासन अध्ययन में अध्ययन का प्रमुख विषय बनी हुई है।