




उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी हलचल उस समय देखने को मिली जब सीनियर समाजवादी पार्टी नेता और रामपुर से विधायक रहे आज़म खान को आखिरकार जेल से रिहा कर दिया गया। उन पर लगे 72 मामलों में अदालत से जमानत मिलने के बाद उनका बाहर आना न केवल सपा कार्यकर्ताओं के लिए सुकून की बात रही बल्कि प्रदेश की सियासत में भी एक नए समीकरण की आहट महसूस की गई।
आज़म खान की रिहाई पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह “न्याय की जीत और सरकार की साजिशों की हार” है। अखिलेश ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने राजनीतिक द्वेष और प्रतिशोध की राजनीति के चलते आज़म खान को वर्षों तक जेल में रखा। उन्होंने यह भी कहा कि आज़म खान के खिलाफ लगाए गए अधिकांश मुकदमे बेबुनियाद थे और जनता भी यह जानती थी कि यह सब एक सुनियोजित तरीके से किया गया।
अखिलेश यादव ने अपने बयान में कहा कि आज़म खान का संघर्ष उन तमाम लोगों के लिए मिसाल है जो सत्ता की प्रताड़ना झेल रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने लोकतंत्र की मर्यादाओं को तोड़ा और राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए प्रशासन और कानून का दुरुपयोग किया। लेकिन अंततः अदालत ने सच को सामने रखा और न्याय की जीत हुई।
सपा प्रमुख का यह बयान न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाला है बल्कि आगामी विधानसभा उपचुनाव और 2025 के बड़े राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकता है। रामपुर, जहाँ से आज़म खान का गहरा जुड़ाव है, हमेशा से सपा का गढ़ माना जाता रहा है। उनकी रिहाई के बाद पार्टी को उम्मीद है कि वहाँ का सपा का जनाधार और मज़बूत होगा।
आज़म खान पर दर्ज प्रमुख मामले
आज़म खान के खिलाफ 2017 से 2022 के बीच कुल 72 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से कई मामलों ने खासा तूल पकड़ा। कुछ अहम मामले इस प्रकार रहे:
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जौहर यूनिवर्सिटी भूमि घोटाला – आरोप था कि आज़म खान और उनके सहयोगियों ने अवैध तरीके से किसानों की जमीन लेकर उसे जौहर यूनिवर्सिटी में शामिल किया। कई किसानों ने अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी।
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पुस्तकालय से किताबें चोरी – रामपुर के एक सरकारी पुस्तकालय से दुर्लभ किताबें और पांडुलिपियाँ गायब होने का मामला भी उनके खिलाफ दर्ज हुआ था। आरोप था कि ये किताबें उनकी यूनिवर्सिटी में पाई गईं।
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भैंस चोरी का मामला – 2017 में रामपुर पुलिस ने उनके खिलाफ भैंस चोरी और अवैध कब्ज़े का केस भी दर्ज किया था, जिसने उस समय मीडिया में खूब सुर्खियाँ बटोरी थीं।
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विद्युत चोरी और सरकारी संपत्ति नुकसान – कई मामलों में उन पर विद्युत चोरी और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के आरोप लगे।
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भड़काऊ भाषण और दंगा भड़काने के आरोप – चुनावी रैलियों में भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने के लिए भी कई मुकदमे दर्ज किए गए।
इन मामलों को लेकर भाजपा लगातार यह कहती रही कि आज़म खान और उनका परिवार कानून का उल्लंघन करता रहा है। वहीं, समाजवादी पार्टी और उनके समर्थक इसे पूरी तरह राजनीतिक साजिश बताते रहे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आज़म खान की रिहाई के बाद समाजवादी पार्टी को एक बार फिर मुस्लिम वोट बैंक को साधने में मदद मिलेगी। पिछले कुछ सालों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत की है, लेकिन आज़म खान जैसे बड़े मुस्लिम नेता का सक्रिय होना भाजपा के लिए चुनौती साबित हो सकता है।
हालांकि, भाजपा नेताओं ने अखिलेश यादव के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि आज़म खान के खिलाफ दर्ज मुकदमे न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा थे और सरकार ने किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया। भाजपा प्रवक्ताओं का कहना है कि कानून अपना काम कर रहा है और अदालत ने अपने स्तर पर निर्णय दिया है।
आज़म खान की रिहाई को लेकर समाजवादी पार्टी कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल है। रामपुर और लखनऊ में जगह-जगह मिठाइयाँ बांटी गईं और ढोल-नगाड़ों के साथ कार्यकर्ताओं ने खुशी मनाई। पार्टी नेताओं का कहना है कि आज़म खान के सक्रिय होने से पार्टी को 2025 विधानसभा चुनाव में जबरदस्त फायदा होगा।
अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि भाजपा सरकार विपक्ष की आवाज़ दबाने में विश्वास रखती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से आज़म खान को फंसाने की कोशिश की गई, उसी तरह अन्य विपक्षी नेताओं को भी परेशान किया जा रहा है। लेकिन जनता सब देख रही है और समय आने पर इसका जवाब देगी।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि आज़म खान की रिहाई समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच संभावित गठबंधन को भी मजबूती दे सकती है। विपक्ष एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ बड़ा मोर्चा तैयार करने की कोशिश में है। ऐसे में आज़म खान जैसे वरिष्ठ और कद्दावर नेता की मौजूदगी सपा के लिए बड़ा हथियार साबित हो सकती है।
रामपुर और आसपास के जिलों में आज़म खान का प्रभाव काफी ज्यादा है। उनकी रिहाई के बाद वहाँ के सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं। भाजपा की कोशिश रहेगी कि वह वहाँ अपने जनाधार को बनाए रखे, लेकिन सपा के बढ़ते उत्साह को देखते हुए मुकाबला कड़ा होना तय है।
निष्कर्षतः, आज़म खान की रिहाई न केवल कानूनी और राजनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह आने वाले चुनावों के लिए भी निर्णायक साबित हो सकती है। अखिलेश यादव का बयान इस बात की तरफ इशारा करता है कि समाजवादी पार्टी इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने की तैयारी में है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि आज़म खान की सक्रिय राजनीति में वापसी सपा को कितनी मजबूती देती है और भाजपा के लिए कितनी चुनौती खड़ी करती है।