




2024 का साल पूरी दुनिया के लिए जलवायु संकट की भयावह तस्वीर लेकर आया। यूरोप, जो तकनीकी और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से विकसित महाद्वीप माना जाता है, वहां बीते साल 62,700 से अधिक लोगों की मौत केवल भीषण गर्मी (Heatwave) की वजह से हुई। यह खुलासा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में हुआ है।
यह आंकड़ा न केवल यूरोप के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन अब इंसानी जीवन को सीधे प्रभावित कर रहा है।
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यूरोप में 2024 के दौरान असामान्य हीटवेव दर्ज की गई।
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औसतन हर हफ्ते कई देशों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गया।
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दक्षिणी यूरोप के देश जैसे स्पेन, इटली, ग्रीस और पुर्तगाल सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
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कुल मिलाकर 62,700 से अधिक लोगों की मौत का सीधा संबंध गर्मी से होने वाली बीमारियों से जोड़ा गया।
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स्पेन और इटली में मौतों की संख्या सबसे अधिक रही।
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ग्रीस और पुर्तगाल में आगजनी और गर्म हवाओं ने स्थिति और बिगाड़ी।
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फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में भी वृद्ध लोगों और बच्चों पर हीट स्ट्रेस का असर ज्यादा दिखा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप में मौतों की इतनी बड़ी संख्या के पीछे कई वजहें हैं:
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जलवायु परिवर्तन (Climate Change): ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती का औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है।
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बढ़ता शहरीकरण: बड़े शहरों में कंक्रीट और डामर ने हीट आइलैंड इफेक्ट को बढ़ा दिया है।
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कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली: हीटवेव के दौरान अस्पतालों पर अचानक बढ़े बोझ से स्वास्थ्य सेवाएँ प्रभावित हुईं।
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संवेदनशील आबादी: बुजुर्ग, बच्चे और पहले से बीमार लोग सबसे ज्यादा शिकार बने।
जलवायु वैज्ञानिकों ने साफ कहा है कि अगर मौजूदा हालात पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाले वर्षों में हीटवेव मौतों का आंकड़ा दोगुना हो सकता है।
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2024 यूरोप के लिए एक रिकॉर्डतोड़ गर्म साल था, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि यह अब नया सामान्य (New Normal) बन सकता है।
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उन्होंने कहा कि आने वाले दशक में यूरोप समेत पूरी दुनिया को स्वास्थ्य, कृषि और ऊर्जा क्षेत्र में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस रिपोर्ट पर चिंता जताई है और कहा है कि दुनिया को अब हीटवेव को भी प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में देखना चाहिए।
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संयुक्त राष्ट्र (UN) ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन पर तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक लाखों लोगों की समय से पहले मौत हो सकती है।
यूरोप की यह त्रासदी केवल यूरोप तक सीमित नहीं है।
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भारत और एशिया के कई देश पहले से ही हर साल गर्मी और लू (Heatwave) की चपेट में आते हैं।
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2024 में भारत में भी हीटवेव से कई राज्यों में सैकड़ों मौतें दर्ज की गई थीं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यूरोप जैसी विकसित जगहें हीटवेव का मुकाबला नहीं कर पा रहीं, तो विकासशील देशों को अब से ही पुख्ता तैयारी करनी होगी।
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ग्रीनहाउस गैसों पर नियंत्रण: जीवाश्म ईंधन की खपत कम करनी होगी।
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ग्रीन कवर बढ़ाना: शहरी इलाकों में पेड़-पौधे और ग्रीन स्पेस बढ़ाना जरूरी है।
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कूलिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: अस्पतालों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर हीट रेजिलिएंट सिस्टम लगाने होंगे।
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लोगों को जागरूक करना: आम जनता को हीटवेव से बचाव के तरीकों और लक्षणों की जानकारी दी जानी चाहिए।
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यूरोप के कई हिस्सों में गर्मी की वजह से बिजली खपत बढ़ी और पावर ग्रिड पर दबाव पड़ा।
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किसानों को फसलें बर्बाद होने का नुकसान झेलना पड़ा।
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पानी की खपत और संकट दोनों ही बढ़ गए।
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सबसे दुखद यह रहा कि हजारों लोगों ने केवल इसलिए जान गंवाई क्योंकि वे समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं पा सके।
2024 में यूरोप में हुई 62,700 से अधिक मौतें पूरी दुनिया के लिए चेतावनी हैं। यह केवल एक मौसम संबंधी आपदा नहीं, बल्कि जलवायु संकट का वास्तविक चेहरा है।
अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में न केवल यूरोप बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया को मानव जीवन, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर गंभीर खतरे झेलने पड़ेंगे।
समय रहते कार्बन उत्सर्जन कम करना और जलवायु-अनुकूल नीतियाँ लागू करना ही भविष्य को बचाने का एकमात्र रास्ता है।