




अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव लंबे समय से चर्चा में रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए थे, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक दबाव और बढ़ गया। इसी पृष्ठभूमि में चीन ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अपने विकासशील देशों का दर्जा छोड़ने का ऐतिहासिक कदम उठाया है।
अमेरिका लंबे समय से यह तर्क देता रहा है कि चीन को विकासशील देश का दर्जा छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। विकासशील देश होने के नाते चीन को कई विशेषाधिकार मिलते थे। इनमें शामिल थे:
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आयात के लिए अपने बाजार खोलने की कम जरूरतें
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बाजार खोलने के कदमों को लागू करने के लिए अधिक समय
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कम दर के ड्यूटी और टैरिफ छूट
चीन के इस कदम को विशेषज्ञों ने रणनीतिक और वैश्विक व्यापार में जिम्मेदारीपूर्ण भूमिका निभाने वाला निर्णय बताया है। चीन का कहना है कि अब वह विकसित देशों के नियमों के तहत व्यापार करेगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी और व्यापारिक समझौतों में संतुलन आएगा।
इस फैसले का असर न केवल चीन और अमेरिका के बीच संबंधों पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार, निवेश और WTO नियमों पर भी नजर रखी जाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अब चीन को अपने निर्यात और आयात नीतियों में बदलाव करने पड़ सकते हैं। इसके साथ ही चीन पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ और प्रभावी हो सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, चीन की यह नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसके स्थायित्व और प्रतिस्पर्धा की क्षमता को बनाए रखने का एक प्रयास है। वहीं आलोचक इसे अमेरिकी दबाव के तहत लिया गया कदम मान रहे हैं।
चीन के इस निर्णय से अन्य विकासशील देशों की नज़र भी प्रभावित होगी। कई विकासशील देशों ने पहले ही चीन की विकासशील देश की स्थिति पर सवाल उठाए थे। अब चीन का यह कदम वैश्विक व्यापार में नए समीकरणों को जन्म दे सकता है।
चीन द्वारा विकासशील देश का दर्जा छोड़ना एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक कदम है। यह अमेरिका के टैरिफ दबाव और वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धा में चीन की नई दिशा को दर्शाता है। आने वाले समय में इसका असर अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा।