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इजरायल-फिलिस्तीन विवाद दुनिया के सबसे जटिल और लंबे समय से चले आ रहे संघर्षों में से एक है। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बयान में कहा कि इजरायल और अमेरिका पर दबाव बनाए रखना जरूरी है ताकि फिलिस्तीन को मान्यता मिल सके। उनके इस बयान ने एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति और मध्य पूर्व की शांति प्रक्रिया को सुर्खियों में ला दिया है।
फिलिस्तीन का संघर्ष – लंबा और कठिन रास्ता
फिलिस्तीन का संघर्ष केवल भौगोलिक विवाद नहीं है, बल्कि यह पहचान, अस्तित्व और आत्मनिर्णय का सवाल है।
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1948 में इजरायल के गठन के बाद लाखों फिलिस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए।
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दशकों से फिलिस्तीनी अपनी जमीन और अधिकारों को वापस पाने की कोशिश करते रहे हैं।
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संयुक्त राष्ट्र ने कई बार दो-राष्ट्र समाधान की बात कही, लेकिन वास्तविकता यह रही कि फिलिस्तीन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता कम और असफलताएँ अधिक मिलीं।
ट्रंप का रुख और राजनीतिक वजहें
डोनाल्ड ट्रंप ने इजरायल को लेकर अपने कार्यकाल में कई विवादास्पद फैसले लिए थे, जिनमें जेरूसलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता देना भी शामिल था। हालांकि, अब उनका यह कहना कि “अमेरिका और इजरायल पर दबाव बनाना जरूरी है” एक रणनीतिक बदलाव माना जा रहा है।
इसके पीछे कई राजनीतिक वजहें हो सकती हैं:
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अमेरिकी चुनावी राजनीति – ट्रंप फिलिस्तीन समर्थक और मुस्लिम देशों में अपनी छवि सुधारना चाहते हैं।
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मध्य पूर्व में संतुलन – हाल के वर्षों में अरब देशों और इजरायल के बीच अब्राहम समझौते के जरिए रिश्ते सुधरे हैं। ट्रंप फिलिस्तीन का मुद्दा उठाकर इस संतुलन को अपने पक्ष में करना चाहते हैं।
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वैश्विक दबाव – यूरोप और संयुक्त राष्ट्र बार-बार फिलिस्तीन की स्थिति पर चिंता जताते रहे हैं। ट्रंप का बयान इस दबाव को साधने की कोशिश हो सकता है।
अमेरिका और इजरायल पर दबाव – क्यों जरूरी?
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका इजरायल का सबसे बड़ा समर्थक माना जाता है। यही कारण है कि किसी भी शांति प्रक्रिया में वॉशिंगटन की भूमिका अहम होती है। ट्रंप का कहना है कि जब तक अमेरिका और इजरायल पर दबाव नहीं बनाया जाएगा, तब तक फिलिस्तीन को न्याय नहीं मिल पाएगा।
उनका इशारा यह है कि बाहरी दबाव और अंतरराष्ट्रीय दबाव ही इजरायल को समझौते के लिए मजबूर कर सकता है।
फिलिस्तीन – बना कम, मिटा ज्यादा
फिलिस्तीन ने अपने लंबे संघर्ष में बहुत कुछ खोया है।
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क्षेत्रीय अखंडता की कमी
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आर्थिक संकट और बेरोजगारी
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आंतरिक राजनीतिक विभाजन (फतह और हमास के बीच टकराव)
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शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर असर
इन सब कारणों से फिलिस्तीन को विश्व स्तर पर एक स्थिर राष्ट्र के रूप में स्थापित होने में मुश्किलें आई हैं।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
संयुक्त राष्ट्र सहित कई अंतरराष्ट्रीय संगठन फिलिस्तीन को मान्यता देने की वकालत करते रहे हैं। अब तक 130 से अधिक देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दी है, लेकिन अमेरिका और कई पश्चिमी शक्तियों का समर्थन न मिल पाने की वजह से वह पूर्ण सदस्यता हासिल नहीं कर सका।
ट्रंप के इस बयान के बाद कूटनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या अमेरिका का रुख बदल सकता है? हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी भी हो सकती है।
इजरायल की प्रतिक्रिया
इजरायल ने हमेशा से यह स्पष्ट किया है कि फिलिस्तीन को मान्यता तभी मिलेगी जब वह हिंसा छोड़कर शांति वार्ता के लिए तैयार होगा। इजरायल का मानना है कि फिलिस्तीन की राजनीतिक नेतृत्व में भरोसे की कमी है और उसकी सुरक्षा को खतरा बना हुआ है।
ट्रंप के बयान पर इजरायल ने अभी तक सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इजरायली मीडिया में इसे “अमेरिकी राजनीति का हिस्सा” बताया जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान कि इजरायल और अमेरिका पर दबाव बनाना जरूरी है, फिलिस्तीन की लंबे समय से चली आ रही संघर्ष यात्रा को नए सिरे से राजनीतिक बहस में ला खड़ा करता है। फिलिस्तीन ने यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसकी राह में रुकावटें ज्यादा और सफलताएं कम रही हैं।







