




मुंबई के शिवाजी पार्क में इस बार दशहरा रैली ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति को गर्मा दिया। शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे गुट की यह रैली स्थानीय निकाय चुनावों से पहले बेहद अहम मानी जा रही थी। राजनीतिक हलकों में कयास लगाए जा रहे थे कि इस रैली में उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे एक साथ मंच साझा कर सकते हैं। ऐसा होने की संभावना को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और राजनीतिक विश्लेषकों में खासा उत्साह देखा जा रहा था। लेकिन आखिरकार उम्मीदों के विपरीत ऐसा नहीं हुआ। बारिश के बीच केवल उद्धव ठाकरे मंच पर दिखाई दिए और उन्होंने अकेले ही अपनी ताकत का प्रदर्शन किया।
शिवसेना की दशहरा रैली हमेशा से महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाती आई है। बालासाहेब ठाकरे के समय से ही यह रैली शिवाजी पार्क की पहचान बन चुकी है। इस परंपरा को उद्धव ठाकरे ने भी आगे बढ़ाया है। इस बार जब रैली का आयोजन किया गया तो चर्चा का केंद्र यह था कि क्या उद्धव और राज ठाकरे राजनीतिक मतभेदों को पीछे छोड़ एक साथ मंच पर आएंगे। लेकिन जब रैली का दृश्य सामने आया तो तस्वीर बिल्कुल अलग थी। राज ठाकरे की गैरमौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज ठाकरे की गैरहाज़िरी केवल व्यक्तिगत कारणों से नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकती है। उद्धव ठाकरे इस समय अपनी पार्टी को मजबूती देने और कार्यकर्ताओं में विश्वास जगाने में लगे हैं। वहीं, राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के साथ अलग रास्ता अपना चुके हैं। ऐसे में दोनों का एक साथ आना संभवतः दोनों दलों की राजनीतिक दिशा को उलझा सकता था। यही वजह है कि राज ठाकरे ने इस मंच से दूरी बनाई और उद्धव ने अकेले ही नेतृत्व का प्रदर्शन किया।
रैली के दौरान उद्धव ठाकरे ने अपनी परंपरागत आक्रामक शैली में भाषण दिया। उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधा और जनता को यह संदेश देने की कोशिश की कि शिवसेना UBT आज भी मजबूती से खड़ी है। बारिश के बावजूद बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और समर्थक रैली में शामिल हुए। इससे यह साबित हुआ कि ठाकरे परिवार की राजनीति अभी भी मुंबई और महाराष्ट्र के लोगों के बीच गहरी पैठ रखती है।
राज ठाकरे की अनुपस्थिति ने न केवल रैली की दिशा बदली, बल्कि राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दिया। कई लोगों का मानना है कि अगर दोनों नेता एक साथ आते तो शिवसेना का संदेश और मजबूत होता। लेकिन फिलहाल ऐसा न होना इस बात की ओर इशारा करता है कि ठाकरे परिवार की राजनीति अभी भी बंटवारे की स्थिति में है।
महाराष्ट्र में आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों के मद्देनज़र यह रैली और भी महत्वपूर्ण थी। उद्धव ठाकरे ने इसमें पार्टी की ताकत दिखाने के साथ-साथ मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि उनकी पार्टी अब भी असली शिवसेना की पहचान रखती है। हालांकि, राज ठाकरे की गैरमौजूदगी ने कार्यकर्ताओं के बीच हल्की निराशा भी पैदा की।
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई। कई लोगों ने उद्धव ठाकरे की हिम्मत और नेतृत्व की सराहना की कि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अकेले मंच संभाला। वहीं, कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि ठाकरे परिवार की एकता क्यों नहीं दिख पाई। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ हो गया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार की दोनों धाराएँ फिलहाल अलग-अलग रास्तों पर चल रही हैं।
हालांकि, रैली के आयोजन और उद्धव ठाकरे के भाषण ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे महाराष्ट्र की राजनीति में किसी भी कीमत पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका यह भाषण स्थानीय निकाय चुनावों के लिए कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने का प्रयास भी था।
अंततः, शिवसेना UBT की इस दशहरा रैली ने कई संदेश दिए। पहला यह कि उद्धव ठाकरे अब भी अपने समर्थकों के बीच मजबूत नेता के तौर पर खड़े हैं। दूसरा यह कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच की दूरी फिलहाल बनी हुई है। तीसरा यह कि महाराष्ट्र की राजनीति में दशहरा रैली अब भी शक्ति प्रदर्शन का अहम मंच है।
इस बार की रैली ने एक बार फिर यह साबित किया कि शिवाजी पार्क केवल मैदान नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्ति का प्रतीक है। उद्धव ठाकरे ने बारिश के बीच अकेले दहाड़कर यह दिखा दिया कि वे किसी भी चुनौती से पीछे हटने वाले नहीं हैं। वहीं, राज ठाकरे की गैरमौजूदगी ने यह सवाल छोड़ दिया है कि क्या भविष्य में ठाकरे परिवार कभी फिर से एक साथ आएगा या नहीं।