




भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे पहली सड़कीय सुरंग बनाने की योजना तेजी से आकार ले रही है। यह परियोजना असम के गहपुर और नुमालीगढ़ को जोड़ने वाली है और केंद्रीय मंत्रिमंडल से जल्द ही स्वीकृति मिलने की संभावना है। इस सुरंग के निर्माण से न केवल यात्रा समय में भारी कमी आएगी, बल्कि यह क्षेत्रीय विकास और सुरक्षा के लिहाज से भी महत्वपूर्ण साबित होगी।
परियोजना का उद्देश्य और महत्व
यह सुरंग असम के बुनियादी ढांचे में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी। वर्तमान में गहपुर और नुमालीगढ़ के बीच यात्रा करने में लगभग 6.5 घंटे का समय लगता है, लेकिन इस सुरंग के बनने से यह समय घटकर केवल 30 मिनट रह जाएगा। यह यात्रा दूरी को 240 किलोमीटर से घटाकर 34 किलोमीटर तक सीमित कर देगा, जिससे समय और ईंधन की बचत होगी।
सुरंग की संरचना और तकनीकी पहलू
इस सुरंग का डिज़ाइन चार-लेन वाली होगी, जिसमें दो-ट्यूब, एक-दिशात्मक सुरंगें शामिल होंगी। यह सुरंग न केवल सड़कीय यातायात के लिए, बल्कि रणनीतिक और रक्षा उद्देश्यों के लिए भी महत्वपूर्ण होगी। सुरंग के निर्माण में अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाएगा, जिससे इसकी सुरक्षा और स्थायित्व सुनिश्चित होगा।
परियोजना की लागत और वित्तपोषण
इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग ₹6,000 करोड़ है। इसे एक ग्रीनफील्ड परियोजना के रूप में विकसित किया जाएगा, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों का सहयोग होगा। परियोजना के लिए आवश्यक वित्तपोषण की व्यवस्था की जा रही है, और इसे जल्द ही मंजूरी मिलने की संभावना है।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
इस सुरंग के निर्माण से पर्यावरणीय प्रभावों को न्यूनतम करने के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे। सुरंग के आसपास के क्षेत्रों में वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। साथ ही, स्थानीय समुदायों को भी परियोजना से होने वाले लाभों का हिस्सा बनाया जाएगा, जिससे सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
भविष्य की संभावनाएँ
इस सुरंग के निर्माण से असम और उत्तर-पूर्वी भारत के अन्य राज्यों के बीच संपर्क सुलभ होगा, जिससे व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, यह सुरंग क्षेत्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि यह सीमा क्षेत्रों में त्वरित सैन्य आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगी।
असम में ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे बनने वाली यह पहली सड़कीय सुरंग न केवल एक तकनीकी उपलब्धि होगी, बल्कि यह क्षेत्रीय विकास, सुरक्षा और सामाजिक समावेशन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित होगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल से जल्द ही स्वीकृति मिलने की संभावना है, जिससे इस महत्वाकांक्षी परियोजना की दिशा में एक और कदम बढ़ेगा।