




आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) — जिसे आज टेक्नोलॉजी का भविष्य कहा जा रहा है — अब विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय बन गया है। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि AI का यह उफान अब एक “वित्तीय बुलबुले” (Financial Bubble) में बदल चुका है, जो कभी भी फट सकता है। यह संकट 2008 के वैश्विक आर्थिक मंदी से भी बड़ा साबित हो सकता है।
इस बुलबुले का आकार और संभावित प्रभाव इतना विशाल बताया जा रहा है कि अर्थशास्त्री इसे डॉट-कॉम बबल (2000) से 17 गुना अधिक गंभीर मान रहे हैं। यदि यह फटता है, तो न केवल अमेरिका या यूरोप, बल्कि भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा।
एआई की तेज़ रफ्तार और बढ़ी हुई उम्मीदें
पिछले दो वर्षों में दुनिया भर की टेक कंपनियों ने AI में अरबों डॉलर का निवेश किया है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेज़न और मेटा जैसी दिग्गज कंपनियों ने अपनी हर प्रोडक्ट लाइन में AI को शामिल किया है।
स्टार्टअप्स की बात करें तो, हर दूसरे संस्थापक खुद को “AI इनोवेटर” बताने लगा है।
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि कई कंपनियां अपने AI प्रोजेक्ट्स के वास्तविक परिणामों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही हैं। इसका मकसद निवेशकों को आकर्षित करना और कंपनी के शेयर मूल्य को ऊंचा दिखाना है।
इकोनॉमिक एनालिस्ट्स का दावा है कि यह स्थिति बेहद खतरनाक है, क्योंकि कंपनियों के पास असल में कोई ठोस प्रॉफिट मॉडल नहीं है, सिर्फ “भविष्य की उम्मीदें” हैं।
2008 से भी बड़ा संकट क्यों?
2008 का वित्तीय संकट हाउसिंग और बैंकिंग सेक्टर के पतन से शुरू हुआ था। लेकिन इस बार खतरा कहीं बड़ा है क्योंकि यह टेक्नोलॉजी आधारित निवेशों में फैला हुआ है।
AI पर आधारित प्रोजेक्ट्स में निवेश करने वाले फंड्स, स्टॉक्स और कंपनियों की वैल्यूएशन इतनी तेजी से बढ़ी है कि वे वास्तविक उत्पादन या मुनाफे से मेल नहीं खातीं।
अमेरिकी वित्त विशेषज्ञ डेविड रोसेनबर्ग ने कहा,
“AI सेक्टर फिलहाल उसी रास्ते पर है, जिस पर 1999 में डॉट-कॉम कंपनियां चली थीं। फर्क सिर्फ इतना है कि आज दांव बहुत बड़ा है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि जब यह बुलबुला फटेगा, तो इसका असर बैंकिंग, रोजगार और निवेश बाजार — तीनों पर एक साथ पड़ेगा।
भारत पर पड़ सकता है गहरा असर
भारत AI टेक्नोलॉजी में तेजी से निवेश कर रहा है।
नीति आयोग और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में AI आधारित स्टार्टअप्स की संख्या पिछले तीन सालों में 8 गुना बढ़ी है।
हालांकि, इनमें से 70% कंपनियां अभी तक लाभ में नहीं पहुंची हैं। वे सिर्फ फंडिंग के सहारे चल रही हैं।
यदि वैश्विक स्तर पर निवेशकों का भरोसा टूटता है, तो इन स्टार्टअप्स पर इसका सबसे बड़ा असर पड़ेगा।
भारत के आईटी सेक्टर, जो पहले ही अमेरिका और यूरोप से मिलने वाले ऑर्डर्स पर निर्भर है, को भी झटका लग सकता है।
वहीं, भारतीय शेयर बाजार में टेक कंपनियों के शेयरों में गिरावट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की राय: “बबल जल्द फटेगा”
कई मार्केट एनालिस्ट्स का मानना है कि AI बुलबुला अगले 12 से 18 महीनों में फट सकता है।
इसकी प्रमुख वजहें हैं —
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अत्यधिक निवेश और कम रिटर्न,
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कंपनियों के ओवरवैल्यूएशन,
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और टेक सेक्टर में सट्टेबाज़ी का बढ़ता चलन।
वित्त विशेषज्ञ रॉबर्ट कियोसाकी (Rich Dad Poor Dad के लेखक) ने भी हाल में कहा कि,
“AI का बबल डॉट-कॉम और क्रिप्टो से भी बड़ा है। इसका विस्फोट इतिहास में सबसे बड़ी आर्थिक गिरावट ला सकता है।”
क्या भारत तैयार है इस चुनौती के लिए?
भारत के पास इस संकट से निपटने के लिए कुछ मजबूत पहलें हैं —
जैसे कि ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, और ‘AI फॉर ऑल’ प्रोग्राम।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अब सिर्फ नवाचार नहीं, बल्कि जोखिम प्रबंधन (Risk Management) पर ध्यान देना होगा।
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को भी AI फंडिंग और स्टार्टअप निवेश से जुड़े वित्तीय जोखिमों की निगरानी बढ़ानी चाहिए।
इसके अलावा, सरकार को ऐसे नियामक ढांचे की जरूरत है जो “AI में सट्टा निवेश” को रोक सके।
निवेशकों के लिए चेतावनी
विशेषज्ञ निवेशकों को सलाह दे रहे हैं कि AI स्टॉक्स या स्टार्टअप्स में निवेश करते समय सावधानी बरतें।
सिर्फ “हाइप” देखकर पैसा लगाना खतरनाक साबित हो सकता है।
इसके बजाय उन कंपनियों पर ध्यान दें जो असली समस्या का समाधान पेश कर रही हैं और जिनका बिजनेस मॉडल स्थायी है।
AI की दौड़ दुनिया को तकनीकी रूप से आगे बढ़ा रही है, लेकिन इसकी रफ्तार आर्थिक जोखिम भी बढ़ा रही है।
जैसे 2008 में बैंकिंग सिस्टम धराशायी हुआ था, वैसे ही यह AI का बुलबुला भी वैश्विक बाजार को हिला सकता है।