




भारत ने एक बार फिर वैश्विक रक्षा बाजार में अपनी ताकत का लोहा मनवाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत देश का डिफेंस एक्सपोर्ट यानी रक्षा निर्यात अब रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। बीते 11 वर्षों में भारत के रक्षा निर्यात में 34 गुना की वृद्धि दर्ज की गई है। इसका सीधा मतलब है कि भारत अब रक्षा उपकरणों के मामले में आयातक नहीं, बल्कि निर्यातक देश बनता जा रहा है।
जहां पहले भारत अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों पर निर्भर था, वहीं अब वह 80 से अधिक देशों को गोला-बारूद, मिसाइल सिस्टम, रडार, हेलीकॉप्टर पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर उपकरण एक्सपोर्ट कर रहा है।
ट्रंप के टैरिफ को मात, भारत ने दिखाया दम
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने अपने रक्षा निर्यात को रुकने नहीं दिया। भारतीय रक्षा उद्योग ने घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाया और वैश्विक मांगों के अनुरूप तकनीक का विकास किया।
ट्रंप के टैरिफ का असर उस समय भारत के निर्यात पर पड़ा था, जब अमेरिकी प्रशासन ने कई रक्षा सौदों पर नए शुल्क लगाए थे। लेकिन भारत ने अपनी नीति नहीं बदली। सरकार ने न केवल मेक इन इंडिया इन डिफेंस पहल को मजबूत किया, बल्कि निजी कंपनियों को भी उत्पादन और निर्यात की अनुमति दी।
आज परिणाम सबके सामने है — भारतीय रक्षा उद्योग 40,000 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक निर्यात स्तर को छू चुका है, जो एक दशक पहले महज कुछ सौ करोड़ तक सीमित था।
4 भारतीय कंपनियों ने रचा सफलता का इतिहास
भारत के रक्षा निर्यात को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में चार प्रमुख कंपनियों की अहम भूमिका रही है। इनमें हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स शामिल हैं।
इन कंपनियों ने रक्षा उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि की है। HAL ने जहां तेजस फाइटर जेट्स और ध्रुव हेलीकॉप्टर का निर्यात बढ़ाया, वहीं BEL ने रडार और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम की सप्लाई के जरिए वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ मजबूत की।
टाटा और लार्सन एंड टुब्रो जैसी निजी कंपनियों ने भी मिसाइल सिस्टम, नौसेना उपकरण और एयरोस्पेस पार्ट्स के निर्यात में बड़ा योगदान दिया है।
रक्षा मंत्रालय की रणनीति ने बदला खेल
रक्षा मंत्रालय की नई नीतियों ने इस सफलता की नींव रखी है। सरकार ने डिफेंस एक्सपोर्ट के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को सरल बनाया, विदेशी भागीदारी के लिए एफडीआई सीमा 74% तक बढ़ाई, और देश के भीतर रक्षा उत्पादन कॉरिडोर स्थापित किए।
तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में बनाए गए डिफेंस कॉरिडोर अब उत्पादन और निर्यात के बड़े केंद्र बन चुके हैं। इसके अलावा, सरकार ने ‘डिफेंस इंडस्ट्रियल प्रमोशन सेल’ के माध्यम से निर्यातक कंपनियों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में मदद की।
अब भारत 80 देशों को भेज रहा है रक्षा उपकरण
आज भारत अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कई देशों को रक्षा उत्पाद निर्यात कर रहा है। इनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया, वियतनाम, नेपाल, मॉरीशस, केन्या और अर्जेंटीना जैसे देश शामिल हैं।
भारत का गोला-बारूद, आर्टिलरी सिस्टम, रडार और नौसेना उपकरण इन देशों में बड़ी मात्रा में भेजा जा रहा है। खास बात यह है कि भारत अब सिर्फ हल्के हथियार ही नहीं, बल्कि संपूर्ण रक्षा प्लेटफॉर्म भी एक्सपोर्ट करने लगा है — जैसे मिसाइल लॉन्चर, सर्विलांस सिस्टम और UAV (अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स)।
रक्षा निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के पीछे आत्मनिर्भर भारत मिशन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आत्मनिर्भर भारत अभियान ने रक्षा क्षेत्र को नई दिशा दी है। भारत सरकार ने रक्षा उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगाकर घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया।
सरकार ने अब तक 500 से अधिक रक्षा उपकरणों को आयात प्रतिबंध सूची में डाला है, जिनका निर्माण अब देश में ही किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, न केवल आयात पर निर्भरता कम हुई है, बल्कि निर्यात की संभावनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं।
रक्षा मंत्रालय का लक्ष्य है कि 2030 तक भारत 5 बिलियन डॉलर (लगभग 40,000 करोड़ रुपये) का रक्षा निर्यात करे — और मौजूदा रफ्तार से यह लक्ष्य जल्द ही हासिल हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी भारत की प्रतिष्ठा
भारत की रक्षा क्षमताओं में इस उछाल ने उसे वैश्विक मंच पर एक मजबूत और भरोसेमंद सहयोगी के रूप में स्थापित किया है। कई देशों ने भारत के साथ संयुक्त रक्षा उत्पादन और तकनीकी ट्रांसफर समझौते किए हैं।
भारत अब सिर्फ उपभोक्ता नहीं, बल्कि डिफेंस टेक्नोलॉजी का प्रदाता बन रहा है। यह बदलाव आने वाले वर्षों में भारत की जियो-इकोनॉमिक पोजिशन को और मजबूत करेगा।