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    ऋषभ शेट्टी: शहर छोड़कर गांव में बने ‘कांतारा’ के पीछे परिवार की प्रेरक कहानी

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    बॉलीवुड और साउथ फिल्म इंडस्ट्री में कई स्टार्स होते हैं जो सफलता के बाद बड़े शहरों में अपने जीवन को स्थापित कर लेते हैं। लेकिन अभिनेता ऋषभ शेट्टी ने एक अनोखा रास्ता अपनाया। उनकी दो फिल्में 700 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय कर चुकी हैं, फिर भी उन्होंने शहर नहीं चुना बल्कि अपने गांव लौटकर वहां ‘कांतारा’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। यह कदम केवल पेशेवर दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक प्रतिबद्धता की वजह से भी प्रेरक है।

    ऋषभ शेट्टी का संघर्ष किसी सामान्य फिल्म निर्माता जैसा नहीं रहा। ‘कांतारा’ के निर्माण में उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा और समय झोंक दिया। फिल्म की कहानी, निर्देशन, अभिनय और निर्माण के हर पहलू में उनका व्यक्तिगत योगदान साफ झलकता है। लेकिन इस यात्रा में केवल ऋषभ ही नहीं, उनके परिवार ने भी अहम भूमिका निभाई।

    फिल्म बनाने के दौरान उनके परिवार ने कई प्रकार के व्यक्तिगत बलिदान दिए। शहर में सुविधाओं और आराम को त्यागकर गांव में रहना, बच्चों का स्कूल बदलना और शिक्षा व्यवस्था में समायोजन करना, यह सब परिवार के लिए आसान नहीं था। इसके बावजूद, उनकी पत्नी ने हर कदम पर ऋषभ का साथ दिया और परिवार ने उनकी मेहनत और विजन को पूरा समर्थन प्रदान किया।

    ऋषभ शेट्टी के अनुसार, फिल्म निर्माण केवल एक पेशेवर चुनौती नहीं थी, बल्कि यह एक व्यक्तिगत मिशन था। गांव के वातावरण और वहां की जीवनशैली ने फिल्म के लिए सही माहौल प्रदान किया। उन्होंने अपने बचपन और गांव की संस्कृति को स्क्रीन पर उतारने की कोशिश की। इसी वजह से ‘कांतारा’ में एक खास स्थानीयता और प्रामाणिकता देखने को मिलती है, जिसने दर्शकों को बेहद आकर्षित किया।

    इस फिल्म की सफलता केवल बॉक्स ऑफिस आंकड़ों तक सीमित नहीं है। यह उस मेहनत, संघर्ष और परिवार की प्रेरक कहानी का प्रतीक भी है जो एक कलाकार को अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करने के लिए प्रेरित करती है। ऋषभ शेट्टी ने साबित किया कि बड़े शहर और ग्लैमर की दुनिया में रहने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सही दृष्टिकोण, समर्पण और परिवार का सहयोग किसी भी चुनौती को पार कर सकता है।

    वास्तव में, ऋषभ की कहानी अन्य फिल्म निर्माताओं और कलाकारों के लिए भी प्रेरणा है। यह दिखाती है कि सफलता केवल व्यक्तिगत क्षमता पर निर्भर नहीं होती, बल्कि परिवार और प्रियजनों का सहयोग और मानसिक समर्थन भी उतना ही महत्वपूर्ण है। बच्चों का गांव में स्कूल में एडमिशन और परिवार के साथ समय बिताना यह सुनिश्चित करता है कि फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत और पारिवारिक संतुलन भी बना रहे।

    ‘कांतारा’ की सफलता ने दर्शकों और आलोचकों दोनों का ध्यान आकर्षित किया। इसकी कहानी, निर्देशन और अभिनय ने फिल्म को एक विशिष्ट पहचान दिलाई। लेकिन इसके पीछे की कहानी यह भी बताती है कि ऋषभ शेट्टी की मेहनत, परिवार का समर्थन और गांव के मूल्यों का सम्मिलन ही इस ब्लॉकबस्टर को संभव बना पाया।

    इस तरह, ऋषभ शेट्टी की कहानी केवल फिल्म उद्योग में एक सफल उदाहरण नहीं है, बल्कि यह परिवार, संस्कृति और व्यक्तिगत संघर्ष का प्रतीक भी बन चुकी है। उन्होंने यह साबित किया कि अगर दृष्टिकोण सही हो और परिवार का समर्थन मिले तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

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