




भारत के दिग्गज उद्योगपति और Zoho कॉर्पोरेशन के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर एआई पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो आने वाले समय में यह न केवल आर्थिक रूप से चुनौती बनेगा बल्कि ऊर्जा संकट का भी बड़ा कारण बन सकता है।
वेम्बु ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि एआई आधारित तकनीकें, खासकर जनरेटिव एआई मॉडल जैसे ChatGPT और अन्य बड़े भाषा मॉडल, इतनी अधिक बिजली खपत कर रहे हैं कि इससे पावर ग्रिड पर भारी दबाव बढ़ गया है। उन्होंने आगाह किया कि अगर इस खपत पर काबू नहीं पाया गया, तो “एक दिन ऐसा आ सकता है जब एआई सिस्टम चलाने के लिए आम लोगों के घरों की बिजली काटनी पड़े।”
वेम्बु के इस बयान ने टेक्नोलॉजी जगत में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि हर नया एआई मॉडल ऊर्जा की दृष्टि से और भी महंगा साबित हो रहा है। उदाहरण के तौर पर, बड़े एआई सर्वर फार्म्स को ठंडा रखने के लिए जितनी बिजली की आवश्यकता होती है, वह कई छोटे शहरों की कुल खपत के बराबर होती है।
Zoho फाउंडर ने लिखा कि भारत जैसे विकासशील देशों को “ऊर्जा दक्ष एआई मॉडल” विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि एआई के बढ़ते उपयोग के साथ हमें यह समझना होगा कि यह सिर्फ एक तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला असर भी बड़ा मुद्दा है।
उन्होंने कहा, “अगर हम केवल पश्चिमी देशों की नकल करते रहे, जो अत्यधिक ऊर्जा वाले एआई मॉडल पर निर्भर हैं, तो भारत को दोहरी मार झेलनी पड़ेगी — एक तरफ बिजली संकट और दूसरी तरफ आर्थिक दबाव।”
श्रीधर वेम्बु ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रशिक्षण (Training) के दौरान डाटा सेंटर्स पर अत्यधिक लोड पड़ता है। इन सेंटर्स को चालू रखने के लिए हजारों मेगावॉट बिजली की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि एआई का मौजूदा ट्रेंड ऐसे ही चलता रहा तो दुनिया को “एआई-ड्रिवन एनर्जी क्राइसिस” का सामना करना पड़ सकता है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “एआई का विकास रुकना नहीं चाहिए, लेकिन इसे टिकाऊ (Sustainable) बनाना होगा। अगर एआई को जिम्मेदारी से नहीं अपनाया गया, तो यह तकनीक हमारी ऊर्जा आपूर्ति को ही खा जाएगी।”
वेम्बु ने सरकारों और उद्योग जगत से अपील की कि वे जल्द ही इस दिशा में नीतिगत कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि भारत के पास सॉफ्टवेयर और गणित में मजबूत प्रतिभा है, जिसे कम बिजली खपत वाले एआई मॉडल विकसित करने में लगाया जाना चाहिए।
उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को अपनी एआई नीति में “ग्रीन टेक्नोलॉजी” का समावेश करना चाहिए, ताकि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बना रहे। उन्होंने कहा, “अगर भारत ऊर्जा-कुशल एआई मॉडल विकसित करने में अग्रणी बनता है, तो यह न केवल तकनीकी स्वतंत्रता हासिल करेगा बल्कि वैश्विक मंच पर भी नेतृत्व की भूमिका निभा सकेगा।”
वेम्बु ने यह भी चेताया कि वर्तमान में एआई पर काम कर रही कंपनियां अपने कार्बन फुटप्रिंट पर ध्यान नहीं दे रही हैं। उन्होंने कहा कि बड़े एआई मॉडल्स के ट्रेनिंग के दौरान उत्पन्न होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी चिंताजनक स्तर पर है। “अगर एआई का यह अंधाधुंध विस्तार जारी रहा, तो यह जलवायु परिवर्तन के लिए भी खतरा बन सकता है।”
Zoho फाउंडर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब दुनियाभर की टेक कंपनियां एआई में अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा और ओपनएआई जैसी कंपनियां अपने एआई मॉडल्स के लिए विशाल डेटा सेंटर्स बना रही हैं, जिनकी बिजली खपत तेजी से बढ़ रही है।
भारत में भी एआई आधारित सेवाओं और स्टार्टअप्स का दायरा तेजी से बढ़ा है। लेकिन वेम्बु का मानना है कि “अगर यह विस्तार पर्यावरणीय दृष्टि से संतुलित नहीं हुआ, तो देश में बिजली की उपलब्धता पर सीधा असर पड़ेगा।”
उन्होंने कहा कि एआई तकनीक को नियंत्रित करने के लिए केवल डेटा सुरक्षा या नैतिकता की बात नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऊर्जा और पर्यावरण की स्थिरता भी चर्चा का हिस्सा बननी चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “जैसे हमने सौर ऊर्जा में आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए, वैसे ही हमें ‘ऊर्जा-कुशल एआई’ के क्षेत्र में भी अग्रणी बनना होगा।”
वेम्बु के इस बयान के बाद कई उद्योग विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भी सहमति जताई है। उनका कहना है कि अगर एआई के कारण बिजली की मांग इसी गति से बढ़ती रही, तो आने वाले वर्षों में ग्रिड स्थिरता (Grid Stability) सबसे बड़ी चिंता बन जाएगी।
टेक्नोलॉजी जगत के कई विशेषज्ञों ने कहा है कि वेम्बु की यह चेतावनी समय पर आई है। क्योंकि अभी से अगर ऊर्जा-कुशल एआई विकास पर ध्यान दिया जाए तो भविष्य के संकट को टाला जा सकता है।
वेम्बु ने अपने संदेश का समापन करते हुए कहा — “एआई का विकास मानवता की सेवा के लिए होना चाहिए, न कि उसके अस्तित्व के लिए खतरा बनने के लिए। हमें समझदारी और जिम्मेदारी के साथ इस तकनीक का उपयोग करना होगा।”
उनकी यह चेतावनी न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक जरूरी संदेश है — कि तकनीकी प्रगति तभी सार्थक है जब वह टिकाऊ और संतुलित हो।