




हाल ही में रूस में आयोजित एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक ने दक्षिण एशिया की कूटनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। इस बैठक में भारत और पाकिस्तान ने अनोखे ढंग से एक साझा बयान जारी किया, जो दोनों देशों के कूटनीतिक दृष्टिकोण में एक दुर्लभ तालमेल को दर्शाता है। यह बयान अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और विशेष रूप से बगराम एयरबेस पर नियंत्रण के विवाद को लेकर आया।
पिछले कुछ महीनों में अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से बार-बार यह कहा गया कि वह अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर नियंत्रण चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए तालिबान की सरकार को धमकी तक दी। इस रणनीति ने न केवल अफगानिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दी, बल्कि क्षेत्रीय देशों, विशेषकर भारत और पाकिस्तान को भी सतर्क कर दिया।
रूस में हुई बैठक में मॉस्को फॉर्मेट के तहत कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस मंच पर भारत और पाकिस्तान ने पहली बार स्पष्ट और संगठित तरीके से अपनी चिंताओं को साझा किया। दोनों देशों ने बगराम एयरबेस पर किसी भी विदेशी सैन्य नियंत्रण के खिलाफ एक समान बयान जारी किया। बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य आधार का विस्तार क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए खतरनाक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत और पाकिस्तान का यह संयुक्त बयान क्षेत्रीय कूटनीति में एक नया मील का पत्थर है। सामान्यतः इन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक मतभेद प्रमुख रहते हैं, लेकिन अफगानिस्तान के संदर्भ में सुरक्षा और स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए दोनों ने सामूहिक दृष्टिकोण अपनाया। यह कदम न केवल अफगानिस्तान के हितों को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों को भी संदेश देता है कि क्षेत्रीय संतुलन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इस साझा बयान में विशेष रूप से यह उल्लेख किया गया कि किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति के विस्तार से अफगानिस्तान के स्थायित्व को खतरा हो सकता है। दोनों देशों ने मॉस्को फॉर्मेट में यह स्पष्ट किया कि किसी भी सैन्य कार्रवाई या कब्जा स्थानीय और क्षेत्रीय सुरक्षा हितों को प्रभावित कर सकती है।
रूस में आयोजित बैठक में भारत और पाकिस्तान की यह अनोखी साझेदारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत है। विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम अमेरिका की दक्षिण एशियाई रणनीति और अफगानिस्तान में उसके सैन्य प्रयासों पर प्रभाव डाल सकता है। भारत और पाकिस्तान ने मिलकर यह संदेश दिया कि क्षेत्रीय देशों की सहमति और पारदर्शिता के बिना किसी भी विदेशी सैन्य गतिविधि को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
डिप्लोमैटिक सूत्रों के अनुसार, बैठक में दोनों देशों ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया और आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयास महत्वपूर्ण हैं। किसी भी एकतरफा सैन्य नियंत्रण से अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है। भारत और पाकिस्तान ने इस संदर्भ में तालिबान सरकार को भी यह चेतावनी दी कि क्षेत्रीय देशों की राय के बिना कोई भी निर्णय न लिया जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भविष्य में अफगानिस्तान की सुरक्षा और दक्षिण एशिया के क्षेत्रीय संतुलन के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। भारत और पाकिस्तान के साझा बयान ने यह दिखाया कि सुरक्षा और शांति जैसे साझा हितों के लिए दोनों देश अपने मतभेदों को कुछ समय के लिए अलग रख सकते हैं।
रूस में हुई इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह दक्षिण एशिया में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत और पाकिस्तान के सक्रिय और संगठित दृष्टिकोण को उजागर करता है। अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति पर भारत-पाकिस्तान का संयुक्त रुख अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण संकेत है।
डोनाल्ड ट्रंप की बगराम एयरबेस पर नियंत्रण की रणनीति ने क्षेत्रीय सुरक्षा को चुनौती दी है। लेकिन भारत और पाकिस्तान ने रूस में आयोजित मॉस्को फॉर्मेट के माध्यम से स्पष्ट कर दिया कि किसी भी विदेशी सैन्य हस्तक्षेप को क्षेत्रीय देशों की सहमति और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार होना चाहिए।
इस बैठक में मॉस्को फॉर्मेट की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। यह मंच क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद निवारण और राजनीतिक स्थिरता के लिए बातचीत का महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है। भारत और पाकिस्तान के साझा बयान ने इस मंच की विश्वसनीयता और प्रभाव को और मजबूत किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में इस बयान का असर अफगानिस्तान में अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय सैन्य रणनीति पर देखा जा सकता है। यदि अमेरिका बिना क्षेत्रीय सहमति के बगराम एयरबेस पर कब्जा करने का प्रयास करता है, तो यह दक्षिण एशियाई देशों के लिए सुरक्षा चुनौतियां बढ़ा सकता है। भारत और पाकिस्तान का यह संयुक्त रुख इसे रोकने में मददगार साबित हो सकता है।
रूस में भारत-पाकिस्तान का यह अनोखा मिलन और साझा बयान न केवल अफगानिस्तान की स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और क्षेत्रीय संतुलन में एक नया अध्याय भी जोड़ रहा है। यह कदम स्पष्ट करता है कि जब साझा हित और सुरक्षा का सवाल हो, तो विरोधी देश भी सामूहिक रणनीति अपनाने के लिए तैयार हो सकते हैं।