




भारत ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य आधार के पुनः कब्जा करने के प्रयासों पर कड़ा विरोध जताया है। यह विरोध विशेष रूप से बगराम एयरबेस को लेकर किया गया, जो लंबे समय तक अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए एक प्रमुख सैन्य केंद्र रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने मॉस्को फॉर्मेट में यह स्पष्ट कर दिया कि अफगानिस्तान में विदेशी सैन्य बुनियादी ढांचे की तैनाती भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चिंताजनक है।
भारत का रुख इस बात को लेकर स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति से क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की यह नीति न केवल अफगानिस्तान में शांति बनाए रखने के प्रयासों का समर्थन करती है, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ स्थिर और संतुलित संबंध बनाए रखने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है।
यह विरोध डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल और उनके टैरिफ युद्ध के बाद सामने आया। अमेरिका की विदेश नीति में बदलाव और दक्षिण एशिया में सैन्य उपस्थिति बढ़ाने के प्रयासों ने भारत को सतर्क कर दिया। भारत का मानना है कि अफगानिस्तान में अमेरिका के अतिरिक्त सैन्य प्रयास क्षेत्रीय देशों के हितों और सुरक्षा संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।
मॉस्को फॉर्मेट के माध्यम से भारत ने इस बात पर जोर दिया कि अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य आधार का संचालन और विस्तार स्थानीय और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है। भारत का यह रुख न केवल अफगानिस्तान में शांति प्रयासों के पक्ष में है, बल्कि यह पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के क्षेत्रीय प्रभाव के संबंध में संतुलन बनाए रखने की दिशा में भी महत्वपूर्ण है।
विदेश नीति विश्लेषकों का कहना है कि भारत ने यह कदम पूरी तरह से क्षेत्रीय रणनीतिक हितों और सुरक्षा के मद्देनजर उठाया है। भारत की चिंता यह है कि विदेशी सैन्य आधार का बढ़ता प्रभाव स्थानीय राजनीतिक और सुरक्षा ढांचे को अस्थिर कर सकता है। इसके अलावा, भारत का यह रुख अमेरिका को स्पष्ट संदेश देता है कि दक्षिण एशिया में उसकी सैन्य उपस्थिति पर भारत की नजर है और वह क्षेत्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए अपनी कूटनीतिक सक्रियता जारी रखेगा।
अफगानिस्तान में अमेरिका की सैन्य रणनीति लंबे समय से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में भारत के हितों के लिए एक चुनौती रही है। बगराम एयरबेस पर कब्जा करने का प्रयास न केवल अफगानिस्तान में अमेरिकी ताकत को बढ़ाने का संकेत देता है, बल्कि यह पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के लिए भी रणनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है। भारत ने मॉस्को फॉर्मेट में इस बात पर जोर दिया कि क्षेत्रीय देशों की सहभागिता और सहमति के बिना किसी भी विदेशी सैन्य उपस्थिति को स्वीकार करना मुश्किल होगा।
भारतीय कूटनीति ने यह भी स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान की स्थिरता और क्षेत्रीय शांति को ध्यान में रखते हुए, सभी निर्णयों में स्थानीय और क्षेत्रीय हितों का सम्मान आवश्यक है। भारत ने मॉस्को फॉर्मेट में यह सुझाव दिया कि अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य बुनियादी ढांचे की तैनाती केवल अंतरराष्ट्रीय सहमति और पारदर्शिता के साथ होनी चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार, मोदी सरकार का यह कदम दक्षिण एशिया में भारत की बढ़ती भूमिका और क्षेत्रीय सुरक्षा नीति को दर्शाता है। भारत न केवल अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया का समर्थक है, बल्कि वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन किसी भी देश के एकतरफा निर्णयों से प्रभावित न हो।
डिप्लोमैटिक सूत्रों का कहना है कि भारत ने अमेरिका के प्रतिनिधियों के साथ स्पष्ट संवाद किया है और यह भी कहा है कि अफगानिस्तान में सैन्य गतिविधियों का विस्तार स्थानीय जनता और क्षेत्रीय देशों की सुरक्षा चिंताओं के बिना नहीं होना चाहिए। भारत का यह रुख अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी काफी ध्यान खींच रहा है, और इसे क्षेत्रीय कूटनीति की मजबूत रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
भारत ने यह कदम केवल सैन्य या राजनीतिक हितों के आधार पर नहीं उठाया, बल्कि यह दक्षिण एशिया में स्थिरता और शांति बनाए रखने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। अफगानिस्तान में किसी भी विदेशी सैन्य आधार का विस्तार न केवल क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि आतंकवाद और सुरक्षा खतरों की संभावना को भी बढ़ा सकता है।
मौजूदा समय में, भारत की विदेश नीति इस बात पर केंद्रित है कि अफगानिस्तान में किसी भी सैन्य उपस्थिति से क्षेत्रीय देशों के साथ संतुलन प्रभावित न हो। भारत मॉस्को फॉर्मेट और अन्य बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से अपने विचार स्पष्ट रूप से प्रस्तुत कर रहा है और यह सुनिश्चित कर रहा है कि अफगानिस्तान में सभी निर्णय पारदर्शी और जिम्मेदार हों।
इस प्रकार, भारत का यह रुख न केवल अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता को सुनिश्चित करने में सहायक होगा, बल्कि यह अमेरिका और अन्य देशों को यह संदेश देगा कि क्षेत्रीय हितों और सुरक्षा के मामलों में भारत की सक्रिय भागीदारी और नजर हमेशा बनी रहेगी।