




भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी एक बार फिर नए मुकाम पर पहुंचने जा रही है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपनी प्रस्तावित भारत यात्रा के दौरान आर्कटिक क्षेत्र और नॉर्दर्न सी रूट (Northern Sea Route) पर भारत के साथ एक बड़ी डील करने की तैयारी में हैं। यह समझौता न केवल ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
नॉर्दर्न सी रूट, जो रूस के आर्कटिक तट के साथ फैला हुआ है, एशिया और यूरोप के बीच एक वैकल्पिक समुद्री मार्ग के रूप में तेजी से उभर रहा है। यदि भारत इस मार्ग में शामिल होता है, तो उसे न केवल यूरोपीय बाज़ारों तक तेज़ पहुंच मिलेगी बल्कि वैश्विक व्यापारिक लॉजिस्टिक्स में भी उसकी भूमिका मज़बूत होगी।
रूस लंबे समय से चाहता रहा है कि भारत जैसे विश्वसनीय साझेदार देशों की मौजूदगी आर्कटिक क्षेत्र में बढ़े। आर्कटिक क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है — यहां तेल, गैस, खनिज और दुर्लभ धातुओं का विशाल भंडार मौजूद है।
भारत पहले से ही 2013 से “आर्कटिक काउंसिल” में एक ऑब्जर्वर देश है और उसने अपने वैज्ञानिक अनुसंधान स्टेशन “हिमाद्री” के ज़रिए इस क्षेत्र में सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई है। अब पुतिन इस साझेदारी को एक नए आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर ले जाने के पक्ष में हैं।
इस डील के बाद भारत को रूस के आर्कटिक बंदरगाहों, विशेषकर मुरमांस्क और व्लादिवोस्तोक, तक सीधी लॉजिस्टिक पहुंच मिल सकती है। यह भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ-साथ उत्तरी यूरोप तक व्यापारिक पहुँच में बड़ी राहत देगा।
भारत और रूस की यह संभावित डील चीन के लिए एक रणनीतिक झटका साबित हो सकती है। चीन अब तक अपने “पोलर सिल्क रोड” प्रोजेक्ट के ज़रिए आर्कटिक में दखल बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। रूस और भारत की नजदीकी इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सीमित कर सकती है।
विश्लेषकों का मानना है कि भारत इस डील से चीन को दो तरफ से रणनीतिक घेराबंदी में ले सकता है — एक तरफ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड साझेदारी, और दूसरी तरफ रूस के साथ आर्कटिक सहयोग।
इस तरह भारत वैश्विक रणनीतिक मानचित्र पर एक “टू-ओशन पावर” के रूप में उभर सकता है — जो दक्षिणी हिंद महासागर से लेकर उत्तरी आर्कटिक तक अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकेगा।
नॉर्दर्न सी रूट पर भारत की भागीदारी से ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा फायदा होगा। रूस के विशाल तेल और प्राकृतिक गैस भंडार तक भारत को कम दूरी और कम लागत में पहुँच मिल सकती है।
वर्तमान में भारत पश्चिम एशिया से ऊर्जा आयात पर निर्भर है, लेकिन आर्कटिक से जुड़ने के बाद यह निर्भरता काफी कम हो सकती है। इसके अलावा, यह मार्ग भारत के लिए यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच माल ढुलाई का एक सस्ता और तेज़ विकल्प प्रदान करेगा।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस नॉर्दर्न सी रूट के ज़रिए कार्गो ट्रांजिट को अगले दशक तक 8 गुना तक बढ़ाने का लक्ष्य रख रहा है। भारत इस प्रोजेक्ट में तकनीकी सहयोग, निवेश और पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के ज़रिए सक्रिय भूमिका निभा सकता है।
भारत और रूस के बीच यह पहल केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा और अंतरिक्ष सहयोग पर कई उच्च-स्तरीय बैठकें हुई हैं। पुतिन की यह यात्रा दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे विश्वास को और गहरा करेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच यह वार्ता ऐसे समय हो रही है जब वैश्विक स्तर पर शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंधों के बीच भारत रूस के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय साझेदार के रूप में उभर रहा है।
भू-राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, नॉर्दर्न सी रूट पर भारत की भागीदारी “21वीं सदी के ग्लोबल ट्रेड ऑर्डर” को नया रूप दे सकती है। यह डील भारत की समुद्री कूटनीति (Maritime Diplomacy) का सबसे बड़ा विस्तार मानी जा रही है।
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी भारत को ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ सैन्य लॉजिस्टिक समर्थन भी प्रदान करेगी। यदि भारत को आर्कटिक बंदरगाहों तक पहुंच मिलती है, तो यह भविष्य में रक्षा सहयोग का भी हिस्सा बन सकता है।
भारत और रूस की नॉर्दर्न सी रूट पर होने वाली संभावित डील केवल व्यापारिक समझौता नहीं बल्कि एक भविष्य की रणनीतिक साझेदारी है। इससे भारत को आर्कटिक क्षेत्र में आर्थिक, वैज्ञानिक और सामरिक तीनों स्तरों पर नई ऊंचाई मिलेगी।