




डॉ. रमेश चंद्र बिस्वाल का नाम आज भारतीय कृषि और उद्यमिता जगत में जाना-माना बन गया है। कभी अमेरिका की क्लेमसन यूनिवर्सिटी में एक प्रतिष्ठित साइंटिस्ट के रूप में काम करने वाले डॉ. बिस्वाल ने अपनी जिंदगी का बड़ा फैसला लिया और 2016 में अमेरिका की नौकरी छोड़कर भारत के ओडिशा राज्य के अपने गांव खुंटुबंधा लौट आए। उन्होंने वहां की जमीन और किसानों की स्थिति को करीब से देखा और महसूस किया कि भारत में कृषि अनुसंधान अक्सर सिर्फ कागजों तक सीमित रह जाता है।
डॉ. बिस्वाल ने अमेरिका में अपने अनुभव का लाभ उठाते हुए भारत की कृषि प्रणाली में व्यावहारिक बदलाव लाने का फैसला किया। उन्होंने पाया कि वहां वैज्ञानिक और किसान मिलकर समस्याओं के समाधान पर काम करते हैं, जबकि भारत में यह प्रक्रिया अक्सर अधूरी रह जाती है। इसी अंतर को समझते हुए उन्होंने अपने गांव में इनोवेटिव कृषि प्रोजेक्ट्स शुरू किए।
खुंटुबंधा लौटने के बाद डॉ. बिस्वाल ने पहले छोटे पैमाने पर खेती और रिसर्च का काम शुरू किया। उन्होंने मिट्टी की गुणवत्ता, फसल चक्र और सिंचाई प्रबंधन पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया। उनकी पहल में तकनीक और आधुनिक विज्ञान का समावेश था। उन्होंने किसानों को सिखाया कि कैसे रिसर्च को जमीन पर लागू किया जा सकता है और पैदावार को बढ़ाया जा सकता है।
कुछ ही वर्षों में उनका यह प्रयास सफलता की कहानी बन गया। 2016 से 2025 तक डॉ. बिस्वाल ने अपने कृषि व्यवसाय को इतना बढ़ाया कि अब उनका टर्नओवर 12 करोड़ रुपये के पार पहुंच चुका है। उनकी कंपनी अब न केवल ओडिशा बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी किसानों को आधुनिक खेती की तकनीकें प्रदान कर रही है। उन्होंने बीज उत्पादन, जैविक खाद, स्मार्ट इरिगेशन और फसल संरक्षण तकनीकों को किसानों तक पहुंचाया।
डॉ. बिस्वाल का मानना है कि भारत में कृषि को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपनाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि “किसान ही देश की रीढ़ हैं, और यदि उन्हें सही तकनीक और मार्गदर्शन मिलेगा तो कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।” उनकी पहल में यह बात झलकती है कि वह केवल आर्थिक लाभ के लिए काम नहीं कर रहे, बल्कि किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत करना उनका मुख्य उद्देश्य है।
उनकी सफलता की कहानी ने कई युवाओं को भी प्रेरित किया है। आज उनके गांव के कई युवा डॉ. बिस्वाल के साथ जुड़कर खेती और कृषि स्टार्टअप्स में काम कर रहे हैं। उन्होंने एक ऐसा मॉडल बनाया है, जो छोटे किसानों को भी वैज्ञानिक खेती और आधुनिक तकनीकों का लाभ दिलाता है। इससे किसान उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ अपनी आमदनी भी दोगुनी कर पा रहे हैं।
डॉ. बिस्वाल ने अपने अनुभव के आधार पर कई वर्कशॉप और सेमिनार आयोजित किए। उन्होंने किसानों को बताया कि कैसे फसल चक्र, पोषण और सिंचाई प्रबंधन में बदलाव करके पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। उनका मानना है कि तकनीकी ज्ञान और अनुसंधान केवल बड़े फार्मों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह छोटे और मध्यम किसानों तक भी पहुंचना चाहिए।
उनकी मेहनत और लगन ने यह साबित कर दिया है कि यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जमीन का अनुभव साथ मिल जाए, तो कोई भी क्षेत्र सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है। डॉ. बिस्वाल की कहानी यह भी दर्शाती है कि विदेश में बेहतर करियर छोड़कर भी भारत में नए अवसर खोजे जा सकते हैं और देश की सेवा की जा सकती है।
आज डॉ. बिस्वाल की पहल से उनके गांव के लोग न केवल आधुनिक खेती सीख रहे हैं बल्कि युवाओं में रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं। उनके प्रयास से कृषि व्यवसाय में निवेश और विस्तार हुआ है। उनकी कंपनी अब स्थानीय बाजार के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फसल उत्पाद बेच रही है।
डॉ. बिस्वाल का कहना है कि सफलता केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए काम करने में है। उन्होंने अपने प्रयासों से यह साबित किया कि भारत के ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं, बशर्ते लोग सही दिशा में काम करें।
उनकी कहानी आज न केवल किसानों के लिए बल्कि उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई है, जो विदेश में करियर बनाने के बाद भारत लौटकर देश में बदलाव लाना चाहते हैं। उनके प्रयासों से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मेहनत के दम पर न केवल आर्थिक लाभ संभव है बल्कि देश की विकास यात्रा में भी योगदान दिया जा सकता है।
डॉ. बिस्वाल की कहानी यह संदेश देती है कि यदि साहस और दृष्टि हो, तो कोई भी व्यक्ति भारत में लौटकर न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी सफलता की नई मिसाल कायम कर सकता है। उनका उदाहरण आज युवा पीढ़ी को प्रेरित कर रहा है कि कैसे विदेश का अनुभव लेकर देश में बदलाव लाया जा सकता है और किसान समुदाय को नई दिशा दी जा सकती है।