




राजनीति में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन संवाद और सौहार्द ही लोकतंत्र की असली पहचान हैं। इसी भावना का प्रतीक बनी उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति सी.पी. राधाकृष्णन की हालिया मुलाकात, जब उन्होंने संसद भवन परिसर में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात की।
यह मुलाकात न केवल औपचारिक थी, बल्कि लोकतांत्रिक सौहार्द और सहयोग की भावना को पुनर्जीवित करने वाली रही। मुलाकात के दौरान सभी प्रमुख विपक्षी नेता, जैसे कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके और आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि मौजूद थे।
संसद भवन के प्रांगण में जब सी.पी. राधाकृष्णन पहुंचे, तो विपक्षी नेताओं ने उनका स्वागत करते हुए हाथ मिलाया। माहौल में न कोई कटुता थी, न राजनीतिक दूरी का एहसास। फोटो सेशन के दौरान मुस्कुराते हुए चेहरे और आपसी अभिवादन ने यह संदेश दिया कि मतभेद भले हों, मगर संवाद की डोर कभी नहीं टूटनी चाहिए।
राज्यसभा के सभापति बनने के बाद यह सी.पी. राधाकृष्णन की विपक्षी दलों के नेताओं के साथ पहली औपचारिक मुलाकात थी। उन्होंने सभी से संसद के आगामी सत्रों में रचनात्मक बहस और सहयोग की अपील की।
मुलाकात के दौरान उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन ने नेताओं से कहा कि संसद देश की आत्मा है, जहां संवाद, सहमति और असहमति—तीनों का स्थान बराबर है। उन्होंने कहा कि “राजनीति में विरोध होना चाहिए, लेकिन विरोध के साथ सम्मान भी बना रहना चाहिए। यही लोकतंत्र की सुंदरता है।”
उनकी इस टिप्पणी का स्वागत विपक्षी नेताओं ने भी किया। कांग्रेस नेता ने कहा कि उपराष्ट्रपति का यह कदम “संवाद की नई पहल” है, जो संसद के बेहतर संचालन में मदद करेगा।
मुलाकात के दौरान विपक्षी नेताओं ने भी उपराष्ट्रपति को आश्वस्त किया कि वे संसद की गरिमा बनाए रखेंगे और जनता के मुद्दों पर सार्थक चर्चा करेंगे। तृणमूल कांग्रेस और डीएमके के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे सरकार की नीतियों की समीक्षा तो करेंगे, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर संवाद हमेशा खुला रहेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संसद सत्र के दौरान जब अक्सर हंगामा और अवरोध देखने को मिलता है, ऐसे में यह मुलाकात एक सकारात्मक संकेत है कि दोनों पक्ष मिलकर संसद को अधिक उत्पादक बना सकते हैं।
सी.पी. राधाकृष्णन, जो तमिलनाडु के वरिष्ठ भाजपा नेता रहे हैं, अपनी सौम्य छवि और संवादप्रिय स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। उपराष्ट्रपति पद संभालने के बाद उन्होंने कई मौकों पर यह कहा है कि “संसद का संचालन विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों की साझा जिम्मेदारी है।”
उनका यह रुख भारतीय संसद की परंपरा को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि राधाकृष्णन की यह पहल संसद के सत्रों को अधिक सहयोगात्मक बनाने में सहायक हो सकती है।
इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। जहां कुछ लोगों ने इसे “लोकतंत्र की आत्मा की झलक” बताया, वहीं कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह भारतीय राजनीति में संवाद की संस्कृति को फिर से जीवित करने का प्रयास है।
विपक्षी दलों के बीच यह चर्चा भी रही कि उपराष्ट्रपति का यह कदम भविष्य में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच संबंधों को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह मुलाकात संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के लिए एक सकारात्मक शुरुआत हो सकती है। विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच बेहतर संवाद से कानून निर्माण प्रक्रिया में तेजी आ सकती है और बहसों की गुणवत्ता में सुधार संभव है।
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र की उस मूल भावना को पुनर्जीवित करता है, जिसमें संवाद और सहयोग को सर्वोपरि माना गया है।
उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन की विपक्षी नेताओं से मुलाकात केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांत—संवाद और सहमति—की पुनर्पुष्टि थी।
राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सभी नेताओं का एक साथ आना और मुस्कुराते हुए अभिवादन करना यह संदेश देता है कि लोकतंत्र केवल सत्ता का खेल नहीं, बल्कि संवाद का उत्सव भी है।