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भारत और अफगानिस्तान के बीच हाल ही में हुई उच्च स्तरीय बातचीत ने दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की मौजूदगी में भारत ने पहली बार खुले तौर पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) पर कड़ा रुख अपनाते हुए एक स्पष्ट चेतावनी दी है। इस बैठक में भारत ने वाखान कॉरिडोर को लेकर भी अहम चर्चा की, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले समय में इस पूरे क्षेत्र में भू-राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
भारत ने मुत्ताकी से मुलाकात के दौरान अफगानिस्तान को “भारत का निकटतम पड़ोसी” बताते हुए यह इशारा किया कि भारत अफगानिस्तान के साथ संबंधों को फिर से मजबूत करने के मूड में है। यह बयान बेहद अहम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि अफगानिस्तान की मौजूदा सीमाएं पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से जुड़ती हैं। ऐसे में भारत का यह बयान सिर्फ कूटनीतिक संकेत नहीं बल्कि पाकिस्तान को एक सीधा अल्टीमेटम समझा जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, भारत ने इस वार्ता में साफ किया कि POK भारत का अभिन्न हिस्सा है और पाकिस्तान वहां का अवैध कब्जा जल्द छोड़ दे। मुत्ताकी की उपस्थिति में इस तरह का बयान अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कूटनीतिक आक्रामकता का संकेत देता है।
वाखान कॉरिडोर की बात करें तो यह एक 350 किलोमीटर लंबी संकरी पट्टी है जो अफगानिस्तान को चीन से जोड़ती है। ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र भारत, अफगानिस्तान और तिब्बत के बीच एक रणनीतिक गलियारा रहा है। ब्रिटिश काल में यह कॉरिडोर “बफर ज़ोन” के रूप में बनाया गया था ताकि रूस और ब्रिटिश भारत के बीच की सीमा को अलग रखा जा सके। लेकिन अब, जब भारत ने मुत्ताकी के साथ इस गलियारे पर चर्चा की है, तो यह साफ है कि नई दिल्ली इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक मौजूदगी बढ़ाने की योजना बना रहा है।
भारत की ओर से मुत्ताकी को यह संदेश दिया गया कि वाखान कॉरिडोर और POK का भविष्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। यह बयान सीधे तौर पर पाकिस्तान को चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है कि अगर इस क्षेत्र में कोई अस्थिरता या आतंकवादी गतिविधि हुई, तो भारत चुप नहीं बैठेगा।
रक्षा और विदेश नीति के विशेषज्ञों के अनुसार, भारत का यह कदम न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन के लिए भी एक रणनीतिक संकेत है। वाखान कॉरिडोर, चीन के शिंजियांग प्रांत के बेहद करीब है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी इसी क्षेत्र के आसपास गुजरता है। भारत का यहां सक्रिय होना चीन-पाक गठजोड़ के लिए एक नई चुनौती साबित हो सकता है।
मुत्ताकी के साथ हुई इस वार्ता में भारत ने अफगानिस्तान को यह भरोसा दिलाया कि भारत मानवीय और आर्थिक सहायता के लिए हमेशा तैयार है। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह तालिबान शासन के बावजूद अफगान जनता के हितों के लिए काम करता रहेगा। मगर साथ ही यह भी कहा गया कि अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल किसी भी आतंकवादी गतिविधि या भारत विरोधी साजिश के लिए नहीं होना चाहिए।
कई अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने मुत्ताकी के सामने वाखान कॉरिडोर का मुद्दा उठाकर एक मास्टरस्ट्रोक खेला है। यह न केवल पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों पर भारत के अधिकार की पुनर्पुष्टि है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत अब अपने रणनीतिक हितों को लेकर अधिक आक्रामक रुख अपनाने के लिए तैयार है।
भारत सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि “भारत अफगानिस्तान की संप्रभुता और स्वतंत्रता का सम्मान करता है, परंतु यह भी मानता है कि अफगानिस्तान और भारत की सीमाएं ऐतिहासिक रूप से जुड़ी रही हैं। वाखान कॉरिडोर इसका एक जीवंत उदाहरण है।” यह बयान इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि भारत इस क्षेत्र में दीर्घकालिक रणनीतिक उपस्थिति बनाए रखने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
POK पर भारत की नीति पिछले कुछ वर्षों में बेहद स्पष्ट हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर कई बार यह कह चुके हैं कि “POK भारत का हिस्सा है, और एक दिन हम उसे वापस लाएंगे।” मुत्ताकी के साथ बातचीत के दौरान इसी नीति की पुनर्पुष्टि करते हुए भारत ने कड़ा संदेश दिया कि पाकिस्तान अब इस मुद्दे पर अपने पुराने रवैये से बाज आए।
इस बैठक के बाद पाकिस्तान की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन इस्लामाबाद के कूटनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है। पाकिस्तान के कई मीडिया हाउस इस खबर को “भारत का नया कूटनीतिक दबाव” बता रहे हैं।
अफगानिस्तान के लिए भी यह चर्चा बेहद अहम है। भारत और अफगानिस्तान के बीच पारंपरिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं, लेकिन तालिबान शासन के बाद रिश्तों में ठंडक आ गई थी। मुत्ताकी से बातचीत ने यह संकेत दिया है कि भारत धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपनी वापसी की रणनीति पर काम कर रहा है।
भू-राजनीति के जानकारों का मानना है कि भारत का यह कदम केवल एक बैठक नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक भू-सामरिक रणनीति (Geostrategic Vision) का हिस्सा है। आने वाले महीनों में भारत संभवतः वाखान कॉरिडोर के संदर्भ में चीन और रूस से भी बातचीत कर सकता है, ताकि दक्षिण एशिया में संतुलन बनाए रखा जा सके।
भारत का यह स्पष्ट और आक्रामक रुख इस बात का प्रमाण है कि नई दिल्ली अब “रक्षात्मक कूटनीति” की बजाय “सक्रिय क्षेत्रीय नेतृत्व” की दिशा में आगे बढ़ रही है।







