




केरल सरकार ने राज्य में जहरीले सांपों से बचाव और एंटी वेनम (विष-निरोधक दवा) के स्थानीय उत्पादन को लेकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब वन विभाग स्वयंसेवकों और आदिवासी समुदायों को प्रशिक्षित करेगा ताकि वे सांपों का विष वैज्ञानिक तरीके से निकाल सकें। इस पहल का उद्देश्य न केवल राज्य में एंटी वेनम की आपूर्ति को आत्मनिर्भर बनाना है, बल्कि सांप काटने से होने वाली मौतों को भी कम करना है।
फिलहाल केरल को अपना एंटी वेनम ड्रग पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से प्राप्त करना पड़ता है, लेकिन वहां उत्पादित एंटी वेनम केवल चार प्रमुख प्रजातियों — कोबरा, रसेल वाइपर, कॉमन क्रेट और सॉ-स्केल्ड वाइपर — के विष पर आधारित होता है। हालांकि, केरल में पाई जाने वाली कई अन्य स्थानीय प्रजातियों जैसे हंप-नोज्ड पिट वाइपर और मालाबार पिट वाइपर के विष के लिए यह एंटी वेनम पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं है।
वन मंत्री ए. के. ससीन्द्रन ने घोषणा की कि राज्य सरकार एंटी वेनम उत्पादन को स्थानीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी। उन्होंने कहा कि यह परियोजना “वन्यजीव संरक्षण” और “मानव सुरक्षा” दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। मंत्री ने बताया कि केरल में हर साल सांप के काटने के सैकड़ों मामले सामने आते हैं, जिनमें से कई मामलों में मौत इसलिए हो जाती है क्योंकि उचित एंटी वेनम समय पर नहीं मिल पाता।
केरल की भौगोलिक स्थिति, उष्णकटिबंधीय जलवायु और घने जंगल इसे सांपों की विविध प्रजातियों का प्राकृतिक निवास बनाते हैं। राज्य के ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में विशेषकर मानसून के मौसम में सांप काटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं। इन इलाकों में रहने वाले आदिवासी और ग्रामीण समुदायों के पास सांपों की पहचान और उनके व्यवहार की गहरी जानकारी होती है। यही कारण है कि सरकार ने इन्हीं समुदायों को प्रशिक्षण देकर उन्हें विष निकालने की प्रक्रिया में शामिल करने का निर्णय लिया है।
वन विभाग ने कहा है कि विष निकालने की प्रक्रिया पूरी तरह वैज्ञानिक निगरानी में की जाएगी। इसके लिए राज्य में विशेष प्रयोगशालाएं और विष-संग्रहण केंद्र स्थापित किए जाएंगे। निकाले गए विष का उपयोग स्थानीय एंटी वेनम उत्पादन के लिए किया जाएगा, जिससे राज्य के अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को समय पर दवा उपलब्ध कराई जा सकेगी।
विष निकालने का प्रशिक्षण कार्यक्रम कई चरणों में होगा। पहले चरण में प्रशिक्षित विशेषज्ञ स्वयंसेवकों को यह सिखाएंगे कि सांपों को बिना नुकसान पहुंचाए सुरक्षित तरीके से कैसे पकड़ा जाए, कैसे पहचान की जाए कि कौन-सा सांप जहरीला है, और विष निकालने की प्रक्रिया में क्या-क्या सावधानियां बरतनी जरूरी हैं। प्रशिक्षण में पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों का संयोजन किया जाएगा ताकि यह प्रक्रिया सुरक्षित और प्रभावी बन सके।
वन मंत्री ससीन्द्रन ने कहा कि राज्य सरकार एंटी वेनम के स्थानीय उत्पादन के लिए “बायोटेक्नोलॉजी विभाग” और “हेल्थ डिपार्टमेंट” के साथ मिलकर एक संयुक्त योजना बना रही है। इससे न केवल एंटी वेनम की गुणवत्ता बेहतर होगी, बल्कि इसकी लागत भी कम होगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में हर साल लगभग 50,000 लोगों की मौत सांप के काटने से होती है, जिनमें से लगभग 10% मामले दक्षिण भारत में दर्ज किए जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सांप काटने को “नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज” यानी उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी की श्रेणी में रखा है। इस स्थिति में केरल का यह कदम न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है।
केरल स्नेक रेस्क्यू एंड रिसर्च एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर राजेश नायर ने कहा कि राज्य का यह निर्णय “वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण” है। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु से आने वाला एंटी वेनम अक्सर केरल में पाए जाने वाले सांपों के लिए पूरी तरह उपयुक्त नहीं होता, जिससे मरीजों में एलर्जी और अन्य जटिलताएं देखने को मिलती हैं। स्थानीय विष का उपयोग कर तैयार किए गए एंटी वेनम से इन समस्याओं को दूर किया जा सकेगा।
पर्यावरणविदों ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इससे सांपों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। अक्सर लोग भयवश सांपों को मार देते हैं, लेकिन जब उनके महत्व और भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ेगी, तो मानव-सांप संघर्ष में कमी आएगी।
वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस योजना के तहत एक डिजिटल डेटा बैंक भी तैयार किया जाएगा जिसमें सांपों की प्रजातियों, उनके व्यवहार, निवास क्षेत्रों और विष की रासायनिक संरचना की विस्तृत जानकारी होगी। यह जानकारी भविष्य में शोध कार्यों के लिए भी उपयोगी साबित होगी।
सांपों के संरक्षण और मानव सुरक्षा को लेकर केरल पहले भी कई बार पहल कर चुका है। राज्य के कुछ हिस्सों में “स्नेक रेस्क्यू हॉटलाइन” जैसी सेवाएं पहले से संचालित हैं, जिनकी मदद से सांपों को सुरक्षित रूप से पकड़कर जंगलों में छोड़ा जाता है। अब, एंटी वेनम उत्पादन की इस योजना के साथ केरल भारत के उन कुछ राज्यों में शामिल हो जाएगा, जो इस दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं।
सरकार ने कहा है कि इस परियोजना को अगले छह महीनों में शुरू किया जाएगा। शुरुआती प्रशिक्षण सत्र इडुक्की, वायनाड, पलक्कड़ और त्रिशूर जिलों में आयोजित होंगे, जहां सांपों की विविधता सबसे अधिक है।
इस पहल को लेकर आम जनता में भी उत्साह देखा जा रहा है। कई युवाओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने स्वयंसेवक बनने की इच्छा जताई है। सरकार का कहना है कि इस कार्यक्रम में सुरक्षा सर्वोपरि होगी और प्रशिक्षण के दौरान किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचने के लिए सख्त मानक अपनाए जाएंगे।