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केंद्रीय कैबिनेट ने मंगलवार को किसानों के लिए एक बड़ा आर्थिक राहत पैकेज मंजूर किया है। कैबिनेट ने रबी सीजन 2025-26 के लिए फॉस्फेटिक और पोटाश उर्वरकों पर 37,952 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दे दी है। इस फैसले के साथ ही सरकार ने किसानों की खेती की लागत को कम करने और कृषि आय बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार, इस सब्सिडी से किसान डीएपी (DAP) और एनपीकेएस (NPKS) जैसे उर्वरकों को बाजार मूल्य से कम कीमत पर खरीद पाएंगे। यह फैसला अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक की बढ़ती कीमतों और घरेलू उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से रबी सीजन में किसानों की उत्पादन लागत में महत्वपूर्ण कमी आएगी और कृषि क्षेत्र में स्थिरता बढ़ेगी।
इस निर्णय को 8वें वेतन आयोग की मंजूरी के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों के बाद सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों की आय में बढ़ोतरी हुई है, वहीं कृषि क्षेत्र में सब्सिडी बढ़ाकर किसानों को सीधे लाभ पहुँचाने का रास्ता भी खोला गया है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय का कहना है कि इस पैकेज से खेती के आर्थिक ढांचे में सुधार और किसानों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इस सब्सिडी का लाभ लगभग सभी प्रमुख फसलों के किसानों को मिलेगा, जिससे खाद की महंगाई और अंतरराष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव का असर स्थानीय किसानों पर कम होगा। इसके अलावा, सरकार इस योजना के तहत सस्ती और गुणवत्तापूर्ण उर्वरक की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उत्पादन और वितरण प्रणाली को और मजबूत कर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत की कृषि नीति और आत्मनिर्भर भारत मिशन का हिस्सा है। सब्सिडी बढ़ाने से किसानों को आधुनिक उर्वरक तकनीक अपनाने में मदद मिलेगी, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहेगी और उपज में वृद्धि होगी। इसके अलावा, यह निर्णय किसानों को ऋणमुक्त खेती और वित्तीय स्थिरता की ओर प्रेरित करेगा।
कृषि विश्लेषक डॉ. अजय वर्मा का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में उर्वरक की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे समय में भारत सरकार द्वारा यह सब्सिडी पैकेज किसानों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगा। उन्होंने बताया कि डीएपी और एनपीकेएस जैसे उर्वरक की कीमतों में कमी से छोटे और मध्यम किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और उत्पादन में भी इजाफा होगा।
केंद्रीय कैबिनेट के इस फैसले का फायदा उत्तर भारत, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को सबसे अधिक मिलेगा। इन राज्यों में रबी फसल जैसे गेहूं, चना, सरसों और गेंहू के उत्पादन में उर्वरक की खपत बहुत अधिक होती है।
सरकार का यह भी कहना है कि इस सब्सिडी का वितरण ट्रैकिंग सिस्टम और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से होगा। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लाभ सीधे किसानों तक पहुंचे और किसी भी तरह की धांधली की संभावना कम से कम हो। इस पहल से सरकार की डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस योजनाओं को भी बल मिलेगा।
कृषि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस तरह की सब्सिडी नीतियों से किसानों की उत्पादकता और आय में दीर्घकालिक सुधार हो सकता है। किसानों को उर्वरक सस्ती दरों पर उपलब्ध कराने से वे खर्च को नियंत्रित कर नई तकनीक और उन्नत बीज में निवेश कर सकेंगे। इससे कृषि क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी और किसानों की आय में स्थिरता आएगी।
सरकार का यह कदम किसान कल्याण, खाद्यान्न उत्पादन की सुरक्षा और कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भारतीय कृषि उद्योग की विकास दर में सकारात्मक बदलाव आने की संभावना है।
अंततः, केंद्रीय कैबिनेट का यह फैसला केवल किसानों के लिए आर्थिक राहत नहीं है, बल्कि यह कृषि क्षेत्र में सतत विकास, लागत नियंत्रण और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ठोस कदम भी है। इस निर्णय से किसानों को उत्पादन लागत कम करने और उच्च गुणवत्ता वाले फसलों के लिए निवेश करने में मदद मिलेगी, जिससे आने वाले वर्षों में भारत की कृषि वृद्धि दर और किसान आय दोनों में सुधार संभव है।








