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    भारतीय सेना को मिला स्वदेशी हाई-सिक्योरिटी SDR सिस्टम, युद्ध के हालात में और मजबूत होगी कम्युनिकेशन क्षमता

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    भारतीय सेना ने आत्मनिर्भर भारत मिशन की दिशा में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। सेना ने स्वदेशी तकनीक से विकसित सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (Software Defined Radio – SDR) सिस्टम की खरीद के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ एक महत्वपूर्ण अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। यह डील भारतीय रक्षा संचार प्रणाली को और अधिक सुरक्षित, मजबूत और आधुनिक बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है।

    यह अत्याधुनिक SDR सिस्टम रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा डिजाइन किया गया है और BEL द्वारा इसका निर्माण किया जा रहा है। इन रेडियो प्रणालियों की मदद से भारतीय सेना युद्धक्षेत्र में रियल-टाइम और हाई-सिक्योरिटी कम्युनिकेशन बनाए रख सकेगी। पारंपरिक रेडियो सिस्टम के मुकाबले SDR सिस्टम अधिक लचीला, तेज़ और साइबर सुरक्षा से लैस है।

    सेना अधिकारियों के मुताबिक, यह सिस्टम दुश्मन की रेडियो फ्रिक्वेंसी को जाम या इंटरसेप्ट करने की किसी भी कोशिश को असफल बना देगा। SDR सिस्टम में मौजूद एन्क्रिप्शन तकनीक कम्युनिकेशन को पूरी तरह सुरक्षित रखती है। यह न केवल युद्ध की स्थिति में बल्कि आतंकवाद-रोधी अभियानों और सीमावर्ती इलाकों में सेना की ऑपरेशनल रेडीनेस को भी और मजबूत करेगा।

    रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी बयान के अनुसार, यह अनुबंध “Make in India” और “आत्मनिर्भर भारत” के तहत स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यह परियोजना न केवल भारतीय सेना की तकनीकी शक्ति को बढ़ाएगी, बल्कि भारत को रक्षा निर्यातक देश बनाने के मिशन को भी गति देगी।

    DRDO और BEL ने मिलकर इस SDR को अत्याधुनिक मानकों के अनुरूप विकसित किया है। इसमें ऐसे सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर इंटरफेस शामिल हैं जो जरूरत के अनुसार फ्रीक्वेंसी और नेटवर्क मोड बदल सकते हैं। इसका मतलब है कि एक ही SDR डिवाइस को जमीनी, वायु और नौसेना अभियानों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    सेना के अधिकारियों का कहना है कि SDR सिस्टम की तैनाती से यूनिट्स के बीच नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर (Network-Centric Warfare) क्षमता में जबरदस्त सुधार होगा। यानी युद्ध के दौरान ग्राउंड ट्रूप्स, एयर सपोर्ट और हेडक्वार्टर्स के बीच संचार अब पहले से कहीं ज्यादा तेज़ और विश्वसनीय रहेगा।

    जानकारों के मुताबिक, SDR सिस्टम में अडवांस्ड फ्रीक्वेंसी हॉपिंग, मल्टी-लेयर एन्क्रिप्शन और एडाप्टिव नेटवर्क कनेक्टिविटी जैसे फीचर्स शामिल हैं। यह सिस्टम अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स — जैसे कि टैंक, हेलिकॉप्टर, कमांड वाहनों और नौसेना के जहाजों — में एक समान रूप से उपयोग किया जा सकेगा।

    रक्षा मंत्रालय ने कहा कि इस परियोजना के तहत देश में सैकड़ों इंजीनियरों और तकनीशियनों को भी रोजगार मिलेगा। BEL ने इस परियोजना के लिए अपने बेंगलुरु और पंचकुला यूनिट्स में उत्पादन बढ़ाने की घोषणा की है। साथ ही, कई छोटे और मध्यम स्तर की भारतीय रक्षा कंपनियों को वेंडर पार्टनर के रूप में शामिल किया गया है, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ इकोसिस्टम को सीधा लाभ होगा।

    सेना सूत्रों के मुताबिक, इस सिस्टम की शुरुआती तैनाती पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर की जाएगी, जहां चीन और पाकिस्तान की ओर से संभावित इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (Electronic Warfare) की आशंका रहती है। इन क्षेत्रों में SDR सिस्टम भारतीय सेना को सुरक्षित कम्युनिकेशन चैनल प्रदान करेगा, जिससे दुश्मन के साइबर या सिग्नल इंटरफेरेंस की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी।

    रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि SDR सिस्टम का यह अनुबंध भारत की डिजिटल रक्षा रणनीति (Digital Defence Strategy) का हिस्सा है। यह न केवल पारंपरिक संचार प्रणाली को बदल देगा, बल्कि भारतीय सेना को भविष्य की युद्ध तकनीक के लिए तैयार भी करेगा। इसके साथ ही, भारत अब उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास पूर्ण रूप से स्वदेशी सैन्य रेडियो तकनीक है।

    इस तकनीक के विकास और तैनाती से भारत की रक्षा तैयारियों में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। विशेषज्ञों के अनुसार, SDR सिस्टम के इस्तेमाल से भारतीय सेना अब किसी विदेशी कम्युनिकेशन सिस्टम पर निर्भर नहीं रहेगी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वतंत्रता (Strategic Autonomy) और मजबूत होगी।

    कुल मिलाकर, भारतीय सेना को मिला यह नया हाई-सिक्योरिटी SDR सिस्टम न केवल युद्धक्षेत्र में संचार क्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि यह देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम साबित होगा। DRDO और BEL की यह साझेदारी यह दिखाती है कि भारत अब ‘आयातक नहीं, निर्यातक रक्षा शक्ति’ बनने की राह पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है।

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