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जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party) के संस्थापक और प्रसिद्ध चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक नए विवाद में फंस गए हैं। चुनाव आयोग (ECI) ने मंगलवार को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है, क्योंकि उनके नाम बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों की मतदाता सूचियों में दर्ज पाए गए हैं।
प्रशांत किशोर का नाम बिहार के रोहतास जिले के करगहर विधानसभा क्षेत्र और पश्चिम बंगाल के कोलकाता के भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र दोनों जगह दर्ज है। यह स्थिति भारतीय चुनाव कानूनों के तहत स्पष्ट उल्लंघन मानी जाती है, क्योंकि एक नागरिक को एक समय में केवल एक ही निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकरण की अनुमति है।
चुनाव आयोग ने इस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए किशोर को तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने का नोटिस जारी किया है। आयोग ने कहा है कि यदि यह दोहरी प्रविष्टि जानबूझकर की गई है, तो यह Representation of the People Act, 1950 की धारा 17 और 31 का उल्लंघन है।
कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत पाया जाता है, तो उस पर एक वर्ष तक की कारावास, जुर्माना, या दोनों दंड लग सकते हैं।
आयोग ने दोनों राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (Chief Electoral Officers) को इस मामले की विस्तृत जांच के निर्देश दिए हैं। यह जांच यह पता लगाने के लिए की जाएगी कि —
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दोनों पंजीकरण वास्तविक हैं या तकनीकी त्रुटि का परिणाम।
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क्या प्रशांत किशोर ने इनमें से किसी एक पते पर पंजीकरण रद्द करने के लिए आवेदन दिया था।
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किस दस्तावेज के आधार पर दोनों स्थानों पर नाम दर्ज हुआ।
बिहार की मतदाता सूची में किशोर का नाम करगहर विधानसभा क्षेत्र (मतदाता क्रमांक 1013123718) में दर्ज है, जबकि पश्चिम बंगाल की सूची में उनका नाम भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र में पाया गया है, जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का निर्वाचन क्षेत्र भी है।
भवानीपुर की मतदाता सूची में दर्ज पता “121, कालिकट रोड, कोलकाता” बताया गया है, जो तृणमूल कांग्रेस के कार्यालय के नजदीक है। यह वही इलाका है जहां किशोर 2014–2019 के बीच चुनावी अभियानों के दौरान लंबे समय तक रहे थे।
चुनाव आयोग की नोटिस के बाद प्रशांत किशोर ने मीडिया से कहा,
“मुझे आयोग का नोटिस प्राप्त हुआ है। यह संभवतः एक तकनीकी त्रुटि का परिणाम है। मैं पूरी निष्ठा से सभी तथ्यों के साथ आयोग को स्पष्टीकरण दूंगा।”
उन्होंने कहा कि उनके बंगाल में मतदाता के रूप में नाम पुराना है, जब वे वहां चुनावी अभियानों के लिए निवास कर रहे थे। बाद में जब उन्होंने बिहार में स्थायी निवास बनाया, तो उन्हें उम्मीद थी कि पुराना पंजीकरण स्वतः समाप्त हो जाएगा।
किशोर की पार्टी जन सुराज ने भी बयान जारी कर कहा कि “यह एक प्रशासनिक भूल है, जिसे जल्द सुलझा लिया जाएगा।”
यह मामला सामने आते ही राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन ने इसे “कानूनी उल्लंघन” करार देते हुए कहा कि प्रशांत किशोर जैसे सार्वजनिक व्यक्ति को कानून की जानकारी होने के बावजूद यह गलती नहीं करनी चाहिए थी।
भाजपा के प्रवक्ता ने कहा,
“यह केवल एक तकनीकी त्रुटि नहीं बल्कि एक गंभीर उल्लंघन है। अगर कोई आम नागरिक ऐसा करे तो उस पर तुरंत कार्रवाई होती है, तो प्रशांत किशोर को भी कानून के समान नियमों का पालन करना चाहिए।”
वहीं, विपक्षी दलों का कहना है कि यह मामला देश के मतदाता पंजीकरण सिस्टम की कमियों को उजागर करता है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि “देश में लाखों लोग प्रवास करते हैं, लेकिन मतदाता डेटा अपडेट करने की प्रक्रिया बेहद जटिल और धीमी है।”
भारत में मतदाता सूची का अद्यतन विशेष संशोधन अभियान (Special Summary Revision) के दौरान किया जाता है। आयोग के आंकड़ों के अनुसार, केवल बिहार में ही पिछले वर्ष करीब 6.87 लाख दोहरे नाम पाए गए थे, जिन्हें हटाया गया।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह समस्या डिजिटल वेरिफिकेशन की सीमाओं और पते बदलने के कारण होती है।
इलेक्टोरल फोटो आईडी कार्ड (EPIC) में एक यूनिक नंबर होता है, लेकिन यदि किसी व्यक्ति ने नए पते पर पुनः पंजीकरण किया और पुराने नाम को हटाने का आवेदन नहीं दिया, तो दोनों नाम बने रहते हैं।
इस प्रक्रिया में सुधार के लिए अब आयोग आधार लिंकिंग और बायोमेट्रिक सत्यापन को मजबूत करने की योजना बना रहा है।
यह मामला उस समय आया है जब प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज बिहार में तेजी से विस्तार कर रही है और आगामी विधानसभा चुनावों में उतरने की तैयारी में है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद किशोर की छवि पर असर डाल सकता है, हालांकि यदि यह तकनीकी त्रुटि साबित होती है, तो इससे उन्हें राहत मिल सकती है।
चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि “दोहरी पंजीकरण जैसी घटनाएं लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती हैं और इससे जनता का विश्वास प्रभावित होता है।”
प्रशांत किशोर का यह विवाद सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि भारत के चुनावी ढांचे की एक बड़ी चुनौती को उजागर करता है।
मतदाता सूचियों की शुद्धता और डेटा सत्यापन की मजबूती पर लगातार बहस होती रही है, और यह मामला इस दिशा में सुधार की आवश्यकता को दोहराता है।
अब सबकी नजर चुनाव आयोग की आगामी जांच रिपोर्ट पर टिकी है। यदि यह केवल तकनीकी त्रुटि साबित होती है तो इसे सिस्टम की कमी माना जाएगा, लेकिन यदि जानबूझकर किया गया कृत्य पाया गया, तो यह एक कानूनी मिसाल बन सकती है कि कानून सबके लिए समान है।








