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    12 करोड़ में बिकी टीपू सुल्तान की ऐतिहासिक पिस्तौल, लंदन में हुई रिकॉर्डतोड़ नीलामी

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    भारत के इतिहास से जुड़ी एक दुर्लभ और कीमती विरासत ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। लंदन में हुई एक ऐतिहासिक नीलामी में टीपू सुल्तान की वह पिस्तौल, जिससे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जंग लड़ी थी, 12 करोड़ 83 लाख 59 हजार 220 रुपये में बिकी। यह वही चांदी की पिस्तौल है जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दौर में बहादुरी की गवाही दी थी।

    लंदन स्थित “Bonhams Auction House” में आयोजित इस नीलामी में दुनियाभर के कलेक्टर्स और इतिहास प्रेमियों ने हिस्सा लिया। यह पिस्तौल अपनी ऐतिहासिक महत्ता के कारण नीलामी की सबसे आकर्षक वस्तु रही। कहा जाता है कि इस हथियार का इस्तेमाल मैसूर के शेर टीपू सुल्तान ने 18वीं सदी के अंत में अंग्रेजी सेना के खिलाफ लड़ाई में किया था। पिस्तौल की नक्काशी पर फारसी और अरबी लिपियों में उकेरी गई कलाकृतियाँ इसे और भी खास बनाती हैं।

    नीलामी के दौरान इस पिस्तौल की शुरुआती बोली लगभग 2 मिलियन पाउंड रखी गई थी, लेकिन कुछ ही मिनटों में इसकी कीमत 1.2 मिलियन पाउंड (लगभग 12.83 करोड़ रुपये) तक पहुंच गई। यह भारत से जुड़ी अब तक की सबसे महंगी बिकने वाली ऐतिहासिक हथियारों में से एक बन गई है।

    इतिहासकारों के अनुसार, टीपू सुल्तान का यह हथियार ब्रिटिश आर्मी के अधिकारियों के कब्जे में गया था जब 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में टीपू सुल्तान वीरगति को प्राप्त हुए। बाद में यह पिस्तौल ब्रिटिश संग्रहकर्ताओं के हाथों से होती हुई निजी कलेक्शन में चली गई। लगभग दो सदियों के बाद यह फिर से सार्वजनिक नीलामी में सामने आई।

    यह नीलामी सिर्फ टीपू सुल्तान की पिस्तौल तक सीमित नहीं रही। इसी इवेंट में महाराजा रणजीत सिंह की एक दुर्लभ पेंटिंग ने भी रिकॉर्ड तोड़ कीमत हासिल की। यह पेंटिंग महाराजा की शाही पोशाक और दरबार के दृश्य को दर्शाती है। इस कलाकृति की बोली 3 करोड़ रुपये से ज्यादा तक पहुंची। कला विशेषज्ञों का कहना है कि यह पेंटिंग 19वीं सदी के भारतीय कला इतिहास का अनमोल उदाहरण है।

    Bonhams Auction House ने बताया कि भारतीय ऐतिहासिक वस्तुओं की मांग विश्व स्तर पर लगातार बढ़ रही है। खासकर वे वस्तुएं जो औपनिवेशिक काल से जुड़ी हैं, उनकी सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्ता के कारण संग्रहकर्ता बड़ी कीमत चुकाने को तैयार हैं।

    टीपू सुल्तान, जिन्हें “मैसूर का शेर” कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता के पहले योद्धाओं में गिने जाते हैं। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई निर्णायक युद्ध लड़े और 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में वीरगति पाई। उनकी बहादुरी, रणनीति और आत्मसम्मान के किस्से आज भी भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हैं। इस पिस्तौल की नीलामी ने एक बार फिर उस गौरवशाली इतिहास को जीवंत कर दिया है।

    इतिहासकारों का मानना है कि ऐसे ऐतिहासिक वस्तुओं का भारत वापस आना चाहिए क्योंकि वे हमारी विरासत और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं। भारत सरकार और कई सांस्कृतिक संगठनों ने भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत बताई है ताकि भारत से जुड़ी अमूल्य ऐतिहासिक धरोहरें वापस लाई जा सकें।

    नीलामी में शामिल विशेषज्ञों ने बताया कि टीपू सुल्तान की पिस्तौल की धातु चांदी से बनी है और उस पर बारीक नक्काशी की गई है। यह न केवल युद्ध का प्रतीक है बल्कि भारतीय कला और धातु-कला के उच्चतम स्तर को भी दर्शाती है।

    कुल मिलाकर, लंदन की इस नीलामी ने एक बार फिर भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संपदा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बना दिया है। टीपू सुल्तान की यह पिस्तौल और महाराजा रणजीत सिंह की पेंटिंग भारतीय इतिहास की जीवित धरोहरें हैं, जिन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत की कला, बहादुरी और संस्कृति का कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता — क्योंकि यह सिर्फ धरोहर नहीं, गर्व की पहचान है।

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