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लखनऊ में आयोजित एक कानूनी सम्मेलन के दौरान भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जस्टिस सूर्यकांत ने एक बेहद संवेदनशील और सार्थक बात कही। उन्होंने कहा कि “हर महिला को यह भरोसा होना चाहिए कि न्याय व्यवस्था उसके साथ खड़ी है।” उनका यह बयान न केवल महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में न्याय की भूमिका पर भी गहरा संदेश देता है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारतीय न्याय प्रणाली का उद्देश्य केवल अपराधियों को सजा देना या मुकदमे निपटाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि हर नागरिक—विशेषकर महिलाएं—अपने अधिकारों को लेकर सुरक्षित और आत्मविश्वासी महसूस करें। उन्होंने कहा कि जब कोई महिला अन्याय का सामना करती है, तो उसे यह भरोसा होना चाहिए कि न्यायालय उसकी आवाज बनेगा और उसे न्याय दिलाएगा।
उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्याय व्यवस्था का मूल तत्व ‘विश्वास’ है। यदि आम जनता को यह भरोसा हो कि अदालतें निष्पक्ष हैं, तो समाज में कानून का शासन और मजबूत होता है। उन्होंने कहा कि आज भी ग्रामीण इलाकों में कई महिलाएं न्याय पाने के लिए आगे आने में झिझकती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी आवाज शायद सुनी नहीं जाएगी। यह स्थिति बदलनी होगी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अदालतों, पुलिस और प्रशासन की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे महिलाओं को ऐसा वातावरण दें जिसमें वे बिना डर और संकोच के अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकें। उन्होंने कहा, “न्याय व्यवस्था तभी सशक्त कहलाएगी जब समाज की सबसे कमजोर महिला को भी यह भरोसा होगा कि उसके साथ कोई अन्याय नहीं हो सकता।”
उन्होंने न्याय प्रणाली में संवेदनशीलता और सहानुभूति के महत्व पर भी जोर दिया। उनके मुताबिक, किसी भी जज या वकील के लिए केवल कानून की किताबों का ज्ञान पर्याप्त नहीं है; उसे समाज की वास्तविकताओं को भी समझना चाहिए। न्यायपालिका को तकनीकी प्रगति के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण को अपनाना होगा ताकि पीड़ितों को त्वरित और प्रभावी न्याय मिल सके।
कार्यक्रम में उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए अब डिजिटल सिस्टम और ई-कोर्ट्स का विस्तार किया जा रहा है। इससे न केवल प्रक्रिया तेज होगी बल्कि दूर-दराज के इलाकों से भी महिलाएं आसानी से ऑनलाइन सुनवाई में शामिल हो सकेंगी।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता तभी बनी रह सकती है जब फैसले निडरता और निष्पक्षता से दिए जाएं। उन्होंने वकीलों और कानून के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें सिर्फ केस जीतने पर नहीं, बल्कि सच्चे न्याय पर ध्यान देना चाहिए। “कानून एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा है। अगर कोई महिला या कमजोर व्यक्ति आपके पास मदद के लिए आए, तो आपका कर्तव्य है कि आप उसकी उम्मीद पर खरे उतरें।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि कानून की शिक्षा में ‘जेंडर जस्टिस’ (Gender Justice) पर विशेष कोर्स जोड़े जाएं ताकि आने वाली पीढ़ी के वकील और जज महिलाओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण रख सकें।
उनका यह वक्तव्य सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चा में है। कई लोगों ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि यह संदेश देश की हर अदालत, हर न्यायिक संस्था में लागू होना चाहिए। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी जस्टिस सूर्यकांत की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के वक्तव्य न्यायिक प्रणाली में महिलाओं के प्रति भरोसा और मजबूत करेंगे।
भारत में महिला सुरक्षा और न्याय व्यवस्था को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कई अहम कदम उठाए गए हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी सुधार की आवश्यकता है। जस्टिस सूर्यकांत का यह बयान इस दिशा में एक नैतिक और प्रेरणादायक संदेश है कि न्याय केवल कानून की किताबों में नहीं, बल्कि समाज के दिलों में होना चाहिए।








