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महाराष्ट्र की सियासत एक बार फिर बड़े राजनीतिक भूचाल से हिल गई है। राज्य की सत्तारूढ़ महा यूति (Mahayuti) गठबंधन में दरार पड़ गई है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) ने महायुति गठबंधन से नाता तोड़ने का फैसला किया है और अब वह उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उद्धव गुट) के साथ मिलकर नया राजनीतिक समीकरण बनाने जा रही है।
यह घटनाक्रम महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है। कुछ महीनों बाद होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों और फिर विधानसभा चुनावों 2025 के मद्देनजर यह कदम बेहद अहम माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अजित पवार का यह फैसला महायुति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है और राज्य के सत्ता समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है।
दरअसल, लंबे समय से ऐसी अटकलें चल रही थीं कि महायुति के घटक दलों के बीच मतभेद गहराते जा रहे हैं। Eknath Shinde की अगुवाई वाली शिवसेना (शिंदे गुट), BJP, और NCP (अजित पवार गुट) के बीच कई नीतिगत और नेतृत्व से जुड़े मुद्दों पर असहमति थी। सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार बार-बार अपनी उपेक्षा और संगठनात्मक हस्तक्षेप को लेकर नाराज चल रहे थे। वहीं, बीजेपी की ओर से कई अहम निर्णय बिना NCP की सलाह के लिए गए, जिससे मतभेद और गहराए।
अब खबर है कि अजित पवार ने उद्धव ठाकरे से कई दौर की बातचीत के बाद शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के साथ आने का मन बना लिया है। सूत्र बताते हैं कि दोनों दलों के नेता आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में मिलकर उम्मीदवार उतारने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। इस कदम से विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी (MVA) को फिर से मजबूती मिल सकती है।
उद्धव ठाकरे ने इस गठबंधन की पुष्टि करते हुए कहा, “हमारा लक्ष्य सत्ता नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की स्थिरता और विकास है। अजित दादा के साथ मिलकर हम एक मजबूत विकल्प पेश करेंगे।” वहीं, अजित पवार ने बयान दिया, “अब वक्त है कि हम महाराष्ट्र के भविष्य को ध्यान में रखते हुए नया रास्ता चुनें। हमारी प्राथमिकता जनता के मुद्दे हैं, न कि कुर्सी की राजनीति।”
इस राजनीतिक उलटफेर से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की चिंताएं बढ़ गई हैं। महायुति सरकार की स्थिरता पर भी अब सवाल उठने लगे हैं। राज्य विधानसभा में बीजेपी-शिंदे शिवसेना और एनसीपी (अजित गुट) के गठबंधन के पास बहुमत था, लेकिन NCP के हटने से यह संतुलन बिगड़ सकता है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सिर्फ सत्ता समीकरण नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य की राजनीति को भी नया स्वरूप देगा। अजित पवार पहले भी अचानक राजनीतिक कदम उठाने के लिए जाने जाते हैं — जैसे जुलाई 2023 में जब उन्होंने शरद पवार के खिलाफ बगावत कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी। अब उद्धव ठाकरे के साथ आने का उनका यह फैसला बताता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में स्थिरता अब भी दूर की बात है।
इस घटनाक्रम पर कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा, “यह स्वागतयोग्य फैसला है। अगर अजित पवार महाराष्ट्र के हित में सोच रहे हैं, तो हमारे दरवाजे खुले हैं।” वहीं, बीजेपी की ओर से गिरिश महाजन ने इसे अवसरवाद की राजनीति बताया। उन्होंने कहा, “अजित पवार जिस सरकार का हिस्सा हैं, उसी के खिलाफ गठबंधन बना रहे हैं — यह जनता को धोखा है।”
सोशल मीडिया पर भी यह खबर आग की तरह फैल गई है। ट्विटर और एक्स पर #MaharashtraPolitics और #AjitPawar ट्रेंड कर रहे हैं। कई लोग इसे महाराष्ट्र के चुनावी माहौल का “टर्निंग पॉइंट” बता रहे हैं।
अब देखना दिलचस्प होगा कि इस नए गठबंधन के बाद महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर कैसी बनती है। क्या उद्धव-अजित-कांग्रेस की तिकड़ी फिर से महा विकास आघाडी को सत्ता के करीब ले जाएगी, या बीजेपी-शिंदे गुट इसे चुनावी रणनीति से मात देगा?

		
		
		
		
		
		
		
		
		






