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महाराष्ट्र के नासिक जिले में अंगूर किसानों पर इस साल मौसम की दोहरी मार पड़ी है। लगातार बारिश, ठंडे तापमान और धूप की कमी ने अंगूर की बेलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। किसान अब अपने खेतों से अंगूर की बेलें काटने को मजबूर हैं, क्योंकि उत्पादन लगभग खत्म हो गया है। कई किसानों का कहना है कि उन्होंने वर्षों की मेहनत और लाखों रुपये का निवेश इस सीजन में गंवा दिया है।
अंगूर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध नासिक जिला इस बार गंभीर कृषि संकट का सामना कर रहा है। स्थानीय किसानों का कहना है कि सितंबर से नवंबर तक हुई अनियमित बारिश ने अंगूर की बेलों में फूल और फल बनने की प्रक्रिया को पूरी तरह से बिगाड़ दिया। धूप की कमी से बेलों में रोग लग गया और अंगूर सड़ने लगे। कुछ खेतों में तो बेलें ही सूख गईं।
निफाड तालुका के किसान बाळासाहेब पळवे बताते हैं कि उन्होंने करीब चार एकड़ में अंगूर की खेती की थी, लेकिन इस बार फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। आम तौर पर एक बेल से 35 से 40 गुच्छे तक फल मिलते थे, जबकि इस साल मुश्किल से 4-5 गुच्छे ही बने। “यह हमारे जीवन की सबसे खराब फसल रही,” वे कहते हैं, “अब हमें बेलें काटनी पड़ रही हैं क्योंकि रखरखाव का खर्च नहीं उठाया जा सकता।”
भू-जल की कमी और बदलते मौसम के पैटर्न ने भी स्थिति को और खराब किया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, नासिक की मिट्टी और जलवायु अंगूर के लिए आदर्श मानी जाती थी, लेकिन इस बार अत्यधिक नमी और कम तापमान ने फफूंदी और वायरस संक्रमण को बढ़ावा दिया। इससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों प्रभावित हुए।
कृषि संगठन महाराष्ट्र राज्य द्राक्ष बागायतदार संघ का अनुमान है कि इस बार जिले में अंगूर उत्पादन में 50 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। संगठन के अध्यक्ष कैलास भोसले ने कहा कि पिछले दो वर्षों से मौसम के बदलाव का असर बढ़ता जा रहा है। “पहले हमने सूखा झेला, अब लगातार बारिश से फसलें सड़ रही हैं,” उन्होंने कहा। “अगर यह सिलसिला जारी रहा तो अगले सीजन में भी अंगूर उत्पादन पर संकट गहराएगा।”
नासिक जिले के अधिकांश किसान अंगूर की खेती में बड़ी पूंजी लगाते हैं। एक एकड़ अंगूर की बेल लगाने में करीब ₹5 लाख का खर्च आता है, जबकि रखरखाव और दवाइयों पर हर साल ₹2 लाख तक लगते हैं। इस बार उत्पादन न होने से किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हुआ है। कई किसान अब मक्का, अनार या प्याज जैसी वैकल्पिक फसलें लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
किसानों का कहना है कि इस साल के नुकसान ने उन्हें कर्ज के जाल में फंसा दिया है। कई छोटे किसान बैंकों और साहूकारों से कर्ज लेकर खेती करते हैं, जो अब चुका पाना मुश्किल हो गया है। किसान संगठनों ने राज्य सरकार से कर्ज माफी, ब्याजमुक्त ऋण, और फसल बीमा भुगतान की मांग की है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार और किसानों दोनों को दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। नासिक कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अनिल देशमुख के अनुसार, “अंगूर की फसल जलवायु के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। हमें ग्रीनहाउस तकनीक, सिंचाई प्रबंधन और आधुनिक खेती के उपाय अपनाने होंगे ताकि आने वाले वर्षों में इस तरह की स्थिति से बचा जा सके।”
राज्य सरकार ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है। नासिक जिला प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों का सर्वे शुरू कर दिया है और कहा है कि किसानों को राहत देने के लिए विशेष पैकेज तैयार किया जा रहा है। कृषि विभाग के अधिकारी ने बताया कि “सरकार किसानों को सहायता देने और जलवायु-संवेदनशील खेती के लिए प्रशिक्षण शुरू करेगी।”
नासिक को भारत की “अंगूर राजधानी” कहा जाता है, लेकिन अब यह उपाधि खतरे में दिख रही है। अगर मौसम के उतार-चढ़ाव और जलवायु असंतुलन यूं ही जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में नासिक की अंगूर उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
कई किसानों के लिए यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भावनात्मक झटका भी है। “अंगूर की बेल हमारे परिवार की पहचान थी,” किसान बाळासाहेब पळवे कहते हैं, “अब उसी बेल को काटते वक्त आंखें भर आती हैं।”
इस साल का मौसम नासिक के अंगूर किसानों के लिए एक सीख बन गया है — प्रकृति के बदलते तेवरों के सामने अब परंपरागत खेती पर्याप्त नहीं। स्थायी कृषि और वैज्ञानिक प्रबंधन ही भविष्य में इन किसानों के ‘अंगूर सपनों’ को फिर से जीवित रख सकता है।








