




दिल्ली उच्च न्यायालय ने रेस्तरां और होटलों द्वारा खाद्य-पदार्थों की कीमतें न्यूनतम खुदरा मूल्य (MRP) से बढ़ा-चढ़ाकर वसूलने के साथ-साथ बिल में अनिवार्य रूप से ‘सर्विस चार्ज’ जोड़ने की प्रथा पर कड़ी नजर रखी है। कोर्ट ने इस व्यवहार को उपभोक्ता हित में न्यायोचित नहीं माना और कहा कि इससे उपभोक्ता त्रस्त हो रहे हैं—यह एक तरह से “डबल वूमी” (double whammy) बन गया है।
बैंच—जिसमें मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला शामिल थे—ने नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) और फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) से स्पष्ट रूप में पूछा कि जब आपने पहले ही किसी आइटम के MRP को बढ़ा दिया है, तो फिर ‘सर्विस चार्ज’ वसूलने का क्या औचित्य है?
अदालत की तीखी टिप्पणियाँ
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कोर्ट ने पूछा, “जब आप MRP से अधिक चार्ज कर रहे हैं—उदाहरण के लिए ₹20 की बोतल को ₹100 दिखा रहे हैं—तो क्या यह पूरी कीमत अनुभव के लिए और फिर अतिरिक्त सेवा के लिए वसूल रहे हैं? इसे खोलकर बताइए.”मुख्य न्यायाधीश ने यह भी फटकार लगाई कि “आप बिल में ‘अम्बियंस’ और ‘अनुभव’ जैसे कारण देते हुए कीमत बढ़ा रहे हैं, और फिर उसी के ऊपर अतिरिक्त ‘सर्विस चार्ज’ लगा रहे हैं—यह उपभोक्ताओं के साथ दोहरा सौदा है।”
पिछला निर्देश—”सर्विस चार्ज नहीं हो सकता अनिवार्य”
इस अदालत के गत मार्च में भी एकल न्यायाधीश ने स्पष्ट आदेश दिया था कि रेस्तरां ग्राहकों से बिल में छुपे या मजबूर तरीके से ‘सर्विस चार्ज’ नहीं वसूल सकते। इसको उन्होंने “कैमुफ्लाज्ड और कोएर्सिव” (छद्म और जबरदस्ती) करार दिया। साथ ही, GST के अतिरिक्त इस चार्ज के जुड़ने को एक अनावश्यक वित्तीय बोझ (‘डबल वूमी’) बताते हुए इसे अनुचित माना गया था—क्योंकि उपभोक्ता दोनों पर टैक्स अदा कर रहा है।
रेस्तरां उद्योग की प्रतिक्रिया
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NRAI और FHRAI ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की है, जिसमें उनका कहना है कि ‘सर्विस चार्ज’ पूरी तरह से वैध है और यह दुनिया भर में पारदर्शी तौर पर अपनाई जाने वाली प्रथा है। उनका कहना है कि यह ‘अन्यायपूर्ण उपभोक्ता व्यवहार’ नहीं है।
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हालांकि, कुछ रेस्तरां की प्रतिक्रियाएँ अलग रहीं—कई जगहों ने यह चार्ज बिल से तुरंत हटा दिया है। जैसे पुणे में कुछ रेस्टोरेंट्स ने कहा कि यह निर्णय कर्मचारी वेतन पर असर डालेगा, क्योंकि ‘सर्विस चार्ज’ से कर्मचारी सीधे लाभ उठते थे। वहीं कुछ ने कहा है कि हो सकता है उनको मेन्यू में मामूली वृद्धि करनी पड़े या टिप देना ग्राहक के विवेक पर छोड़ना पड़ेगा।
कानून और उपभोक्ता अधिकार
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केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने जुलाई 2022 में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए थे कि सर्विस चार्ज बिल में डिफ़ॉल्ट रूप से नहीं जोड़ा जाए और वह पूर्णतः वैकल्पिक और उपभोक्ता की मर्ज़ी से होना चाहिए। अदालत ने इसी आदेश को मान्यता देते हुए अपने निर्णय को सुदृढ़ किया था।
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इस मामले में अदालत की यह टिप्पणी कि “कोई भी वस्तु MRP से अधिक नहीं बेच सकता”—यह विशेष रूप से वजन और माप अधिनियम (Weights and Measures Act) और वैधानिक मीट्रोलॉजी (Legal Metrology Act) के अंतर्गत आती है, जहाँ MRP को शाश्वत अधिकतम कीमत माना जाता है
व्यापारी और उपभोक्ता—दोनों पर असर
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उपभोक्ताओं के लिए यह निर्णय राहत की खबर है—उन्हें अब बिल में अनचाही और छिपी हुई लागत से बचने का अधिकार प्राप्त हुआ है। जब मेन्यू में स्पष्ट रूप से कीमत दर्शाई जाए, और अनुभव के नाम पर कोई अतिरिक्त शुल्क छुपाया जाए, यह न्यायोचित नहीं है।
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दूसरी ओर, रेस्तरां उद्योग को अब अपनी लागत संरचना और पारदर्शिता पर पुनर्विचार करना होगा। कई रेस्तरां पहले से ही मेन्यू कीमतों में वृद्धि करने या टिपिंग को प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया में हैं, ताकि सर्विस चार्ज हटने से कर्मचारियों की आय पर पड़ने वाला असर कम हो सके।
अंतिम टिप्पणी
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह रुख उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और व्यापारिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि अनुभव और वातावरण का शुल्क पहले से उच्च MRP में शामिल होना चाहिए—इसके अतिरिक्त ‘सर्विस चार्ज’ लगाने की अनुमति नहीं है।
यह निर्णय इस उद्योग को अपनी प्रथाओं में सुधार करने और उपभोक्ताओं को बेहतर सत्ता और स्पष्टता प्रदान करने के लिए प्रेरित करेगा।
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