




देश के नए उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के साथ ही पूरे राजनीतिक और सामाजिक वर्ग की निगाहें उनकी भूमिका और कार्यप्रणाली पर टिक गई हैं। उनसे उम्मीद जताई जा रही है कि वे अपनी संसदीय मर्यादा, शालीन आचरण और संगठनात्मक अनुभव के बल पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को और अधिक मजबूती प्रदान करेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि उपराष्ट्रपति का कार्य केवल उच्च सदन राज्यसभा के सभापति के रूप में संचालन करना ही नहीं, बल्कि संसदीय परंपराओं और गरिमा को बनाए रखना भी है। ऐसे में उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे सदन की कार्यवाही को निष्पक्ष और संतुलित ढंग से संचालित करेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान दौर में जब संसद में हंगामा, अव्यवस्था और तीखी बहसें आम हो गई हैं, तब नए उपराष्ट्रपति का संयम और संगठनात्मक कौशल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नई दिशा दे सकता है।
जनता को उम्मीद है कि वे संसदीय परंपराओं को बनाए रखते हुए लोकतंत्र की मजबूती में पुल की भूमिका निभाएँगे। आने वाले सत्रों में उनकी नेतृत्व क्षमता और शालीनता की असली परीक्षा होगी।