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    विरार में 12 साल से अटका हाई वोल्टेज सबस्टेशन प्रोजेक्ट, प्लॉट का स्वामित्व अब भी राज्य सरकार के पास

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    विरार और आसपास के इलाकों में रहने वाले लाखों लोग पिछले कई सालों से लगातार बिजली संकट का सामना कर रहे हैं। इसकी बड़ी वजह है वह हाई वोल्टेज सबस्टेशन प्रोजेक्ट, जिसे शुरू करने की योजना 12 साल पहले बनी थी, लेकिन अब तक यह अधर में लटका हुआ है।

    मुख्य कारण है कि जिस जमीन पर यह सबस्टेशन बनना है, उसका स्वामित्व अभी भी राज्य सरकार के पास है, जबकि बिजली वितरण कंपनी इसे अपने नाम करना चाहती है।

    प्रोजेक्ट की शुरुआत और मौजूदा स्थिति

    विरार में बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए इस सबस्टेशन की योजना साल 2012 में बनाई गई थी। प्रोजेक्ट का उद्देश्य था कि यहां रहने वाले लोगों को बिना बाधा और स्थिर बिजली आपूर्ति दी जा सके। हालांकि, 12 साल बीत जाने के बाद भी प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया।

    आज भी जिस प्लॉट पर सबस्टेशन बनना है, उसका स्वामित्व हस्तांतरण (ownership transfer) पूरा नहीं हुआ है। इस कारण सारी फाइलें सरकारी दफ्तरों में अटकी पड़ी हैं।

    लोगों की बढ़ती परेशानी

    विरार और नजदीकी इलाकों में पिछले कुछ वर्षों में जनसंख्या और शहरीकरण तेज़ी से बढ़ा है। हाउसिंग प्रोजेक्ट्स, मॉल्स और इंडस्ट्रियल एरिया के कारण बिजली की मांग कई गुना बढ़ चुकी है। मौजूदा बिजली ढांचा इस मांग को पूरा करने में असमर्थ है। अक्सर गर्मी और मानसून में यहां पावर कट और लो वोल्टेज की समस्या सामने आती है। लोगों का कहना है कि अगर यह सबस्टेशन समय पर बन गया होता, तो आज उन्हें इतनी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती।

    स्वामित्व विवाद बना बड़ी अड़चन

    सबस्टेशन प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी बाधा है प्लॉट का स्वामित्व विवाद। जमीन राज्य सरकार की है। बिजली वितरण कंपनी (महावितरण/महानिर्मिती जैसी एजेंसियां) चाहती हैं कि यह जमीन उनके नाम ट्रांसफर हो। प्रशासनिक प्रक्रियाओं और कागजी देरी के चलते मामला सालों से अटका पड़ा है। जानकारी के अनुसार, अगर जल्द ही यह स्वामित्व हस्तांतरण नहीं हुआ, तो प्रोजेक्ट और आगे खिसक सकता है।

    बढ़ती बिजली खपत और भविष्य की जरूरत

    विशेषज्ञों का कहना है कि विरार में बिजली की मांग आने वाले समय में और बढ़ेगी। यहां हर साल हजारों नए घर बन रहे हैं। छोटे और मध्यम उद्योग भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की बढ़ती संख्या से भी बिजली खपत में इजाफा होगा। अगर सबस्टेशन समय पर नहीं बना, तो आने वाले सालों में यहां बिजली की स्थिति और भी खराब हो सकती है।

    राजनीतिक और प्रशासनिक चुप्पी

    स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने कई बार सरकार से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की मांग की। विरोध प्रदर्शन भी हुए। कई बार यह मुद्दा विधानसभा में भी उठाया गया।

    इसके बावजूद अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।

    निवेश और आर्थिक असर

    विरार और नजदीकी इलाकों में रियल एस्टेट और इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर निवेश हुआ है। बिजली आपूर्ति स्थिर न होने से निवेशक भी हिचकिचाने लगे हैं। कई बार कंपनियां शिकायत करती हैं कि उन्हें जनरेटर और अतिरिक्त पावर बैकअप पर खर्च करना पड़ रहा है। इसका असर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और रोज़गार पर भी पड़ रहा है।

    विशेषज्ञों की राय

    पावर सेक्टर के जानकारों का मानना है कि इस प्रोजेक्ट में देरी केवल प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है। अगर राज्य सरकार और बिजली कंपनी आपसी तालमेल से काम करें, तो प्रोजेक्ट छह महीने में शुरू हो सकता है। तकनीकी दृष्टि से प्रोजेक्ट में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है।

    नागरिकों की उम्मीदें

    विरार के लोग अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि यह प्रोजेक्ट जल्द शुरू होगा। नागरिक संगठनों ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर मामला और लंबा खिंचा, तो वे बड़े स्तर पर आंदोलन करेंगे। लोग चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे को प्राथमिकता में रखे और जल्द समाधान निकाले।

    विरार का हाई वोल्टेज सबस्टेशन प्रोजेक्ट 12 साल से जमीन पर उतरने का इंतजार कर रहा है। स्वामित्व विवाद और प्रशासनिक देरी के कारण लाखों लोग हर दिन बिजली संकट झेल रहे हैं।

    सरकार और बिजली विभाग अगर मिलकर इस समस्या का समाधान निकालें, तो न केवल लोगों की परेशानी कम होगी, बल्कि यह क्षेत्र आर्थिक दृष्टि से भी और मजबूत होगा।

    यह मामला साफ संदेश देता है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में देरी का सीधा असर जनता और विकास दोनों पर पड़ता है।

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