




मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (MP High Court) में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अदालत में 4.80 लाख से अधिक मामले फिलहाल विचाराधीन हैं, जिनमें से लगभग 3,000 जमानत याचिकाएं भी शामिल हैं। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए उच्च न्यायालय ने एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है।
शनिवार को मुख्य न्यायाधीश संजीव कुमार सचदेवा ने आपराधिक मामलों की त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 10 विशेष बेंचों (Special Benches) के गठन की घोषणा की।
लंबित मामलों की चुनौती
देशभर में न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक लंबित मामलों की संख्या है। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय भी इस समस्या से अछूता नहीं है। हर साल हजारों नए मामले दाखिल होते हैं लेकिन उनकी सुनवाई में समय लगता है, जिससे पुराने मामलों का बोझ बढ़ता चला जाता है।
न्यायपालिका से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर लंबित मामलों का समाधान समय पर नहीं किया गया तो आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कमजोर हो सकता है।
विशेष बेंचों का उद्देश्य
मुख्य न्यायाधीश का यह निर्णय न्यायपालिका के प्रति उनकी सक्रियता को दर्शाता है। 10 विशेष बेंचों का गठन मुख्य रूप से आपराधिक मामलों और जमानत याचिकाओं की सुनवाई के लिए किया गया है।
इन बेंचों का उद्देश्य है कि लंबित आपराधिक मामलों को जल्द से जल्द निपटाया जाए ताकि पीड़ित और आरोपी दोनों को समय पर न्याय मिल सके। यह कदम न्यायपालिका की कार्यकुशलता को बढ़ाएगा और अदालतों पर बढ़ते बोझ को कम करने में मदद करेगा।
शनिवार को सुनवाई की पहल
दिलचस्प बात यह है कि ये विशेष बेंच शनिवार को सुनवाई करेंगी। सामान्यत: शनिवार को अदालतें अवकाश में रहती हैं, लेकिन अब इस दिन को विशेष मामलों की सुनवाई के लिए आरक्षित किया जाएगा।
यह कदम न केवल लंबित मामलों के बोझ को कम करेगा बल्कि न्यायपालिका की सक्रियता और आम जनता के प्रति संवेदनशीलता को भी प्रदर्शित करेगा।
3,000 लंबित जमानत याचिकाओं पर फोकस
अभी हाईकोर्ट में करीब 3,000 जमानत याचिकाएं लंबित हैं। यह संख्या काफी बड़ी है और इसका असर सीधे-सीधे आरोपी और उनके परिवारों पर पड़ता है।
विशेष बेंचों का एक प्रमुख लक्ष्य इन जमानत याचिकाओं का शीघ्र निपटारा करना होगा। माना जा रहा है कि इससे जेलों में भीड़ कम करने में मदद मिलेगी क्योंकि कई आरोपी केवल जमानत आदेश का इंतजार कर रहे होते हैं।
न्यायपालिका में सुधार की दिशा
यह कदम व्यापक न्यायिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इस मॉडल को सफलतापूर्वक लागू किया गया तो इसे अन्य उच्च न्यायालयों में भी अपनाया जा सकता है।
लंबित मामलों के बोझ को कम करने के लिए तकनीकी साधनों का इस्तेमाल, ई-कोर्ट सिस्टम और विशेष बेंच जैसी पहलें न्यायपालिका को अधिक आधुनिक और सक्षम बना सकती हैं।
आम जनता को होगा लाभ
इस कदम का सीधा फायदा आम जनता को मिलेगा। जो लोग वर्षों से अपने मामलों के निपटारे का इंतजार कर रहे हैं, उन्हें अब राहत मिल सकती है। साथ ही, यह पहल समाज में न्यायिक व्यवस्था के प्रति भरोसे को मजबूत करेगी।
एक अधिवक्ता ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “मुख्य न्यायाधीश का यह निर्णय ऐतिहासिक है। शनिवार को सुनवाई से मामलों का बोझ घटेगा और आम नागरिकों को समय पर न्याय मिलेगा।”
सरकार और न्यायपालिका के बीच तालमेल
लंबित मामलों को निपटाने के लिए न्यायपालिका के प्रयासों के साथ सरकार का सहयोग भी जरूरी है। अधिवक्ता संघ का मानना है कि सरकार को भी नए न्यायाधीशों की नियुक्ति, आधारभूत संरचना और डिजिटल सिस्टम पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
इससे न्यायपालिका के कामकाज में तेजी आएगी और ऐसे कदम और अधिक प्रभावी होंगे।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा 10 विशेष बेंचों का गठन न्यायपालिका की गंभीरता और संवेदनशीलता को दर्शाता है। 4.80 लाख से अधिक लंबित मामलों के बीच यह पहल न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल साबित हो सकती है।
अगर यह कदम सफल रहता है तो न केवल लंबित मामलों का बोझ घटेगा, बल्कि आम जनता को यह विश्वास भी मिलेगा कि न्याय में देरी अब धीरे-धीरे अतीत की बात बन रही है।