




उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जातिवाद को खत्म करने की दिशा में एक और बड़ा और ऐतिहासिक कदम उठाया है। सरकार ने घोषणा की है कि राज्य में अब किसी भी वाहन पर जाति दर्शाने वाले प्रतीक, स्टिकर या बोर्ड नहीं लगाए जा सकेंगे। इसके साथ ही, प्रदेश के स्कूलों में छात्रों को जातिवाद विरोधी पाठ पढ़ाए जाएंगे, ताकि बचपन से ही बच्चों में समानता और भाईचारे की सोच विकसित की जा सके।
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प्रदेश की सड़कों पर अक्सर गाड़ियों पर “यादव”, “जाट”, “ब्राह्मण”, “गुर्जर” जैसे जाति सूचक शब्द लिखे देखे जाते हैं।
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सरकार का मानना है कि यह प्रवृत्ति समाज में जातिगत विभाजन और अहंकार को बढ़ावा देती है।
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अब पुलिस और परिवहन विभाग को निर्देश दिया गया है कि किसी भी वाहन पर यदि जाति आधारित स्टिकर या बोर्ड पाया जाता है तो उसे तुरंत हटाया जाए और कानूनी कार्रवाई की जाए।
एक अधिकारी ने कहा—
“गाड़ियों पर जाति दिखाना न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह समाज में भेदभाव को भी बढ़ाता है। सरकार का उद्देश्य सबको समान दृष्टि से देखना है।”
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सरकार ने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि कक्षा 6 से ऊपर के बच्चों को जातिवाद विरोधी पाठ पढ़ाए जाएं।
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इन पाठों में बच्चों को समझाया जाएगा कि जाति के नाम पर भेदभाव करना संविधान और समाज दोनों के खिलाफ है।
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शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, इस पहल से छात्रों में समानता, सहयोग और भाईचारे की भावना को प्रोत्साहन मिलेगा।
शिक्षा मंत्री ने कहा—
“हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी जाति के बजाय प्रतिभा और मानवता को महत्व दे। यही सच्चा ‘नया भारत’ है।”
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हाल के दिनों में प्रदेश में जाति आधारित रैलियों, कार्यक्रमों और गाड़ियों पर जातिगत प्रतीकों को लेकर विवाद सामने आए थे।
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सरकार ने तय किया कि जातिवाद को जड़ से खत्म करने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक दोनों स्तरों पर कदम उठाने जरूरी हैं।
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एक ओर जहां गाड़ियों से जाति हटाना कानून व्यवस्था और सामाजिक समानता की दिशा में कदम है, वहीं स्कूलों में पाठ पढ़ाना दीर्घकालिक सामाजिक सुधार का हिस्सा है।
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समाजवादी पार्टी और बसपा ने इस फैसले को राजनीतिक नाटक बताया।
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उनका कहना है कि जातिवाद को मिटाने का असली रास्ता समाज में आर्थिक और शैक्षिक समानता लाना है, न कि केवल प्रतीकों को हटाना।
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कांग्रेस ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार यह कदम केवल जातिगत राजनीति को नियंत्रित करने के लिए उठा रही है।
एक विपक्षी नेता ने कहा—
“गाड़ियों से जाति हटाने से समाज नहीं बदलेगा। जब तक हर वर्ग को बराबर अवसर और अधिकार नहीं मिलते, तब तक जातिवाद खत्म नहीं हो सकता।”
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भाजपा और योगी सरकार के समर्थक इसे ऐतिहासिक और साहसिक फैसला बता रहे हैं।
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उनका कहना है कि इससे समाज में जातिगत विभाजन और “मैं कौन हूँ” की राजनीति कमजोर होगी।
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शिक्षा में जातिवाद विरोधी पाठ जोड़ने से आने वाली पीढ़ी में सकारात्मक सोच विकसित होगी।
एक भाजपा विधायक ने कहा—
“आज का बच्चा कल का नागरिक है। यदि हम उन्हें सही दिशा देंगे, तो जातिवाद अपने आप समाप्त हो जाएगा।”
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विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम समाज में मानसिक और व्यवहारिक बदलाव ला सकता है।
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गाड़ियों से जाति प्रतीक हटने से लोगों के बीच अनावश्यक श्रेष्ठता या हीनता का भाव कम होगा।
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वहीं बच्चों को सही शिक्षा देने से आने वाले समय में समाज समानता और एकता की ओर बढ़ सकता है।
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वाहन अधिनियम के तहत गाड़ियों पर अनधिकृत नाम, प्रतीक और स्टिकर लगाना पहले से ही अपराध है।
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अब इसे और सख्ती से लागू किया जाएगा।
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शिक्षा विभाग भी पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए पाठ्यपुस्तक समितियों और विशेषज्ञ पैनलों की मदद लेगा।
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यह देखना दिलचस्प होगा कि आम जनता इस कदम को कितना स्वीकार करती है।
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समाज के सभी वर्गों की भागीदारी से ही यह पहल सफल और टिकाऊ बन सकती है।
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अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो उत्तर प्रदेश जातिवाद को खत्म करने वाले अग्रणी राज्यों में गिना जा सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने जातिवाद के खिलाफ दोहरी रणनीति अपनाई है—
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गाड़ियों से जाति दर्शाने वाले प्रतीकों को हटाना।
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स्कूलों में जातिवाद विरोधी पाठ शामिल करना।
यह फैसला जहां एक ओर तात्कालिक स्तर पर समाज में जातिगत विभाजन को रोकने का प्रयास है, वहीं दूसरी ओर यह भविष्य की पीढ़ियों को जातिवाद से दूर रखने की दीर्घकालिक योजना भी है।
भले ही इस पर राजनीतिक बहस हो रही है, लेकिन इतना तय है कि योगी सरकार का यह कदम सामाजिक समरसता और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।