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    कानपुर में ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद: मुस्लिम समुदाय का मार्च क्यों बना सुर्खियों में?

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    कानपुर, उत्तर प्रदेश में बीते दिनों एक अनोखा लेकिन विवादास्पद मामला सामने आया है। शहर में मुस्लिम समुदाय के कुछ संगठनों ने “आई लव मोहम्मद” लिखे पोस्टर, बैनर और टी-शर्ट पहनकर एक मार्च (जुलूस) निकाला। इस कार्यक्रम का उद्देश्य पैगंबर मोहम्मद के प्रति प्रेम और सम्मान प्रकट करना बताया गया, लेकिन जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया और सड़कों पर फैली, यह मामला विवाद का विषय बन गया।

    • यह मार्च कानपुर के कई इलाकों से गुजरा और इसमें युवाओं की बड़ी संख्या शामिल हुई।

    • मार्च में शामिल लोग हाथों में “आई लव मोहम्मद” लिखे बैनर और पोस्टर लेकर चल रहे थे।

    • कई प्रतिभागी टी-शर्ट और टोपी पर भी यही संदेश लिखवाए हुए थे।

    • आयोजकों का कहना था कि इस मार्च का मकसद किसी राजनीतिक संदेश देना नहीं था, बल्कि यह धार्मिक आस्था और प्रेम की अभिव्यक्ति थी।

    एक आयोजक ने कहा—
    “आज के दौर में जब हमारे धर्म और पैगंबर को लेकर गलत बातें फैलाई जाती हैं, हम शांति और प्रेम के साथ अपना संदेश देना चाहते हैं।”

    • जैसे ही मार्च की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, इसने राजनीतिक और धार्मिक बहस को जन्म दिया।

    • कुछ लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति बताते हुए समर्थन किया।

    • वहीं विरोधियों का कहना है कि यह मार्च धार्मिक पहचान को सड़कों पर लाने और माहौल को भड़काने की कोशिश है।

    • खासकर विपक्षी दलों और कुछ हिंदू संगठनों ने इस पर सवाल उठाए कि “क्या ऐसे आयोजन से समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण नहीं होगा?”

    • कानपुर प्रशासन ने शुरुआत में इस मार्च को धार्मिक और शांतिपूर्ण कार्यक्रम मानकर अनुमति दी थी।

    • हालांकि विवाद बढ़ने के बाद अधिकारियों ने कहा कि वे इस मामले की निगरानी कर रहे हैं।

    • पुलिस ने साफ किया कि यदि किसी भी प्रकार का उकसाने वाला भाषण या गतिविधि होती है, तो कार्रवाई की जाएगी।

    एसपी सिटी ने बयान दिया—
    “शहर में शांति और सद्भाव बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। अभी तक मार्च शांतिपूर्ण रहा, लेकिन सोशल मीडिया पर फैल रही भ्रामक खबरों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है।”

    • भाजपा नेताओं ने कहा कि धार्मिक संदेशों को सार्वजनिक रूप से इस तरह पेश करना एकतरफा माहौल बनाने की कोशिश है।

    • वहीं समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य दलों ने कहा कि संविधान हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता देता है और जब तक कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, इसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

    • AIMIM जैसे दलों ने मार्च का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय के लोग पैगंबर मोहम्मद के प्रति प्रेम और श्रद्धा का प्रदर्शन कर रहे थे, इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

    • ट्विटर (X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इस घटना को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ी।

    • कुछ यूज़र्स ने लिखा—
      “आई लव मोहम्मद लिखकर मार्च निकालना किसी को चोट नहीं पहुँचाता, यह सिर्फ आस्था है।”

    • जबकि विरोधी यूज़र्स का कहना था—
      “अगर दूसरे धर्म के लोग भी सड़कों पर ऐसे मार्च निकालें तो हालात बिगड़ सकते हैं। सरकार को एक समान नियम लागू करने चाहिए।”

    यह पहली बार नहीं है जब कानपुर में धार्मिक कार्यक्रम ने विवाद खड़ा किया हो।

    • 2022 में भी हिंसक झड़पों और विरोध प्रदर्शनों की घटनाएं यहां दर्ज हो चुकी हैं।

    • यही वजह है कि प्रशासन इस बार खास सतर्क है और लगातार पुलिस बल को चौकसी पर तैनात किया गया है।

    • समाजशास्त्रियों का मानना है कि धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति का अधिकार सभी को है, लेकिन जब यह सार्वजनिक सड़कों और राजनीतिक बहस का हिस्सा बन जाती है तो विवाद की संभावना बढ़ जाती है।

    • एक विशेषज्ञ ने कहा—
      “अगर ऐसे आयोजन बिना राजनीतिक रंग के किए जाएं तो यह सांप्रदायिक सद्भाव को भी मजबूत कर सकते हैं। लेकिन अक्सर इन्हें राजनीतिक लाभ के लिए भुनाया जाता है।”

    • प्रशासन ने संकेत दिया है कि भविष्य में ऐसे धार्मिक आयोजनों को लेकर कड़े दिशा-निर्देश बनाए जा सकते हैं।

    • आयोजकों से कहा गया है कि यदि वे दोबारा ऐसे मार्च करना चाहते हैं तो पहले से अनुमति लेकर ही करें और सुनिश्चित करें कि किसी भी समुदाय की भावनाएँ आहत न हों।

    कानपुर में निकला “आई लव मोहम्मद” मार्च मुस्लिम समुदाय की आस्था का प्रतीक था, लेकिन इसने समाज और राजनीति दोनों में नई बहस को जन्म दे दिया।
    जहां समर्थक इसे एक शांतिपूर्ण धार्मिक अभिव्यक्ति बता रहे हैं, वहीं विरोधियों के अनुसार यह समाज को ध्रुवीकरण की ओर ले जा सकता है।

    इस विवाद ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है—
    क्या धार्मिक आस्था को सार्वजनिक प्रदर्शन का रूप देना सही है, या इसे व्यक्तिगत और धार्मिक स्थलों तक ही सीमित रहना चाहिए?

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