




केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने रविवार को चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान भाषा से जुड़े विवादों पर महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार का उद्देश्य देश के किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपना नहीं है।
धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब दक्षिण भारत के कई हिस्सों में समय-समय पर हिंदी थोपने का मुद्दा गरमा जाता है।
-
चेन्नई के एक शैक्षणिक संस्थान में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा—
“भारत एक विविधताओं से भरा देश है। हर राज्य की अपनी संस्कृति और भाषा है। हम इस विविधता का सम्मान करते हैं। सरकार की कोई भी योजना किसी पर भाषा थोपने की नहीं है।”
-
धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का मुख्य उद्देश्य बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराना है।
-
उन्होंने कहा कि—
“हम चाहते हैं कि बच्चे अपनी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में पढ़ें। क्योंकि शोध बताते हैं कि शुरुआती शिक्षा मातृभाषा में होने से समझने की क्षमता बेहतर होती है।”
-
दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु में, हिंदी थोपने के खिलाफ लंबे समय से आवाज़ उठती रही है।
-
द्रविड़ राजनीति की पृष्ठभूमि वाले इस राज्य में लोगों का मानना है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने की कोशिश उनकी भाषा और संस्कृति के खिलाफ है।
-
ऐसे में धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान तमिलनाडु की राजनीति और आम लोगों दोनों के लिए एक भरोसा देने जैसा है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत की ताकत उसकी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता में है।
-
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यहां अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन फिर भी भारत एकजुट है।
-
“हमारी सरकार का लक्ष्य इस विविधता को और मजबूत करना है, किसी पर कुछ थोपना नहीं।”
धर्मेंद्र प्रधान ने इस मौके पर डिजिटल शिक्षा पर भी बात की।
-
उन्होंने कहा कि सरकार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अलग-अलग स्थानीय भाषाओं में कंटेंट उपलब्ध कराने पर काम कर रही है।
-
इससे ग्रामीण और छोटे शहरों के छात्रों को भी पढ़ाई का समान अवसर मिलेगा।
चेन्नई में भाषण के दौरान उन्होंने तमिल भाषा की भी सराहना की।
-
उन्होंने कहा कि तमिल दुनिया की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है।
-
“हम तमिल भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हैं। तमिल का योगदान भारतीय सभ्यता के लिए अमूल्य है।”
हालांकि विपक्षी दलों ने हमेशा यह आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार शिक्षा नीतियों के जरिए हिंदी और संस्कृत को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करना चाहती है।
-
लेकिन धर्मेंद्र प्रधान ने साफ कहा कि यह एक गलतफहमी है।
-
उनका कहना था कि केंद्र का मकसद सभी भारतीय भाषाओं का समान विकास करना है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि धर्मेंद्र प्रधान का यह बयान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश है।
-
यह कदम दक्षिण भारत में केंद्र सरकार की छवि को मजबूत कर सकता है।
-
विशेषज्ञों के अनुसार, भाषा का मुद्दा केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संवेदनशील राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं से भी जुड़ा है।
धर्मेंद्र प्रधान ने यह भी कहा कि सरकार छात्रों को बहुभाषी बनने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
-
नई शिक्षा नीति में छात्रों को एक से अधिक भारतीय भाषाएँ सीखने का अवसर दिया गया है।
-
उन्होंने कहा कि—
“आज की पीढ़ी को ग्लोबल नागरिक बनने के लिए अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाएँ भी सीखनी होंगी, लेकिन साथ ही मातृभाषा को मजबूत करना होगा।”
धर्मेंद्र प्रधान का चेन्नई से दिया गया यह बयान साफ करता है कि केंद्र सरकार भाषाई विविधता का सम्मान करती है और किसी पर कोई भाषा थोपने की योजना नहीं है।
-
तमिलनाडु जैसे राज्यों में यह संदेश बेहद महत्वपूर्ण है, जहाँ लंबे समय से भाषा को लेकर संवेदनशीलता रही है।
-
अब देखना यह होगा कि क्या यह आश्वासन भाषा विवादों को शांत कर पाएगा या आने वाले समय में यह मुद्दा फिर से राजनीतिक बहस का हिस्सा बनेगा।