




केंद्र सरकार ने नागालैंड में सक्रिय नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खाप्लुंग (NSCN-K) पर लगाया गया प्रतिबंध 5 और वर्षों के लिए बढ़ा दिया है। यह कदम भारत में सुरक्षा स्थिति को बनाए रखने और नक्सलवादी व आतंकवादी गतिविधियों को रोकने की दिशा में उठाया गया है।
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NSCN-K को भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित संगठन के रूप में 2004 में घोषित किया गया था।
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संगठन नागालैंड और उससे जुड़े क्षेत्रों में अराजक गतिविधियों, हथियार तस्करी और आतंक फैलाने के लिए जाना जाता है।
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पहले भी सरकार ने यह प्रतिबंध 5 वर्षों के अंतराल पर बढ़ाया था।
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि NSCN-K स्थानीय जनमानस में भय और अस्थिरता फैलाने वाला संगठन है।
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गृह मंत्रालय ने बताया कि संगठन द्वारा अपराध और हिंसा को बढ़ावा देना, और राज्य की कानून व्यवस्था को कमजोर करना जारी है।
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मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संगठन पर प्रतिबंध बढ़ाने का उद्देश्य सुरक्षा बलों को कानूनी अधिकार और कार्रवाई की स्वतंत्रता देना है।
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मंत्रालय ने कहा—
“NSCN-K के खिलाफ प्रतिबंध 5 साल और बढ़ाया गया है ताकि संगठन की गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण रखा जा सके।” -
संगठन के किसी भी संगठनात्मक या वित्तीय लेन-देन पर रोक लगाई गई है।
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NSCN-K के किसी भी सदस्य का कानूनन समर्थन या सहयोग करना अपराध माना जाएगा।
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सुरक्षा बल अब संगठन के खिलाफ अधिक कठोर कार्रवाई कर सकते हैं, जिसमें गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती और संपर्कों की निगरानी शामिल है।
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NSCN-K और उसके छोटे संगठन नागालैंड के कुछ जिलों में सक्रिय रहे हैं।
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इन जिलों में नागरिक सुरक्षा, शिक्षण संस्थानों और छोटे व्यवसायों पर संगठन की धमकियाँ आम बात रही हैं।
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प्रतिबंध बढ़ाने के बाद सुरक्षा बलों को जमीनी स्तर पर निगरानी बढ़ाने और नक्सलियों को खत्म करने में मदद मिलेगी।
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सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि NSCN-K का प्रतिबंध बढ़ाना राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए आवश्यक है।
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उनका कहना है कि यह कदम संगठन को कमजोर करने, उसके नेटवर्क और वित्तीय स्रोतों पर दबाव बनाने में सहायक होगा।
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विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि प्रतिबंध केवल कानूनी उपकरण है; सत्यापन, सूचना और जमीनी कार्रवाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
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नागालैंड और पूर्वोत्तर के कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार के निर्णय का समर्थन किया है।
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उनका कहना है कि यह कदम स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा और राज्य की शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
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नागरिक समाज और मानवाधिकार संगठनों ने भी इस कदम की सराहना की, लेकिन उन्होंने यह सुनिश्चित करने की मांग की कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई में आम नागरिकों को नुकसान न पहुंचे।
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संगठन अब भी छोटे समूहों में सक्रिय है, लेकिन उसकी सैन्य और राजनीतिक ताकत पहले जैसी नहीं रही।
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प्रतिबंध के कारण संगठन के सदस्य छिपकर कार्य करते हैं, जिससे पुलिस और सुरक्षा बलों को उनका पता लगाना आसान हो गया है।
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विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि संगठन को कानूनी और सुरक्षा दबाव के तहत रखा गया, तो उसकी सक्रियता धीरे-धीरे कम हो सकती है।
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सुरक्षा बलों को राज्य सरकार और केंद्र की ओर से अतिरिक्त संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान किए जा रहे हैं।
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निगरानी, छापेमारी और संचार जासूसी के जरिए संगठन पर लगातार दबाव बनाए रखा जाएगा।
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विशेषज्ञों का कहना है कि NSCN-K पर प्रतिबंध स्थानीय युवाओं को संगठन में शामिल होने से रोकने में भी मदद करेगा।
NSCN-K पर प्रतिबंध 5 वर्ष और बढ़ाने का कदम यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार पूर्वोत्तर भारत में नक्सलवाद और आतंकवाद के खिलाफ सतत और सख्त रुख अपनाए हुए है।
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यह प्रतिबंध न केवल संगठन को कमजोर करने की दिशा में है, बल्कि सुरक्षा बलों को कानूनी और कार्रवाई का अधिकार भी देता है।
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नागालैंड और पूर्वोत्तर के नागरिकों के लिए यह सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
अब निगाहें यह देखने पर हैं कि NSCN-K पर यह नई अवधि के प्रतिबंध के दौरान सरकार और सुरक्षा बल कितनी प्रभावी कार्रवाई करते हैं और क्षेत्र में शांति बनाए रखते हैं।